सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि शरजील इमाम की जमानत याचिका पर सुनवाई में तेजी लाने पर विचार करे। छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम 2020 के पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश के मामले में आरोपी हैं। उनपर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है।
अदालत मामले में जमानत की मांग करने वाली शरजील की रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सीधे उसके समक्ष दायर रिट पर विचार करने से इनकार कर दिया, लेकिन हाई कोर्ट से सुनवाई में तेजी लाने के उनके अनुरोध पर विचार करने के लिए कहने के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। वैसे, हाईकोर्ट उनकी याचिका पर अगली सुनवाई 25 नवंबर को करेगा, यह पहले से ही तय है।
शरजील इमाम की जमानत याचिका पर 7 अक्टूबर को ही सुनवाई होनी थी, लेकिन इसको स्थगित कर दिया गया था। इन मामलों को 7 अक्टूबर को जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शलिन्दर कौर की नई बेंच के सामने लिस्ट किया गया था। लेकिन जस्टिस नवीन चावला के कोर्ट में न बैठने से उस सुनवाई को 25 नवंबर तक के लिए टाल दिया गया। ऐसा पहली बार नहीं है। इससे पहले भी यह मामला कभी जजों के तबादले, कभी जज के उपलब्ध न होने, कभी सरकारी वकील के न होने की वजह से टलता रहा है। चार बार तो इसी तरह से सुनवाई टल चुकी है।
बहरहाल, अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि शरजील इमाम अगली तारीख पर जमानत याचिका पर यथाशीघ्र सुनवाई करने के लिए हाईकोर्ट से अनुरोध करने के लिए स्वतंत्र होंगे और उम्मीद है कि हाईकोर्ट उस अनुरोध पर विचार करेगा।
इससे पहले जब सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने शुनवाई शुरू की तो शरजील की याचिका को शुरू में ही खारिज करने की कोशिश की। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार हालाँकि शरजील की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि वह जमानत के लिए दबाव नहीं बना रहे हैं, बल्कि चाहते हैं कि हाई कोर्ट बिना किसी देरी के इस पर विचार करे। उन्होंने बताया कि यह मामला अप्रैल 2022 से हाई कोर्ट में लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बताया कि शरजील के खिलाफ आठ एफआईआर दर्ज हैं, लेकिन दवे ने कहा कि यह आवेदन केवल दंगों के मामले के पीछे की बड़ी साजिश से संबंधित है।
निचली अदालत द्वारा ज़मानत देने से इनकार करने के बाद शरजील ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। फ़रवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के कथित 'मास्टरमाइंड' होने के आरोप उन पर और कई अन्य लोगों पर लगे। उनके ख़िलाफ़ कड़े गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए और भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। शहर में नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों के दौरान दंगे भड़क उठे थे। इसमें 50 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे।
इस साल 29 मई को दिल्ली हाई कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान जामिया क्षेत्र में कथित भड़काऊ भाषणों को लेकर उनके ख़िलाफ़ दर्ज देशद्रोह के मामले में उनको वैधानिक ज़मानत दे दी थी।