तो क्या ऐसे दिल्ली डूबने से बच सकती है?

07:38 pm Jul 20, 2023 | दिलबर गोठी

45 साल बाद दिल्ली फिर पानी-पानी हुई। इस बार यमुना आल टाइम हाई लेवल पर पहुंची और दिल्ली के उन इलाकों को डुबो दिया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। 1978 की बाढ़ में उत्तरी दिल्ली के हिस्से मुखर्जी नगर, मॉडल टाउन तथा आसपास की कॉलोनियाँ डूबी थीं, इस बार रिंग रोड, आईटीओ और सुप्रीम कोर्ट तक पानी पहुंच गया। यमुना के आसपास रहने वाले 30 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गए। अब ब्लेमगेम भी चल रहा है। दिल्ली को साजिशन बाढ़ से डुबोने तक के आरोप लग रहे हैं। प्रधानमंत्री जर्मनी गए तो वहां से भी दिल्ली का हाल जानने के लिए फोन आए जबकि केजरीवाल बेंगलुरू तक गए तो बीजेपी नेताओं ने उन्हें गैर जिम्मेदार बता दिया। पानी उतरा तो चिंता की गहराई भी कम होने लगी है। दिल्ली में अगले साल फिर बाढ़ आएगी और दिल्ली डूबेगी।

पिछली बार दिल्ली 1978 में डूबी थी। यमुना फिर न डूबे, इसके लिए एक रिपोर्ट तैयार की गई थी लेकिन जब बाढ़ का पानी उतरता है तो फिर सारी बातें भुला दी जाती हैं, उसी तरह वह रिपोर्ट भी अब कहीं फाइलों की धूल चाट रही होगी। बाढ़ के बाद उस समय डी.डी.ए. के टाउन प्लानर आर.जी. गुप्ता ने यमुना पर यह बहुआयामी रिपोर्ट तैयार की थी। उस रिपोर्ट की चर्चा 1993 की मदनलाल खुराना सरकार तक तो थी लेकिन उसके बाद इसे पूरी तरह भुला दिया गया।

दिल्ली में पल्ला से ओखला तक 22 किलोमीटर लंबी यमुना दिल्ली की लाइफलाइन है। आधी से ज्यादा दिल्ली को यमुना से ही पीने का पानी नसीब होता है। इस योजना के कई बिंदु थे। पहला बिंदु तो यह था कि दिल्ली में यमुना को गहरा कर दिया जाए। हर साल बाढ़ के साथ हजारों टन गाद भी यमुना में आती है। इससे यमुना की गहराई लगातार कम होती जा रही है। यमुना में ख़तरे का निशान 1958 में 204.83 मीटर पुराने यमुना पुल पर तय किया गया था। कुछ समय पहले ही इसे आधा मीटर बढ़ाकर 205.33 मीटर किया गया है लेकिन यमुना की सफाई की कोई योजना नहीं बनाई गई। इसका नतीजा यह निकला है कि अब 3 लाख 59 हजार क्यूसेक पानी से ही यमुना खतरे का निशान पार कर जाती है जबकि 1978 में करीब 7 लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोड़ा गया था और यमुना का जलस्तर 207.49 मीटर पर पहुंचा था। अब 3 लाख क्यूसेक पानी से ही 208.67 मीटर तक पहुंच गया। अगर यमुना को गहरा किया जाए तो न सिर्फ यमुना की गंदगी खत्म होगी, दिल्ली में अधिक पानी स्टोर करने की क्षमता बनेगी और हर साल पीने के पानी के लिए हाथ नहीं पसारने होंगे। यही नहीं, हर साल बाढ़ का खतरा भी कम होगा।

उस रिपोर्ट का एक बिंदु यह भी था कि यमुना को चेनलाइज कर दिया जाए, ठीक उसी तरह जैसे लंदन मे टेम्स नदी है। यमुना के दोनों किनारों को पक्का कर दिया जाए और इसकी चौड़ाई को कम करके किनारों का सौंदर्यीकरण किया जाए।

यमुना को गहरा करने के लिए रेत खनन के बाकायदा ठेके दिए जाएं। अभी सारी रेत माफिया की नजर चढ़ जाती है। रेत बेचकर ही सरकार यमुना को गहरा करने का बड़ा खर्चा निकाल सकती है।

सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि यमुना नदी बदबू मार रहे एक गंदे नाले की बजाय एक नदी का रूप ले लेगी। उसमें जल बहने लगेगा और यमुना फिर से जीवित हो उठेगी। यमुना का प्रयोग परिवहन के एक साधन के रूप में किया जा सकता है। यमुना में स्टीमर चलाकर वजीराबाद से ओखला तक सड़कों पर वाहनों के बोझ को कम किया जा सकता है। यमुना की चौड़ाई कम करके उसे पक्का बनाने से उसके किनारे सबसे कीमती जमीन सरकार को मिलेगी जिसका कमर्शल उपयोग करके सरकार अरबों रुपए एकत्र कर सकती है।

रिपोर्ट में एक विशेष पहलू यह भी था कि यमुना में गिरने वाले तमाम 16 नालों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएं। यमुना में सारा पानी ट्रीट होकर ही आए। 1993 में मदन लाल खुराना सरकार ने इस रिपोर्ट के मद्देनजर ही दो नालों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की शुरुआत की थी लेकिन बाद में यह योजना फाइलों में ही अटककर रह गई। आज यमुना में रोजाना 500 टन से ज्यादा गंदगी गिरती है।

दिल्ली सरकार की अपनी रिपोर्ट बताती है कि यमुना का पानी पीने तो क्या नहाने या कपड़े धोने के लायक भी नहीं है। हर साल छठ पूजा के दौरान यमुना की गंदगी राष्ट्रीय चर्चा का मुद्दा बनती है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पिछले तीन चुनावों में दिल्ली की जनता को यमुना में डुबकी लगवाने का वादा करते आ रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि यमुना की सफाई के लिए हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी वह दिनों-दिन मैली होती जा रही है। इसलिए यमुना को चौनलाइज करने के साथ-साथ इसमें और गंदगी न आए, इसके ठोस प्रयास करने की जरूरत होगी। असल में यही सबसे बड़ा और मुश्किल काम है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि अगर दिल्ली में यमुना को गहरा कर दिया जाए तो बड़ी मात्रा में बाढ़ का पानी दिल्ली में ही रुक सकेगा। अभी बाढ़ आती है और दिल्ली को डुबोकर चली जाती है। तब दिल्ली आने वाले पानी का बड़ा हिस्सा दिल्ली में ही रुक सकेगा और दिल्लीवालों की प्यास भी बुझा सकेगा। आज यमुना में इतनी क्षमता बची ही नहीं कि वह इस पानी का भंडारण कर सके। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के पानी को दिल्ली में ही रोकने के लिए पल्ला से लेकर वजीराबाद तक गड्ढे खोदने की एक योजना पांच साल पहले बड़े जोर-शोर से शुरू की थी और किसानों की जमीन किराए पर लेने की बात कही गई थी लेकिन उस योजना का क्या हुआ, कोई नहीं जानता।