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नोटबंदीः हलफनामे के लिए वक्त मांगा, कोर्ट ने कहा - शर्मनाक 

नोटबंदीः हलफनामे के लिए वक्त मांगा, कोर्ट ने कहा - शर्मनाक 

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को नोटबंदी मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल करने के लिए जब समय मांगा तो अदालत ने इसे शर्मनाक बताया। अदालत ने कहा कि इससे पहले एक महीने का वक्त दिया गया था। पढ़िए पूरी रिपोर्टः 

सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी पर बुधवार को सुनवाई नहीं हो सकी। अदालत ने कहा - यह शर्मनाक है। इसकी वजह यह रही कि केंद्र सरकार ने हलफनामा देने के लिए और समय मांगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट सरकार को 4 हफ्ते का समय इसके लिए पहले ही दे चुकी थी। इस मामले की सुनवाई अब 24 नवंबर को होगी। 

लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में  पांच जजों की बेंच जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामसुब्रमण्यम, और बी.वी. नागरत्ना ने जैसे ही इस मामले की सुनवाई शुरू की, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने हलफनामा दाखिल करने के लिए और समय मांगा। 

लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस नागरत्ना ने हलफनामे के लिए और समय मांगने पर असंतोष जताते हुए कहा- आम तौर पर, एक संविधान पीठ इस तरह कभी स्थगित नहीं होती है। हम एक बार शुरू करने के बाद कभी भी इस तरह नहीं उठते हैं। यह इस अदालत के लिए बहुत शर्मनाक है। 

केंद्र के पास मामले में अपना पक्ष रखने के लिए चार सप्ताह का समय था। जो समय आपको दिया गया है, उसे कम या अपर्याप्त समय नहीं कहा जा सकता है।


- जस्टिस नजीर, सुप्रीम कोर्ट, 9 नवंबर

इसी मामले में एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि संविधान पीठ से स्थगन की मांग करना बेहद असामान्य है।अधिवक्ता पी चिदंबरम ने भी कहा कि यह अदालत के लिए शर्मनाक स्थिति है। मैं इसे इस अदालत के विवेक पर छोड़ता हूं।

मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा की थी। उस समय प्रचलन में 500 और एक हजार के नोटों को अमान्य घोषित कर दिया गया था। सरकार ने इन नोटों को यह कह कर अमान्य किया था कि ब्लैक मनी का सर्कुलेशन बहुत ज्यादा है। ब्लैक मनी के जरिए आतंकवाद को फंडिंग की जा रही है। नोटबंदी से ब्लैक मनी वापस आएगी और आतंकवाद की कमर टूट जाएगी। नोटबंदी के बाद 2,000 रुपये के नोट और 500 रुपये के नोट नए डिजाइन के साथ पेश किए गए। बहरहाल, इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। छह साल बाद संविधान पीठ याचिका पर सुनवाई कर रही है। 

12 अक्टूबर को, वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने केंद्र सरकार या भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इस संबंध में एक "व्यापक हलफनामा" दाखिल न करने पर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान खींचा था। जिसके बाद बेंच ने केंद्र को निर्देश दिया और आरबीआई से भी प्रतिक्रिया मांगी। लेकिन बुधवार को केंद्र ने व्यापक हलफनामा दायर करने के लिए और समय मांगा तो सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 24 नवंबर के लिए स्थगित कर दी।

इस मामले में पिछली तारीखों में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के इस अनुरोध को ठुकरा दिया था कि इस मामले की सुनवाई बंद कर दी जाए। केंद्र सरकार ने इसे निष्फल और एक अकादमिक प्रैक्टिस घोषित करते हुए बंद करने की याचिका दायर की थी। अदालत ने सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है जिसमें अपनाई गई प्रक्रिया की वैधता पर केंद्र और आरबीआई से विस्तृत जवाब की जरूरत होगी।

जस्टिस एस. ए. नज़ीर की की पीठ ने सरकार से यह भी कहा था कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपनी सरकार के नोटबंदी अभियान की घोषणा करने से पहले से संबंधित गोपनीय फाइलें तैयार रखे। अदालत ने वेंकटरमणी को 7 नवंबर 2016 से 8 नवंबर 2016 के बीच सरकार और आरबीआई के बीच पत्राचार दिखाने के लिए एजेंडा दस्तावेज और निर्णय पत्र अपने पास रखने को कहा।

सरकार ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट को खुद को एक ऐसे मामले में नहीं उलझाना चाहिए जो एक अकादमिक गतिविधि की तरह है।

 

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि नोटबंदी से नागरिकों के कई संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, जैसे संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 300 ए), समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14), किसी भी व्यापार, व्यवसाय या व्यवसाय को चलाने का अधिकार (अनुच्छेद 19) और जीवन का अधिकार और आजीविका का अधिकार (अनुच्छेद 21)।

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