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सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को कहां सही ठहरायाः कांग्रेस

सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को कहां सही ठहरायाः कांग्रेस

नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बीजेपी और कांग्रेस अलग-अलग नजरिए से देख रहे हैं। इसमें कांग्रेस की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है। कांग्रेस ने आज 2 जनवरी को सवाल उठाया कि सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को सही कहां ठहराया है। 

नोटबंदी पर बीजेपी और कांग्रेस ने अपनी प्रतिक्रियाओं के जरिए काफी कुछ कहने की कोशिश की है।  कांग्रेस पार्टी ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को सही ठहराया है, यह "पूरी तरह से भ्रामक और गलत है।" एक जज ने अपनी टिप्पणी में इस बात को साफ तौर पर कहा कि संसद को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए था।

पार्टी प्रवक्ता जयराम रमेश ने पार्टी की ओर से कहा- सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ इस बात पर फैसला सुनाया है कि 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा करने से पहले आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 26 (2) को सही तरीके से लागू किया गया था या नहीं। इसमें इससे कुछ भी न तो अधिक है, और न कुछ कम है। एक माननीय जज ने अपनी असहमति राय में कहा है कि संसद को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए था।

जयराम रमेश ने सवाल किया- नोटबंदी करने के जो लक्ष्य बताए थे उनमें से कोई भी लक्ष्य क्या पूरा हुआ। नकली करेंसी का चलन क्या कम हुआ, उस पर कितना अंकुश लग पाया, कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर भारत कितना बढ़ सका, आतंकवाद की फंडिंग क्या बंद हो गई और कितने काले धन का पता लगा। ये महत्वपूर्ण वादे हासिल नहीं किये जा सके। नोटबंदी ने विकास की गति को नुकसान पहुंचाया, छोटे उद्योगों को बर्बाद कर दिया गया, एमएसएमई और अनौपचारिक क्षेत्र खत्म हो गए, लाखों लोगों की रोजी-रोटी खत्म कर दी गई।

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि जिन चार जजों ने नोटबंदी की प्रक्रिया को सही ठहराया है, उन चार जजों ने नोटबंदी के परिणाम पर टिप्पणी नहीं की है। हमारी आपत्ति परिणाम पर थी, इससे एमएसएमई सेक्टर तबाह हो गया, लाखों लोगों की नौकरियां चली गई थीं।

पवन खेड़ा के सवाल के जवाब में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उनकी टिप्पणियों पर क्या बात करूं। एक अखबार की खबर को दिखाते हुए रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि ये जवाब है उनकी बात का। रविशंकर के मुताबिक उस खबर में दावा किया गया था कि एक कंपनी के सेटअप से 50 हजार लोगों को नौकरियां मिलीं। पूर्व कानून मंत्री ने कहा कि यह एक उदाहरण नहीं है। ऐसे बहुत उदाहरण हैं।

बता दें कि नोटबंदी के फैसले में पांच जजों में जस्टिस बी वी नागरत्ना एकमात्र जज थीं, जिन्होंने अपनी कड़ी असहमति जताई है।

जस्टिस नागरत्ना ने केंद्र सरकार की 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना को "गैरकानूनी" बताया और तर्क दिया कि भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के अनुसार, आरबीआई को स्वतंत्र रूप से नोटबंदी की सिफारिश करनी चाहिए थी न कि सरकार की सलाह पर।

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