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चीन धोखा देता है; लद्दाख में क्या भारत ने डोकलाम से सबक़ लिया?

चीन धोखा देता है; लद्दाख में क्या भारत ने डोकलाम से सबक़ लिया?

लद्दाख में क़रीब दो महीने से चल रहे भारत चीन सीमा विवाद के बीच चीनी सेना के साथ ही भारतीय सैनिकों ने पीछे हटने की प्रक्रिया तो शुरू कर दी है, लेकिन सवाल है कि क्या भारत ने डोकलाम विवाद से सबक़ लिया है।

लद्दाख में क़रीब दो महीने से चल रहे भारत चीन सीमा विवाद के बीच चीनी सेना के साथ ही भारतीय सैनिकों ने पीछे हटने की प्रक्रिया तो शुरू कर दी है, लेकिन सवाल है कि क्या भारत ने डोकलाम विवाद से सबक़ लिया है। जिस तरह से चीन ने क़रीब तीन साल पहले डोकलाम में घुसपैठ की थी, बिल्कुल उसी तरीक़े से इसने लद्दाख में भी की और फिर बातचीत के बाद वह पीछे हटने को भी राज़ी हुआ। रिपोर्टें आती रही हैं और विशेषज्ञ भी कहते रहे हैं कि डोकलाम में भी चीन ने पहले घुसपैठ की थी, फिर पीछे हटा था, लेकिन उसके बाद भी उसने सीमा के पास सैनिक ढाँचा खड़ा करता रहा, सड़कें बनाता रहा और अपनी स्थिति मज़बूत करता रहा। यानी पीछे हटने के नाम पर वह भारत को धोखा देता रहा! तो इस बार क्या ऐसे किसी धोखे से बचने का उपाय भारत ने लद्दाख में किया है

फ़िलहाल इसकी विस्तृत जानकारी नहीं आई है कि दोनों देशों के बीच क्या सहमति बनी है। इतना ही कहा गया है कि रविवार को दोनों देशों के अधिकारियों- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी वार्ताकार विदेश मंत्री वांग यी के बीच टेलीफ़ोन पर बात हुई। इस बातचीत का केंद्र वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बना तनाव और उसे दूर करने के उपायों पर था। दोनों इस पर राज़ी हो गए कि सीमा पर तनाव कम करने के लिए सैनिकों को वापस बुलाया जाए, इलाक़े खाली किए जाएँ और हर हाल में शांति बनाई रखी जाए ताकि दोतरफ़ा सम्बन्धों को और मज़बूत किया जा सके।

क़रीब तीन साल पहले डोकलाम विवाद के बाद भी कुछ ऐसी ही रिपोर्ट आई थी। इन सवालों के मद्देनज़र ही विदेश मंत्रालय ने संसद में सवालों के जवाब में कहा था कि डोको-ला में भारतीय पोस्ट के नीचे डोकलाम में विवाद की जगह पर यथास्थिति को बनाए रखा गया है। डोकलाम विवाद 2017 में 16 जून से 28 अगस्त तक क़रीब ढाई महीने तक रहा था।

हालाँकि 5 मार्च 2018 को एक सवाल के जवाब में संसद में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी माना था कि भारतीय और चीनी सैनिकों ने डोकलाम में गतिरोध स्थल से दूर फिर से अपनी तैनाती की है और चीन ने वहाँ सेना के जवानों के लिए हेलीपैड और संतरी चौकियों का निर्माण किया है। 

यानी सरकार ने ही 2018 में माना था कि डोकलाम विवाद के बाद चीनी सैनिक सीमा क्षेत्र के पास निर्माण कार्य करते रहे थे।

और इसी को लेकर विशेषज्ञ अब आगाह कर रहे हैं। चीन में राजदूत रहे और चीनी अध्ययन संस्थान के निदेशक अशोक कांठा ने ‘द हिंदू’ से कहा, ‘डोकलाम में हमारे लिए सबक यह है कि एलएसी पर तनाव को समाप्त करने के लिए डिसइंगेजमेंट पर्याप्त नहीं है। यह ज़रूरी है कि हम उन अंतिम बिंदुओं को परिभाषित करें जहाँ तक सैनिकों को वापस जाना चाहिए और कोई भी स्थिति यथास्थिति की बहाली के बिना नहीं होनी चाहिए।’

कांठा सचेत करते हैं कि अगर सेना केवल डिसइंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन पर ही सहमत हो जाती है तो इससे नुक़सान हो सकता है। वह डोकलाम का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि चीनी सेना ने प्रमुख बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया है और डोकलाम में अपनी स्थिति को मज़बूत किया है। इसी संदर्भ में वह लद्दाख के बारे में कहते हैं, ‘हमें जल्दी नहीं करनी चाहिए, बल्कि यथास्थिति सुनिश्चित करने के लिए हमें पर्याप्त समय लेना चाहिए।’

वैसे, जिस डोकलाम मुद्दे का वह ज़िक्र कर रहे हैं वहाँ चीनी सैनिकों की स्थिति को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं और ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि 2017 में विवाद के बाद भी चीन अपनी स्थिति डोकलाम में मज़बूत कर रहा है।

सीमा विवाद के बीच लद्दाख से क्या वास्तव में चीनी सेना वापस जा रही है, वीडियो में देखिए आशुतोष का विश्लेषण। 

हालाँकि, विशेषज्ञों के अनुसार भारत-चीन-भूटान ट्राई-जंक्शन क्षेत्र के पास सड़क बनाने के चीन के प्रयास के बाद उपजी भारत और चीन के बीच शत्रुता समाप्त हो गई थी, लेकिन डोकलाम पठार के पार चीनी सेना के निर्माण कार्य को नहीं रोका जा सका। जबकि दोनों देशों के बीच आपसी सहमति है कि दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास ऐसी कोई निर्माण की गतिविधि नहीं करेंगे। 

ऐसी ही आशंका राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय में सैन्य सलाहकार रह चुके और तक्षशिला इंस्टीट्यूशन में रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम में निदेशक लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) प्रकाश मेनन ने भी डोकलाम मुद्दे पर जताई। उन्होंने कहा, 'मेरी समझ यह है कि (भारतीय और चीनी बयानों) में भिन्नताएँ भारत के लिए भविष्य में परेशानी की संभावना को दर्शाती हैं।' 

‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी सूत्रों ने कहा कि उपग्रह चित्रों और ज़मीनी रिपोर्टों से पता चलता है कि विवाद के कुछ महीनों बाद चीनी सैनिकों ने डोकलाम पठार में निर्माण गतिविधि को फिर से शुरू कर दिया था और 2018 के अंत तक डोकलाम पठार के पार 90 वर्ग किलोमीटर में अपनी स्थिति को मज़बूत कर लिया था। सूत्रों ने कहा कि चीनी सैनिकों ने भूटान के साथ विवादित क्षेत्र के अंदर दो सड़कें बनाई हैं। इसका मतलब यह है कि चीनियों ने भारत की आपत्तियों के बावजूद अपना काम जारी रखा। पहले उन्होंने सीमा क्षेत्र में घुसपैठ कर भारत पर दबाव बनाया और पीछे हटकर भारत पर एहसान जताने का ढोंग रचा और फिर निर्माण कार्य जारी रखा। 

अब लद्दाख में क्या ऐसी आशंका से इनकार किया जा सकता है कि चीन डोकलाम की स्थिति को नहीं दोहराएगा और ऐसे में भारत की क्या तैयारी है

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