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बिलकीस बानो रेप के दोषियों का स्वागत करना ग़लत: फडणवीस

बिलकीस बानो रेप के दोषियों का स्वागत करना ग़लत: फडणवीस

बिलकीस बानो के बलात्कार के दोषी 11 लोगों को जेल से रिहा होने के बाद भव्य स्वागत को क्या बीजेपी ग़लत मानती है? आख़िर बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने क्यों ग़लत बताया?

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बिलकीस बानो के बलात्कार के दोषी 11 लोगों को जेल से रिहा होने के बाद भव्य स्वागत की कड़ी आलोचना की है। फडणवीस ने आज कहा, 'एक आरोपी एक आरोपी है और उसके सम्मान का कोई औचित्य नहीं हो सकता।'

बलात्कार के उन सभी दोषियों को स्वतंत्रता दिवस पर गुजरात सरकार द्वारा एक पुरानी छूट नीति के तहत रिहा किया गया था। रिहाई के बाद दोषियों का मिठाई और माला के साथ स्वागत किए जाने का वीडियो सामने आया। इसके बाद से लोगों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी।

बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में मुंबई की एक विशेष अदालत ने 2008 में सभी ग्यारह दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था।

जिन 11 दोषियों को समय से पहले रिहा किया गया, उनमें जसवंतभाई नई, गोविंदभाई नई, शैलेश भट्ट, राधेशम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोर्धिया, बकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना शामिल हैं।

इन 11 दोषियों ने 15 साल से अधिक जेल की सजा काट ली थी। उनमें से एक ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

इस फ़ैसले पर आलोचनाएँ झेल रही गुजरात सरकार ने कहा है कि उसने 1992 की नीति के अनुसार रिहाई की याचिका पर विचार किया जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था।

बता दें कि उम्रक़ैद की सज़ा पाए लोगों को छूट देने के बारे में जो नीति गुजरात में 1992 से चल रही थी, उसमें बलात्कारियों और हत्यारों तक को 14 साल के बाद रिहा करने का प्रावधान था लेकिन 2014 के बाद जो नीति बनी, उसमें ऐसे क़ैदियों की सज़ा में छूट देने का प्रावधान हटा दिया गया। बिलकीस बानो मामले के दोषियों की तरफ़ से कहा गया था कि उनको सज़ा में छूट का फ़ैसला 2014 से पहले लागू नीति (यानी 1992 की नीति) के अनुसार हो क्योंकि जिस साल (2008) उन्हें सज़ा दी गई, उस समय 1992 की ही नीति लागू थी। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में उनकी बात मान ली और राज्य सरकार से कहा कि इनको छूट देने के बारे में फ़ैसला 1992 की नीति के अनुसार हो क्योंकि इनकी सज़ा की घोषणा 2008 में हुई थी जब 1992 की ही नीति लागू थी।

बहरहाल, महाराष्ट्र विधान परिषद में भंडारा जिले की एक घटना के बारे में चर्चा का जवाब देते हुए फडणवीस ने कहा कि बिलकीस बानो के मुद्दे को सदन में उठाने का कोई कारण नहीं था।

फडणवीस ने कहा, "गुजरात के 2002 के बिलकीस बानो मामले के दोषियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रिहा कर दिया गया था। लेकिन यह गलत था अगर किसी अपराध के आरोपी को 'सम्मानित' किया जाता है और इस तरह के कृत्य का कोई औचित्य नहीं हो सकता है।"

बता दें कि उन दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए और उसको सूचीबद्ध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट आज सहमत हो गया है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एक अन्य याचिकाकर्ता द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की।

इन दोषियों को क़रीब 15 साल पहले सजा सुनाने वाले जस्टिस साल्वी ने कहा, 'सरकार को दोषियों को दी गई सजा, उनके द्वारा किए गए अपराधों और पीड़िता पर भी विचार करना चाहिए था। मुझे नहीं लगता कि इनमें से कुछ भी किया गया है। मैंने सुना है कि छूट देते समय 1992 की नीति के दिशा निर्देश का पालन किया गया है, न कि 2014 में बनाई गई नई नीति का। नई नीति में ऐसे अपराधों में छूट के प्रावधान नहीं हैं।'

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