अडानी हिंडनबर्ग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा है कि सेबी की जांच और विशेषज्ञ समिति के सदस्यों की निष्पक्षता पर संदेह करने के लिए कोई सामग्री नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट लाईव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिकाओं के उस समूह पर फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह की कंपनियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई थी।
सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से कहा कि सेबी को शेयर बाजार को शॉर्ट-सेलिंग जैसी घटनाओं से होने वाली अस्थिरता से बचाने के लिए कदम उठाने चाहिए।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सेबी की जांच पर लगाए गए आरोपों को मानने से कोर्ट ने इंकार कर दिया।
लाईव लॉ की रिपोर्ट कहती है कि सीजेआई ने याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण से कहा कि सेबी एक वैधानिक निकाय है जिसे खास तौर से शेयर बाजार में होने वाले हेरफेर की जांच करने का काम सौंपा गया है।
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या बिना किसी उचित सामग्री के एक कोर्ट के लिए यह कहना उचित है कि हमें सेबी पर विश्वास नहीं है और हम जांच के लिए अपनी खुद की एसआईटी बनाएंगे ?
इस दौरान भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड या सेबी की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि एजेंसी समय के विस्तार की मांग नहीं कर रही है।
संदिग्ध लेनदेन के 24 मामलों में से 22 मामलों की जांच पूरी हो चुकी है। इन मामलों की जांच के लिए अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और शेष 2 मामलों के लिए विदेशी नियामकों से जानकारी की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि सेबी उनके साथ परामर्श कर रहा है।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक इस केस में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण से पूछा कि अडानी के खिलाफ क्या सबूत? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें विदेशी रिपोर्टों को सच क्यों मानना चाहिए?
हम इस रिपोर्ट को खारिज नहीं कर रहे हैं, लेकिन हमें सबूत चाहिए। कोर्ट ने पूछा कि आपके पास अडानी समूह के खिलाफ क्या सबूत है? सुप्रीम कोर्ट में हुई इस सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से अडानी समूह के खिलाफ पुख्ता सबूत पेश नहीं किये जा सके।
सुनवाई में सेबी से भी पूछे गये कड़े सवाल
लाईव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक इस सुनवाई के दौरान सीजेआई ने सेबी से भी कड़े सवाल पूछे हैं। उन्होंने कहा कि जिस चिंता के कारण सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा वह शेयर बाजार में शार्ट- सेलिंग के कारण होने वाली अत्यधिक अस्थिरता थी।इस संबंध में उन्होंने पूछा कि सेबी नियमों को कड़ा करने के संबंध में क्या कर रहा है? निवेशक बाजार में इस तरह की अस्थिरता के लिए सेबी क्या करने की योजना बना रहा है? वह निवेशकों की सुरक्षा के लिए क्या करने की योजना बना रहा है?
इन सवालों के जवाब में सेबी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये बड़े मुद्दे हैं जो सेबी के पास विचाराधीन हैं। उन्होंने कहा कि सेबी नियामक ढांचे में सुधार के लिए कोर्ट द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की ओर से दिए गए सुझावों पर आपत्ति नहीं जता रहा है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के इस जवाब पर सीजेआई ने कहा कि सेबी को भविष्य में यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने होंगे कि शॉर्ट-सेलिंग की घटनाओं के कारण निवेशकों की संपत्ति का नुकसान न हो।
उन्होंने सॉलिसिटर जनरल से फिर पूछा कि कितने नियामक परिवर्तन वित्त मंत्रालय और सेबी के ढांचे के भीतर आएंगे।इसका जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि नियम बनाने के कुछ पहलू केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र और कुछ सेबी के अधिकार क्षेत्र में होंगे।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट को तथ्यात्मक रूप से सही नहीं माना
लाईव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक इस सुनावाई के दौरान याचिकाकर्ता अनामिका जयसवाल के वकील प्रशांत भूषण ने अडानी समूह को लेकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट में तथ्यात्मक खुलासे का उल्लेख किया और इसको लेकर अपने तर्क दिए।इस पर सीजेआई ने साफ तौर पर कहा कि कोर्ट इस धारणा पर आगे नहीं बढ़ सकता कि रिपोर्ट सच है, क्योंकि यह जांच का विषय है।
सीजेआई ने कहा कि हमें हिंडनबर्ग रिपोर्ट को तथ्यात्मक रूप से सही मानने की जरूरत नहीं है। यही कारण है कि हमने सेबी से जांच करने को कहा था।
इस पर वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि इस मामले में सेबी की भूमिका संदिग्ध है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि सेबी को 2014 से अडानी समूह को नियम-कानूनों के उल्लंघनों के बारे में पता था।
प्रशांत भूषण ने अपनी दलील देते हुए जनवरी 2014 में रेवेन्यू इंटेलिजेंस के तत्कालीन निदेशक नजीब शाह द्वारा तत्कालीन सेबी निदेशक यूके सिन्हा को लिखे एक पत्र का हवाला दिया।
इस पत्र में कोयले के आयात पर अधिक बिल बनाकर अदाणी पावर ग्रुप द्वारा धन की हेराफेरी के बारे में बताया गया था।
प्रशांत भूषण की ओर से 2014 के जिस पत्र का हवाला दिया गया उस पर सेबी की ओर पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पत्र के बारे में अनभिज्ञता जताई।
इस पर सीजेआई ने पूछा कि क्या अधिक मूल्यांकन वर्तमान विषय वस्तु से संबंधित है? कहा कि आयात के अधिक मूल्यांकन का आरोप डीआरआई से ही संबंधित होगा।
इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि डीआरआई ने उस मामले में 2017 में जांच पूरी की थी जिसमें अडानी समूह के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला था।