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दिल्ली की चुनाव तैयारियों में क्या आप का मुक़ाबला है?

दिल्ली की चुनाव तैयारियों में क्या आप का मुक़ाबला है?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन दलों के बीच मुक़ाबला है जो हमेशा चुनावी मोड में रहते हैं। तो चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले तैयारियों में कौन आगे है- आप या बीजेपी?

चुनावी सुगबुगाहट तो बिहार में भी कब से शुरू है जहाँ अगले साल अक्टूबर से पहले विधान सभा चुनाव होना है और इसकी तैयारी चल रही है। लेकिन सबसे तेज़ हलचल राजधानी दिल्ली में है जहाँ कभी भी चुनावों की घोषणा हो सकती है। इससे भी बड़ी बात ये है कि वहाँ जिन दो पार्टियों के बीच चुनावी मुक़ाबला है अर्थात भाजपा और आप, वे  साल भर और 24 घंटे चुनावी मूड में रहने वाली पार्टियां है।इन दोनों पार्टियों ने लगातार एक दूसरे के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा है और इसी का परिणाम है कि चुनाव घोषित नहीं हुए और लगभग चुनाव प्रचार शुरू हो गया है उम्मीदवारों के नाम घोषित होने लग गए है और कार्यक्रमों की झड़ी लग गई है कहना न होगा कि इस क़ाम में भाजपा  पूरे पांच साल से लगी हुई है और उसने आप की राज्य सरकार को गिराना है और उसके नाक में दम करने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी है।कई बार उसकी कोशिशें संसदीय मर्यादाओं के उलट भी हुई है और सब किसी को ये लगता है कि ये क़दम है आप के नेताओं को परेशान करने के लिए उठाए जा रहे हैं तो किसी को भी यह समझने में दिक़्क़त नहीं होती है न कि किस तरह से आप ने भाजपा को पराजित किया है।

भाजपा के लिए यह ज़्यादा परेशानी की बात है क्योंकि नरेन्द्र मोदी का डंका पूरे देश में बजता है लेकिन बार बाग़ दिल्ली मैं उनको पराजय झेलनी पड़ती है। उससे पहेले भी दिल्ली में लगातार पंद्रह साल कॉंग्रेस की सरकार रही है। इस तरह से भाजपा बीते पच्चीस वर्षों से दिल्ली की सत्ता से बाहर रही है। और आप तो आपने उसे स्थानीय निकाय चुनावों में भी बुरी तरह पराजित कर दिया है। इस पराजय के साथ ही यह सच्चाई भी भाजपा को दिखाई देती है कि लोक सभा चुनावों में उसे किसी क़िस्म का दबाव या चुनौती नहीं होती है। इस बार भी भाजपा ने बहुत आसानी से दिल्ली का चुनाव जीता जबकि आप ने कॉंग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।

इस हिसाब से इस बार के चुनाव ज़्यादा दिलचस्प और करीबी हैं।दिलचस्पी की ख़ास वजह ये है कि इस बार आप का लगभग पूरा नेतृत्व किसी न किसी तरह के गंभीर आरोप से घिरा हुआ है। ख़ुद अरविन्द केजरीवाल, उस पार्टी के नम्बर दो माने जाने वाले मनीष सिसोदिया और लगभग पूरी पुरानी कैबिनेट दागदार हुआ है। यह ज़रूर है कि प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों का उपयोग/दुरुपयोग करने के बावजूद केंद्र सरकार आप के नेताओं के खिलाफ़ कोई ख़ास सबूत या मुक़दमा खड़ा नहीं कर पाई है।सभी लोग ज़मानत पर छूटे हैं और अभी भी मुक़दमे चल रहा है। इनका क्या होगा यह भविष्यवाणी करना तो मुश्किल है लेकिन इतना करने में कोई हर्ज नहीं है कि आप के ज़्यादातर बड़े नेताओं का दामन दाग़दार हो चुका है भ्रष्टाचार ख़त्म करने के जिस बुनियादी दावे के साथ उन्होंने राजनीति शुरू की थी वह ख़त्म हो गई है। सादगी का नाम लेना भी अब उनके लिए उल्टा पड़ता है। उनके नेताओं के बारे में भाजपा सरकार गिराने में सफल हुई हो ना हुई हो लेकिन उसने आप के नेताओं की साख ज़रूर गिराई है। और इसी का परिणाम है की आज अरविंद केज़रीवाल ने मुख्यमंत्री पद छोड़कर लोगों की अदालत में जाने की घोषणा की है जिससे भी भाजपाई नाटक बताते हैं। ख़ुद भाजपा उपराज्यपाल से लेकर सारे पदों का किस तरह दुरुपयोग कर रही है यह भी किसी बड़े घटिया नाटक से कम नहीं है क्योंकि राज्यपाल को भी बार बार अदालतों से फटकार मिल रही है। जो क़दम वो उठाते हैं उसे क़ानूनी रूप से ग़लत बताया जाता है। ख़ुद वे अदालतों से छुपते फिर रहे हैं क्योंकि जो बयान वे दे रहे हैं उसका झूठ अदालतें जानती है।

आप चुनाव के मामले में है बीजेपी से कमज़ोर नहीं है क्योंकि शासन का उसका रिकार्ड बहुत बढ़िया हो न हो भाजपा ही राज्यों से बेहतर है। भाजपाई शासन जहाँ जहाँ है वहाँ बिजली पानी से लेकर क़ानून व्यवस्था की स्थिति बदतर हुई है ।इन सब मामलों में, शिक्षा में जो स्थिति है दिल्ली की है वह की स्थिति यूपी हरियाणा से बेहतर है। दिल्ली काफ़ी कुछ लुटाके भी, लोगों में बाँट के भी, स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में बेहतर स्थिति में है। शिक्षा का मामला हो स्वास्थ्य का,  वृद्धावस्था पेंशन का मामला हो, दूसरी सहूलियतों का मामला हूँ दिल्ली अभी भी देश के बाक़ी राज्यों से बेहतर है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार रही है वहाँ भी बिजली महँगी है। मुफ़्त बिजली वाली बात तो है ही नहीं। वहाँ की सड़कों की हालत बदतर है। वहाँ के स्कूल किसी भी तरह से दिल्ली के स्कूलों से टक्कर नहीं ले सकते। शासन का यह रिकॉर्ड आप को  भाजपा के मुक़ाबले मज़बूत स्थिति में लाता है।

लेकिन इतना ही नहीं है। आप चुनाव के काम  पर ऐक्टिव हो चुका है ।उसने उम्मीदवारों की सूची जारी करना शुरू कर दिया है।इस सूची में जो नाम आ रहे हैं वो ये बताते हैं कि आप ने काफ़ी काम किया हुआ है।अपने वर्तमान विधायकों का सही सही मूल्यांकन उनके चुनाव क्षेत्र से अच्छी रिपोर्ट बनाने के साथ वहाँ दूसरे दलों के मज़बूत लोगों की पहचान और फिर उन दलों से अपने यहाँ दल बदल कराना शुरु कर दिया है। आप के पास दलबदल कराने के लिए अब  बहुत  लाभ की स्थिति नहीं  है या उनकी तरफ़ से पैसा या पद बाँटने की चर्चा  सामने नहीं आयी है। उनकी ओर से सिर्फ़ उम्मीदवारी देने की स्थिति है और तब भी भाजपा से और उससे भी ज़्यादा कॉंग्रेस से लोग आए। उनका आना यह बताता है कि  उन्हें चुनावी ज़मीन अभी भी आप के लिए उपयुक्त लगती है। सबसे ज़्यादा लोग कॉंग्रेस से आए हैं और यह एक ख़ास रणनीति को भी बताता है। 

पिछले काफ़ी समय से केजरीवाल सेकुलरिज्म के सवाल पर मुँह चुराते दिखाई दे रहे थे और इसके परिणाम स्वरुप विधानसभा चुनावों और उससे भी ज़्यादा स्थानीय निकाय चुनावों में दिल्ली के मुसलमानों ने काँग्रेस को वोट दिया।

कॉंग्रेस का वोट प्रतिशत से भी ज़्यादा उसके पास पदों की संख्या बढ़ना यह बताता है कि मुसलमान आप की तुलना में कॉंग्रेस को ज़्यादा क़रीबी मानते हैं। इस वार जो दलबदल हुए हैं उसमें ज्यादातर ऐसे इलाकों में है ।आप ने कॉंग्रेस उम्मीदवारों को ही तोड़ा है कॉंग्रेस के पुराने नेताओं को तोड़ा है, उनको टिकट दिया है। उसने भाजपा  से भी लोग लिए हैं लेकिन ज़्यादातर नए लोग कॉंग्रेस से आए हैं।फिर इनके लिए आप ने अपने सीटिंग विधायकों का टिकट भी काटा है। कई का  चुनाव क्षेत्र भी बदला है जिसमें मनीष सिसोदिया का चुनाव क्षेत्र भी शामिल हैं। इन्हें पिछली बार बहुत कम वोटों से जीत मिली थी।

लेकिन चुनाव का असली मुद्दा भ्रष्टाचार ख़ास तौर से शराब वाले सौदे में हुए भ्रष्टाचार का मुद्दा रहेगा और भाजपा इसे ही चुनाव में मुद्दा बनाना चाहेगी दूसरी ओर आप की तरफ़ से यह कोशिश है कि उसकी तरफ़ से जो वेलफेयर स्कीम चला रहे हैं उसी को केंद्र में ले के चलना है।देश भर में मुफ़्त की रेवड़ियों का मसला चिंता  का मसला है पर आप साथियों के लिए यह अर्थनीति है। भाजपा इस सवाल पर ऊपर से तो चिन्ता दिखाती हैं लेकिन हर चुनाव में मुफ़्त की रेवड़ियाँ बाँटने के होड़ में लगी रहती है। ऐसी स्थिति में आप ने पहले से कहना शुरू कर दिया है कि वह रेवड़ियां बाँटने की अर्थनीति जारी रखेगी और जिस तरह से उसने शासन किया है उसमें उसके पास पर्याप्त बजट पड़ा है ऐसी नीतियों को चलाने के लिए। तो बहुत साफ़ है कि 2 तरह की रणनीति के साथ चुनाव होगा जिसमें भाजपा आप की पुरानी विचारधारा को भुलाने और सादगी के ढोंग को केंद्र में लाने की कोशिश करेगी। आप उस मोर्चे पर भी तैयार है और उसी तैयारी के साथ अरविन्द केज़रीवाल ने मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़ी। अरविन्द केज़रीवाल ने मुख्यमंत्री का जिम्मा छोड़ा और वो पूरा समय चुनाव को दे रहे है। इस वार आप के लिए एक अच्छी बात ये है कि बगल में पंजाब की सरकार उसकी हो चुकी है तो वहाँ के कार्यकर्ताओं नेताओं और साधनों का इस्तेमाल भी उसको बल देगा।

 दूसरी तरफ़ भाजपा अपने इस नासूर बन गए दिल्ली  की सत्ता को वापस पाने के लिए सारा ज़ोर लगाएगी। और सारा ज़ोर मतलब जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी लगती है तो वो किसी क़िस्म का लिहाज़ नहीं छोड़ते हैं। ग़लत/सही क़दम उठाने में भी उनको दिक़्क़त नहीं होती है और यह हर राज्य के मामले में हुआ है।दिल्ली के मामले में भी ये होगा। दिल्ली में ख़ास चीज़ देखने वाली कॉंग्रेस की स्थिति होगी क्योंकि कॉंग्रेस लगातार यहाँ कमज़ोर होती गई है। जब स्थानीय निकाय के चुनाव हुए थे तब  ज़रूर कॉंग्रेस कुछ जीवंत स्थिति में आयी थी और उसके कई पार्षद जीते थे ख़ासकर मुसलमान और पुनर्वास बस्तियों में। इन दो  ठिकानों पर कॉंग्रेस के वापस होने से पर लग रहा था कि कॉंग्रेस का वोट बैंक वापस आ रहा। इंडिया गठबंधन जब बना तो आप और कॉंग्रेस साथ थे जबकि उनके विरोध के कई मुद्दे या चलते रहे। चुनाव में आप ने 4 और कॉंग्रेस नें 3 जगह से चुनाव लड़ा। लेकिन दोनों पार्टियां हार गई।उनका कोई उम्मीदवार नहीं जीता था। इसके तुरंत बाद यह तय हो गया कि ये  पार्टियां साथ नहीं चलेगी। हरियाणा विधानसभा चुनाव में दोनों अलग अलग लड़े और कॉंग्रेस एक जीतती बाज़ी भी हार गई।ये लग रहा है कि दिल्ली में कॉंग्रेस और आप का साथ नहीं होगा। अभी की जो रणनीति है उससे ये लग रहा है कि कॉंग्रेस का बचा खुचा अधार भी आप अपनी और समेट सकती है क्योंकि आप और कॉंग्रेस लगभग 1 ही क़िस्म के सामाजिक राजनैतिक समूहों की राजनीति करते हैं।

दिल्ली के चुनाव में पुराना फार्मूला है बनिया पंजाबी और स्थानीय गाँवो का वोट। उसके समीकरण में ख़त्म नहीं हुए हैं लेकिन अब सबसे प्रभावी जो समूह है वो है प्रवासी मज़दूरों का, पुरबियों का वोट।दिल्ली में भाजपा ने  पुरविया वोट के लिए काफ़ी कोशिश की है और इसी के तहत उसने पंजाबियों और बनियों का आधार किनारे करके एक पुरबिया को अध्यक्ष बनाया और लगातार पूरब  वालों को प्रभावी बना रही है। उससे बहुत ज़्यादा फ़र्क होता दिखाई नहीं दे रहा अभी तक क्योंकि पुरबिया लोग अभी तक कॉंग्रेस को वोट देते थे। अब उन्होंने आपको गले लगाया तो ये नया खेल है और इसमें भाजपा कहाँ तक सफल होगी यह संदेहास्पद है। मनोज  तिवारी उसके अध्यक्ष रहे हैं और  2 बार ख़ुद लोक सभा  चुनाव जीत गए हैं लेकिन वो भाजपा की नैया पार करा देंगे इसमें शक है।

दिल्ली में जितने ग्रुप हैं सामाजिक समूह वो ब्राह्मण बनिया पंजाबी या पुरबिया से ऊपर भी है। दक्षिण के लोग भी काफ़ी है, उत्तराखंड के लोग हैं, फिर उत्तर प्रदेश सबसे ज़्यादा बना ही हुआ है, राजस्थान के लोग हैं । इनके अलावा भाजपा  मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में काफ़ी मज़बूत है। तो इन सब वोटों को जमा करना  होगा। चुनाव के पहले भविष्यवाणी करना मुश्किल है लेकिन जिस तरह से पार्टियां लगी हुई है इनके पीछे और इस तरह से आप के लोग काम करते हैं वह स्पेशल है। यह अभी से दिखने लगा है। पर खराब हुई छवि और दस साल के शासन से पैदा नाराजगी को संभालना मुश्किल होगा।

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