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नोटबंदी, जीएसटी ने 43% ग़रीबों का रोज़गार छीना - सर्वे

नोटबंदी, जीएसटी ने 43% ग़रीबों का रोज़गार छीना - सर्वे

एक ताज़ा सर्वेक्षण ने दावा किया है कि नोटबंदी, जीएसटी और ई-कॉमर्स ने दुकानदारों, व्यापारियों और ग़रीब तबक़े की कमर तोड़ दी है। इसकी मार उद्योगों पर भी पड़ी है।

एक ताज़ा सर्वेक्षण ने बेहद चौंकाने वाला दावा किया है कि नोटबंदी, जीएसटी और ई-कॉमर्स ने दुकानदारों, व्यापारियों और ग़रीब तबक़े की कमर तोड़ दी है। दुकानों व व्यापारिक गतिविधियों से जुड़ी कम्पनियों में काम करने वाले या अपना ख़ुद का छोटा-मोटा काम करने वाले क़रीब 43 प्रतिशत लोग बेरोज़गार हो गए हैं।

यही नहीं, अति लघु, लघु और मँझोले उद्योगों पर भी नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी मार ने इन क्षेत्रों में भी बेरोज़गारी का भारी संकट खड़ा कर दिया है। सर्वेक्षण का दावा है कि अति लघु उद्योगों में 32 प्रतिशत, लघु उद्योगों में 35 प्रतिशत और मँझोले उद्योगों में 24 प्रतिशत लोग बेरोज़गार हो गए।

'आइमो' ने किया सर्वेक्षण

यह सर्वेक्षण ‘ऑल इंडिया मैन्युफ़ैक्चरर्स ऑरगनाइज़ेशन' (आइमो) ने इसी अक्टूबर महीने में किया है। 'आइमो' का कहना है कि इस सर्वेक्षण के दौरान पूरे देश में दुकानदारों, अति लघु, लघु और मँझोले उद्योगों के 34 हज़ार प्रतिनिधियों से बातचीत की गई। ख़ास तौर से छोटे-मँझोले उद्योगों के प्रमुख केन्द्रों पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल, कर्णाटक और हैदराबाद में कारोबारी संगठनों और व्यावसायियों से गहन बातचीत की गई।

सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि सबसे ज़्यादा ख़राब असर उन लोगों पर पड़ा जो ख़ुद का काम करते हैं या दूसरे छोटे-मोटे धन्धों में लगे हैं, जैसे दर्ज़ी, मोची, नाई, प्लम्बर, इलेक्ट्रीशन, निर्माण कार्य में लगे मिस्त्री व मज़दूर आदि।

मुनाफ़े में आई भारी कमी

रोज़गार में इतनी भारी कटौती होने का एक बड़ा कारण यही है कि दुकानदारों, व्यापारियों और उद्योगों के मुनाफ़े में भारी कमी आ गई है। इनमें से बहुतेरे तो कोई मुनाफ़ा कमा ही नहीं पा रहे हैं। यदि सर्वेक्षण के आँकड़े सही हैं तो दुकानदार और व्यापारिक तबक़ा तो वाक़ई बहुत संकट में है क्योंकि सर्वेक्षण के मुताबिक़ यदि 2014-15 में व्यापारिक क्षेत्र से जुड़ी 100 कम्पनियाँ मुनाफ़े में थीं, तो इस साल केवल ऐसी 30 कम्पनियाँ मुनाफ़ा कमा सकीं। यानी व्यापारिक क्षेत्र की 70 प्रतिशत इकाइयाँ मुनाफ़े में नहीं रहीं।

अति लघु उद्योगों का हाल भी बहुत बुरा है और उनमें केवल 47 प्रतिशत कम्पनियाँ ही मुनाफ़ा अर्जित कर सकीं। लघु उद्योगों में 65 प्रतिशत और मँझोले उद्योगों में 76 प्रतिशत कम्पनियाँ ही मुनाफ़ा दिखा सकीं। ज़ाहिर है कि अगर ये आँकड़े और 'आइमो' का दावा सही है, तो यक़ीनन छोटे-मोटे कारोबारी, व्यापारी और छोटे उद्योग भयानक आर्थिक बदहाली के दौर से गुज़र रहे हैं।

'आइमो' के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. ई. रघुनाथन का कहना है कि नोटबंदी के ठीक पहले तक 2015-16 में पहले के सालों के मुक़ाबले कारोबार में अच्छी-ख़ासी बढ़ोतरी थी, केन्द्र में मोदी सरकार थी, नये नेतृत्व से लोगों को बड़ी उम्मीदें थीं, सब कुछ अच्छा-अच्छा दिख रहा था। लेकिन पहले नोटबंदी और फिर हड़बड़ी में लागू जीएसटी के कारण सारी कारोबारी गतिविधियों में गिरावट आने लग गई; दुकानदारों, व्यापारियों और उद्योगों के लिए धन की उपलब्धता नहीं रही; सरकार के पास बक़ाया पड़े भुगतान लटके रहे और जीएसटी आदि के नये नियमों-नीतियों के पालन में दुविधा की स्थिति का भी बुरा असर कारोबारी गतिविधियों पर पड़ा। रही-सही कसर ई-कॉमर्स कम्पनियों ने पूरी कर दी क्योंकि क़ीमतों के मामले में दुकानदार और आम व्यापारी ई-कॉमर्स कम्पनियों से स्पर्धा में टिक नहीं पाए।

नहीं मिला योजनाओं का फ़ायदा

सर्वेक्षण का एक निष्कर्ष यह भी है कि 'मेक इन इंडिया,' 'डिजिटल इंडिया,' 'स्किल इंडिया' और 'स्टार्ट अप इंडिया' जैसी योजनाएँ दुकानदारों, व्यापारियों और छोटे उद्योगों के लिए काम की नहीं रहीं। केवल मँझोले उद्योगों को 'डिजिटल इंडिया' का फ़ायदा हुआ। रघुनाथन का कहना है कि 2015-16 में नये रोज़गार में बढ़ोतरी 115 प्रतिशत तक हुई थी, लेकिन अगले तीन सालों में इसमें लगातार गिरावट आती गई और इसका एक ही कारण नज़र आता है, वह है नोटबंदी और जीएसटी।

सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि सबसे ज़्यादा ख़राब असर असंगठित क्षेत्रों जैसे प्लास्टिक उद्योग, भवन निर्माण, कपड़ा, ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता और बिजली का सामान बनाने वाले उद्योग, माचिस कारखाने, आतिशबाज़ी, रंगाई-सिलाई उद्योग, चमड़ा, छपाई आदि से जुड़े उद्योगों पर पड़ा है। यह सारे उद्योग ऐसे हैं, जहाँ ग़रीब कारीगर, मिस्त्री, हेल्पर और मज़दूर भारी संख्या में काम करते हैं।

रघुनाथन का कहना है कि मौजूदा स्थिति वाक़ई बहुत भयावह है और सरकार को इस ओर तुरन्त और बड़ी गम्भीरता से ध्यान देना चाहिए। इसके लिए इन उद्योगों को सस्ती ब्याज दरों पर क़र्ज़ मिलना चाहिए और वर्तमान बक़ाया क़र्ज़ के भुगतान में ज़रूरी रियायतें दी जानी चाहिए।

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