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मैनपुरी: क्या शिवपाल की मदद के बिना डिंपल को जिता पाएंगे अखिलेश?

मैनपुरी: क्या शिवपाल की मदद के बिना डिंपल को जिता पाएंगे अखिलेश?

रामपुर और आजमगढ़ में लोकसभा का उपचुनाव हारने के बाद अब अखिलेश यादव के सामने अपनी निजी प्रतिष्ठा और अपने पिता मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत को बचाने की बड़ी चुनौती है। लेकिन क्या वह अपने चाचा शिवपाल यादव को अपने साथ ला पाएंगे?

उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा सीट पर चुनावी दंगल सज चुका है। ये सीट समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई है। मुलायम सिंह यादव की विरासत पर हक जताने के लिए सपा अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुनाव मैदान में उतारा है।

रामपुर और आजमगढ़ में लोकसभा का उपचुनाव हारने के बाद अब अखिलेश के सामने मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव की विरासत को बचाने की बड़ी चुनौती है। 

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव की मदद के बगैर वह डिंपल को चुनाव जिता पाएंगे?

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नामांकन में नहीं पहुंचे शिवपाल

डिंपल यादव ने सोमवार को यादव परिवार के साथ मैनपुरी में लोकसभा उपचुनाव के लिए पर्चा भरा। इस मौके पर शिवपाल यादव को छोड़कर परिवार के सभी राजनीतिक दिग्गज मौजूद थे। मुलायम सिंह के बाद यादव परिवार के सबसे वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव के पैर छूकर डिंपल यादव ने आशीर्वाद लिया। शिवपाल यादव की गैर मौजूदगी को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में रामगोपाल यादव ने कहा कि शिवपाल यादव से पूछ कर ही मैनपुरी सीट से उम्मीदवार के नाम का ऐलान किया गया है। वह आए या ना आएं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। चुनाव हम जीत रहे हैं। 

हालांकि पहले चर्चा थी कि शिवपाल यादव निर्दलीय तौर पर बीजेपी के समर्थन से चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन बाद में उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वह मुलायम सिंह की विरासत के नाम पर कोई सियासत नहीं करेंगे। इसलिए डिंपल के पर्चा भरने के मौके पर उनकी गैर मौजूदगी खल रही है। 

मैनपुरी में है शिवपाल का दबदबा

मैनपुरी में शिवपाल यादव का दबदबा माना जाता है। इस लोकसभा में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें भोगांव, किशनी (सुरक्षित), करहल, मैनपुरी और जसवंतनगर शामिल हैं। इसी साल हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो मुकाबला लगभग बराबरी का ही रहा। यहां करहल और किशनी सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गईं, जबकि भोगांव और मैनपुरी सीट पर बीजेपी जीती। जसवंतनगर सीट से शिवपाल सिंह यादव विजयी हुए। शिवपाल समाजवादी पार्टी से ही जीते।

इसलिए मैनपुरी लोकसभा का पलड़ा 3-2 से सपा की तरफ ही झुका हुआ नजर आया। लेकिन चुनाव के बाद अखिलेश ने उन्हें तवज्जो नहीं दी तो फिर उन्होंने अलग रास्ता अख्तियार करते हुए अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को मजबूत करना शुरू कर दिया। अब अगर शिपवाल अखिलेश से नाराज हुए तो इस सीट पर डिंपल की जीत की राह मुश्किल हो सकती है। इसलिए इस सीट पर पूरे चुनाव के दौरान शिवपाल पर निगाहें रहेंगी।

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मैनपुरी और मुलायम

मैनपुरी लोकसभा सीट पर 1996 से ही समाजवादी पार्टी का एकछत्र राज रहा है। यहां हुए सभी आम और उपचुनावों में सपा ने ही जीत का परचम लहराया है।

मुलायम सिंह यहा से कुल पांच बार जीते। 1996 में सबसे पहले वह यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे और रक्षा मंत्री बने। 1998 और 1999 में यहां से सपा के टिकट पर बलराम सिंह यादव जीते। 2004, 2009, 2014 और 2019 में मुलायम सिंह यहां जीते। 2004 में उनके इस्तीफे के बाद यहां हुए उपचुनाव में उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव जीते तो 2014 में हुए उपचुनाव में उनके पोते तेज प्रताप यादव यहां से जीते। 2019 में मुलायम सिंह यहां से पांचवी बार जीते। अब उनकी मौत के बाद यहां उपचुनाव हो रहा है। ऐसे में ये चुनाव उनकी विरासत संभालने की जंग का सवाल बन गया है।

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क्या कहते हैं आंकड़े?

मैनपुरी की सभी 5 विधानसभा सीटों का विश्लेषण करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार प्रेम सिंह शाक्य ने मुलायम को लगभग सभी क्षेत्र में टक्कर दी थी। मैनपुरी विधानसभा में प्रेम सिंह शाक्य महज 5 हजार वोट से मुलायम से पीछे रहे, जबकि भोगांव में उन्होंने मुलायम से 26 हजार वोट अधिक पाए। किशनी की सुरक्षित सीट पर जहां मुलायम को 92 हजार वोट मिले। वहीं शाक्य ने 80 हजार वोट अपनी झोली में डाले।

यादव बहुल करहल सीट पर शाक्य को 80 हजार वोट मिले, जबकि समाजवादी नेता के खाते में एक लाख 18 हजार वोट आए। इन चारों सीटों पर मुकाबला लगभग बराबरी का रहा। ऐसे में निर्णायक साबित हुई शिवपाल सिंह यादव की जसवंतनगर विधानसभा सीट। शिवपाल के इस गढ़ से मुलायम को एक लाख 57 हजार वोट मिले जबकि शाक्य 75 हजार से अधिक वोट से पीछे रहे। इन आंकड़ों के आधार पर ये कहना गलत नहीं होगा कि छोटे भाई शिवपाल के इलाके से ही मुलायम को लोकसभा चुनाव में वह मजबूती मिली जिससे वह बीजेपी उम्मीदवार को ठीक-ठाक अंतर से हराने में कामयाब रहे। लिहाजा मौजूदा चुनाव में शिवपाल की भूमिका अहम हो जाती है।

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धीरे-धीरे कम हुआ मुलायम का दबदबा 

हालांकि साल 1996 से ही यह सीट सपा के खाते में आती रही। मुलायम सिंह यहां पांच बार जीते भी। इसीलिए सपा नेता यह मानकर चल रहे हैं कि मुलायम के पक्ष में सहानुभूति फैक्टर होने से लोकसभा के हर एक क्षेत्र से डिंपल यादव को वोट हासिल होंगे। लेकिन पिछले चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि समय के साथ यहां मुलायम सिंह का दबदबा कम हुआ है। 1996 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 42.77% वोट मिले थे। इस चुनाव में मुलायम सिंह ने बीजेपी के उपदेश सिंह चौहान को करीब 52,000 वोटों से हराया था। लेकिन 2004 में मुलायम सिंह यादव ने रिकॉर्ड 63.96% वोट हासिल करके बीजेपी के अशोक शाक्य को करीब पौने दो लाख वोटों से हराया था। उसी साल हुए उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव को भी 62.64% वोट मिले थे। बीजेपी के अशोक शाक्य को 30.39% वोट मिले थे।

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2009 में मुलायम सिंह यादव 56.44% वोट हासिल करके बीजेपी के विनय शाक्य को करीब पौने दो लाख वोटों से हराने में कामयाब रहे थे। 2014 में मुलायम सिंह को 59.63% वोट मिले जबकि बीजेपी के शत्रुघ्न सिंह चौहान को 23.14% वोट मिले थे। 2014 के उपचुनाव में तेजप्रताप सिंह यादव 64.64% वोट हासिल करके बड़े अंतर से जीते थे। तब बीजेपी के प्रेम सिंह शाक्य को 32.79% वोट मिले थे। लेकिन 2019 के चुनाव में प्रेम सिंह शाक्य का वोट प्रतिशत बढ़कर 44.09% हो गया और मुलायम सिंह यादव सिर्फ 53.75% वोट हासिल कर पाए। समाजवादी पार्टी को करीब 11% वोटों का नुकसान हुआ था। मुलायम सिंह यादव सिर्फ 95,000 वोटों से जीत पाए।

बीजेपी ने मैनपुरी लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए पूर्व सांसद रघुराज सिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाया है। मैनपुरी लोकसभा सीट के खाली होने के बाद से ही बीजेपी लगातार यहां कमल खिलाने का दावा करती रही है। इससे पहले बीजेपी आजमगढ़ और रामपुर में भी कमल खिला चुकी है। इन दोनों ही सीटों पर बीजेपी ने पूरी ताकत से चुनाव लड़ा जबकि अखिलेश यादव प्रचार तक करने नहीं गए थे।

इसे लेकर अखिलेश की तीखी आलोचना भी हुई। लिहाजा अखिलेश मैनपुरी सीट को काफी गंभीरता से ले रहे हैं। लेकिन बीजेपी उन्हें यहां हराने के लिए पूरी ताकत लगा रही है।

अखिलेश के लिए प्रतिष्ठा का सवाल 

माना जा रहा है कि शिवपाल सिंह यादव के बगैर अखिलेश का मैनपुरी में मुलायम सिंह की विरासत को बचा पाना मुश्किल है। शायद यही वजह है कि यादव परिवार के वरिष्ठ नेताओं ने शिवपाल सिंह यादव को यहां से चुनाव नहीं लड़ने पर राजी किया है। रामगोपाल यादव भले ही परिवार में एकता की बात कर रहे हों, लेकिन जब तक शिवपाल सिंह यादव अखिलेश के साथ खड़े नहीं दिखेंगे तब तक मैनपुरी में समाजवादी पार्टी की जीत सुनिश्चित नहीं मानी जा सकती। ऐसे में मैनपुरी का चुनाव अखिलेश यादव के लिए निजी प्रतिष्ठा का चुनाव बन गया है।

अपनी निजी प्रतिष्ठा और अपने पिता मुलायम सिंह यादव की विरासत को बचाने के लिए क्या अखिलेश चाचा शिवपाल के प्रति नरम रुख अपना कर उन्हें अपने साथ लाएंगे यह एक बड़ा सवाल है।

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