पूर्वांचली वोट पर नड्डा ने पलीता लगाया, जेडीयू कर सकेगा भरपाई?

01:37 pm Dec 26, 2024 | प्रेम कुमार

दिल्ली में पूर्वांचली वोटर निर्णायक हैं। इसके लिए दिल्ली की सियासत राजनीतिक दलों में घात-प्रतिघात करा रही है। जेपी नड्डा के राज्यसभा में दिए गये रोहिंग्या और घुसपैठिये पर बयान को जिस तरह से संजय सिंह ने तत्काल पकड़ा और पूर्वांचलियों की तुलना रोहिंग्या से करने की ‘हिम्मत कैसे हुई’ का सवाल उठाया, उसी समय यह दिल्ली विधानसभा चुनाव का बड़ा मुद्दा बन गया। बीजेपी के लिए बड़ी मुसीबत यही है कि मनोज तिवारी के अलावा कोई पूर्वांचल का नेता उसके पास नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि इतना प्रभावी नेता आम आदमी पार्टी के पास भी नहीं है। कांग्रेस के पास कन्हैया कुमार है लेकिन इस नाम का फायदा अब तक कांग्रेस को मिला नहीं है। आम आदमी पार्टी ने अवध ओझा को इसी उद्देश्य से जोड़ा है ताकि पूर्वांचली कुनबा पार्टी में दिखाई पड़ सके। संजय सिंह, गोपाल राय, सौरभ भारद्वाज जैसे पूर्वांचली नेताओं की टोली पहले से ही आप में मौजूद है। 

दिल्ली में पूर्वांचलियों के आत्मसम्मान का मुद्दा आम आदमी पार्टी जोर-शोर से उठा रही है और यह ज़मीन पर कारगर भी नज़र आने लगा है। दरअसल, सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने अरविन्द केजरीवाल को ‘रेवड़ी मैन’ के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरू किया है जो केजरीवाल के दिल्ली मॉडल को रेवड़ी मॉडल कहकर मजाक उड़ाने वालों का जवाब है। चूँकि मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त इलाज, अकाउंट में रकम जैसी सुविधाओं का फायदा भी सबसे ज्यादा पूर्वांचलियों को हो रहा है, इसलिए उनके आत्मसम्मान के लिए आम आदमी की ओर से उठाई जा रही आवाज़ भी अर्थपूर्ण लग रही है। 

दिखने लगी है बीजेपी की घबराहट

बीजेपी की घबराहट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें बिहार के नेताओं को दिल्ली में बुलाकर प्रेस कॉन्फ्रेन्स करानी पड़ रही है। जेडीयू नेता ललन सिंह और संजय झा के मुंह से अरविन्द केजरीवाल को बुरा-भला कहवाया जा रहा है। जेडीयू बमुश्किल एक या दो सीटों पर उम्मीदवार देगी, मगर बीजेपी के लिए जेड़ीयू का महत्व पूर्वांचली वोटरों को एक मुश्त आम आदमी पार्टी में जाने से रोकने का मक़सद बड़ा है। बीजेपी के लिए पॉजिटिव बात ये है कि यही पूर्वांचली वोटर लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट देते आए हैं। मगर, जेपी नड्डा के बयान के बाद पूर्वांचलियों में नाराज़गी है जिसे हवा देने का काम आम आदमी पार्टी करती दिख रही है।

दिल्ली में 25 फीसदी पूर्वांचल वोटर माने जाते हैं। पूर्वांचली वो हैं जो पूर्वी यूपी, बिहार और झारखण्ड से आकर दिल्ली में बसे हैं। उनकी कई पीढ़ियां दिल्ली में रहती आयी हैं। कम से कम दिल्ली की 20 सीटों पर पूर्वांचलियों का बोलबाला है। इनमें त्रिलोकपुरी, बुराड़ी, उत्तम नगर, संगम विहार, जनकपुरी, किराड़ी, विकासपुरी, समयपुर बादली, गोकलपुर, मटियाला, द्वारका, नांगलोई, करावल नगर जैसी सीटें शामिल हैं। दरअसल, पूर्वांचली वोटर ही ये तय करेंगे कि आम आदमी पार्टी के गढ़ दिल्ली में बीजेपी विधानसभा चुनाव में सेंधमारी कर पाती है या नहीं। 

कांग्रेस भी त्रिकोण बनाने की जद्दोजहद में

आम आदमी पार्टी को डर दलित और मुस्लिम वोटों का भी है जिस पर कांग्रेस डोरे डाल रही है। मगर, इंडिया गठबंधन में होने के कारण ये वोटर आम आदमी पार्टी के खिलाफ उस हद तक नहीं जाएंगे कि इसका फायदा बीजेपी को हो जाए। इसलिए कांग्रेस की बहुत ज्यादा चिन्ता आम आदमी पार्टी को नहीं है। दूसरी बात ये है कि जब पूर्वांचली के सम्मान की लड़ाई को लेकर आम आदमी पार्टी मैदान में उतर चुकी है तो पूर्वांचलियों में दलित भी हैं, मुस्लिम भी। और, ये समुदाय पूर्वांचली में मोटे तौर पर कवर हो जाते हैं।

पूर्वांचलियों के सम्मान में उतरने के नाम पर आम आदमी पार्टी ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक बीजेपी को सीधे चुनौती दी है तो दूसरी तरफ कांग्रेस को भी दलित-मुस्लिम वोटों का एकमुश्त लाभ न हो, इसे सुनिश्चित किया है।

दिल्ली में राहुल गांधी का सीमित दखल 

कांग्रेस में दलित और मुस्लिम वोटरों को आकर्षित करने वाला सबसे बड़ा चेहरा राहुल गांधी हैं और वो राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा करने में कामयाब भी हैं। मगर, दिल्ली विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी खुद का इस्तेमाल सीमित तरीके से ही करना चाहते हैं। जाहिर है कि दिल्ली की प्रदेश कांग्रेस और दिल्ली में कांग्रेस के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों को कोई बड़ा सपोर्ट नहीं मिलता दिख रहा है। फिर भी कांग्रेस ने अपने दिग्गज उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारकर कई सीटों पर प्रत्याशी के दम पर चुनौती पेश करने की राह पकड़ी है। 

आम आदमी पार्टी के पास ‘रेवड़ी मैन’ अरविन्द केजरीवाल हैं और उनके मुकाबले दिल्ली में प्रभावशाली नेता कोई भी नज़र नहीं आता। चुनाव प्रचार हो या फिर प्रत्याशियों का एलान- आम आदमी पार्टी ने लीड ले रखी है। इसके अलावा संसद के शीतकालीन सत्र का भी आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बखूबी इस्तेमाल किया है। बीजेपी 25 दिसंबर तक प्रत्याशियों का एलान तक नहीं कर पायी है। यहां तक कि कांग्रेस भी बीजेपी से इस मामले में आगे चल रही है। ऐसे में समझा जा सकता है कि दिल्ली की जंग में आम आदमी पार्टी सबसे आगे है और पूर्वांचली वोटर एक बार फिर आम आदमी पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं।