क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सिंगापुर दौरे पर नहीं जा पाएंगे। उपराज्यपाल वीके सक्सेना के द्वारा उनके सिंगापुर दौरे को अनुमति देने के प्रस्ताव को खारिज करने के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया है। उपराज्यपाल की सलाह यह है कि मुख्यमंत्री होने की वजह से अरविंद केजरीवाल को मेयर्स की कांफ्रेंस में नहीं जाना चाहिए।
लेकिन केजरीवाल ने इस मामले में पलटवार करते हुए कहा है कि अगर किसी शख्स का देश से बाहर जाना किसी विषय पर निर्भर करेगा तो प्रधानमंत्री तो कहीं भी नहीं जा सकेंगे। केजरीवाल के द्वारा लिखे गए पत्र में तंज कसते हुए उपराज्यपाल को सलाह दी गई है कि वह इस मामले में केंद्र सरकार से राजनीतिक स्वीकृति हासिल कर लें।
क्या है मामला?
सिंगापुर में वर्ल्ड सिटीज समिट 2 से 3 अगस्त तक होनी है और अरविंद केजरीवाल को इसमें आने का न्योता मिला है।
उपराज्यपाल के द्वारा अनुमति को खारिज किए जाने के बाद दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि अरविंद केजरीवाल इस मामले में विदेश मंत्रालय के सामने अपना पक्ष रखेंगे और दिल्ली सरकार को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल को सिंगापुर जाने की अनुमति मिलेगी।
'केजरीवाल से डरते हैं पीएम मोदी'
आम आदमी पार्टी इस मामले में केंद्र सरकार पर बुरी तरह हमलावर है। पार्टी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केजरीवाल से डरते हैं और उन्हें लगता है कि अगर सिंगापुर में केजरीवाल की वाहवाही हो गई तो केजरीवाल और बड़े नेता बन जाएंगे और प्रधानमंत्री मोदी के लिए चुनौती बन जाएंगे। आम आदमी पार्टी का कहना है कि अगर सिंगापुर में दिल्ली के मॉडल की प्रशंसा होगी इससे हिंदुस्तान की भी तारीफ होगी।
अरविंद केजरीवाल ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पिछले हफ्ते पत्र लिखा था और कहा था कि किसी मुख्यमंत्री को एक बेहद अहम मंच पर जाने से रोकना देश के हित के खिलाफ होगा।
पुरानी है जंग
दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप राज्यपालों के बीच पुरानी जंग रही है। 2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के वक्त दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग थे। तब नजीब जंग ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिए थे कि जमीन, पुलिस और पब्लिक आर्डर से जुड़ी फाइलें उनके पास भेजी जाएं। दिल्ली सरकार उन पर कोई फैसला नहीं ले। इसे लेकर केजरीवाल के साथ उप राज्यपाल की ठन गई थी। शकुंतला गैमलिन को दिल्ली का चीफ सेक्रेटरी बनाने का केजरीवाल ने विरोध किया था। इसके बाद 2016 में केंद्र सरकार नजीब जंग की जगह अनिल बैजल को ले आई।
जब अनिल बैजल दिल्ली के उप राज्यपाल थे तो उनसे तमाम मसलों पर केजरीवाल सरकार की भिड़ंत होती रही थी। साल 2018 में कुछ मांगों को लेकर केजरीवाल उप राज्यपाल के दफ्तर पर ही धरने पर बैठ गए थे। केजरीवाल के साथ उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और गोपाल राय ने भी धरना दिया था।
उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच शक्तियों के बंटवारे का विवाद हाई कोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दोनों की शक्तियों के बंटवारे को लेकर स्पष्ट फैसला सुनाया था।
दिल्ली सरकार के अधिकारों को स्पष्ट करने के लिए जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में केजरीवाल सरकार को दिल्ली का बिग बॉस बताया था लेकिन उस फैसले के बाद भी सवाल खत्म नहीं हुए। दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग और सर्विस विभाग को लेकर सवाल बना हुआ है और सुप्रीम कोर्ट ने अब इस पर फैसले का अधिकार संवैधानिक बेंच को सौंप दिया है।
दिल्ली में 1993 में विधानसभा का गठन हुआ था। उससे पहले दिल्ली में स्थानीय प्रशासन चलाने के लिए महानगर परिषद हुआ करती थी। राजीव गांधी के जमाने में यह तय हुआ था कि दिल्ली को नया ढांचा दिया जाए ताकि दिल्ली को बहुत सारी एजेंसियों के जंजाल से मुक्त किया जाए। सरकारिया-बालाकृष्णन कमेटी की रिपोर्ट के बाद दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन एक्ट की जगह आखिर दिल्ली के लिए गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टैरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट 1991 बना।
आम आदमी पार्टी आरोप लगाती है कि दिल्ली के उप राज्यपाल बीजेपी के इशारे पर उसे काम नहीं करने देते। दिल्ली के तीनों निगमों के एकीकरण और एमसीडी चुनाव टालने को लेकर भी बीजेपी और आम आदमी पार्टी में भिड़ंत हो चुकी है।
केंद्र के साथ टकराव
आम आदमी पार्टी की सरकार के आने से पहले केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार में कभी भी इस तरह की तनातनी नहीं रही। केंद्र में चाहे बीजेपी की सरकार रही हो और दिल्ली में कांग्रेस का शासन हो या फिर 1998 से पहले का युग हो जब केंद्र में कांग्रेस सरकार थी और दिल्ली में बीजेपी थी-तो भी इस तरह का टकराव कभी नहीं हुआ। यह टकराव तभी शुरू हुआ, जब आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में शासन संभाला।