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दिल्ली: केंद्र-दिल्ली सरकार के दावों के बावजूद 6 गुना कैसे बढ़ गया प्रदूषण

दिल्ली: केंद्र-दिल्ली सरकार के दावों के बावजूद 6 गुना कैसे बढ़ गया प्रदूषण

देश की राजधानी दिल्ली और इससे सटे नोएडा, गुड़गाँव, ग़ाज़ियाबाद और फ़रीदाबाद में हवा पहले से ही काफ़ी ख़राब थी लेकिन दीपावली में पटाखों के प्रदूषण के बाद यह बदतर हो गई है। 

दिल्ली की केजरीवाल सरकार लगातार दावे कर रही है कि उसने राजधानी के प्रदूषण को 25 फीसदी तक कम कर दिया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि पिछले तीन सालों में दिल्ली में प्रदूषण में काफी कमी आई है और उनकी सरकार का मक़सद प्रदूषण के स्तर को नियंत्रण में रखना है। दूसरी ओर, केंद्र सरकार दावे करती है कि उसने ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफ़ेरल एक्सप्रेस वे बनाये हैं और उससे प्रदूषण काफ़ी कम हुआ है। लेकिन दीपावली वाले दिन प्रदूषण से संबंधित जो आंकड़े आये हैं, वे इन दोनों के दावों को ग़लत साबित करते हैं। 

देश की राजधानी दिल्ली और इससे सटे नोएडा, गुड़गाँव, ग़ाज़ियाबाद और फ़रीदाबाद में हवा पहले से ही काफ़ी ख़राब थी लेकिन दीपावली में पटाखों के प्रदूषण के बाद यह बदतर हो गई है। छोटी दीपावली वाले दिन यानी शनिवार को दिल्ली का एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 300 से ज़्यादा था। लेकिन दीपावली की रात को यह बेहद ख़राब हो गया और 999 तक पहुंच गया था। इन इलाक़ों में जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, आरके पुरम, पटपड़गंज, सत्यवती कॉलेज आदि थे। एयर क्वॉलिटी इंडेक्स से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है। 

आंकड़ों के मुताबिक़, दीपावली वाले दिन शाम 5.30 बजे एक्यूआई 163 था जो रात 11.30 बजे 1,005 तक पहुंच गया था। मतलब सिर्फ़ 6 घंटों में दिल्ली की हवा बद से बदतर हो चुकी थी। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी के मुताबिक़, कुछ जगहों पर यह इससे भी ज़्यादा हो सकता है। दीपावली की अगली सुबह जब लोग सैर पर निकले तो दिल्ली गैस चैंबर बन चुकी थी। 

पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद बहुत छोटे कण होते हैं जिन्हें आप साधारण आंखों से नहीं देख सकते। ये बेहद ख़तरनाक कण होते हैं और हवा में इनके बढ़ने का सीधा मतलब है आपके स्वास्थ्य पर बेहद ख़राब प्रभाव पड़ना। 'पीएम10' मोटे कण होते हैं और ये नाक या गले से फेफड़ों में जा सकते हैं और इससे अस्थमा जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। 

बता दें कि 201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘खराब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत खराब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है। लेकिन यहाँ यह आंकड़ा 1000 के पार पहुंच गया लेकिन बावजूद इसके कोई ठोस क़दम नहीं उठाये जा रहे हैं।

पराली जलाने से भी बढ़ रहा प्रदूषण

पंजाब और हरियाणा में लगातार पराली जलाई जा रही है। इंडिया डुटे डाटा इंटेलिजेंस यूनिट की स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक़, 26 अक्टूबर यानी दीपावली से एक दिन पहले पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की 1276 घटनाएं हुई हैं। दिल्ली सरकार ने भी राजधानी में प्रदूषण बढ़ने के लिए पंजाब, हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं को जिम्मेदार बताया है। 

राजनीति करने से फुर्सत नहीं 

इतने ज़्यादा प्रदूषण में दिल्ली में रह रहे लोगों का दम घुट रहा है लेकिन राजनीतिक दल इतने गंभीर मुद्दे पर भी अपनी राजनीति चमकाने से बाज़ नहीं आते। दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के लिए बीजेपी और आम आदमी पार्टी की सरकारें एक-दूसरे पर आरोप लगाती हैं। केजरीवाल सरकार ने जब ऑड-ईवन को फिर से शुरू किया तो केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का बयान आ गया कि केंद्र सरकार ने ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफ़ेरल एक्सप्रेस वे बनाये हैं और उससे प्रदूषण काफ़ी कम हुआ है और इसलिए, दिल्ली में ऑड-ईवन की कोई ज़रूरत नहीं है। 

दिल्ली में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी ने केंद्र और दिल्ली सरकार को कई बार तलब किया है और कहा है कि इस दिशा में ठोस क़दम उठाये जायें, लेकिन साल दर साल हालात और ख़राब होते जा रहे हैं।

जस्टिस बोले, नहीं रहूंगा दिल्ली में 

हालात इस क़दर ख़राब हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा ने इस साल जनवरी में टिप्पणी की थी कि दिल्ली में जिस तरह के हालात हो गए हैं, उससे लगता है कि यह शहर अब रहने और काम करने लायक नहीं बचा है। जस्टिस मिश्रा ने कहा था कि वह रिटायर होने के बाद दिल्ली में नहीं रहेंगे क्योंकि यह गैस चैंबर बन चुकी है। जस्टिस मिश्रा ने यह भी कहा था कि दिल्ली में जाम और प्रदूषण बहुत ज़्यादा है। दिल्‍ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर हाई कोर्ट भी कई बार टिप्पणी कर चुका है।

दिल्ली में प्रदूषण से रोज़ 80 मौतें!

कुछ महीने पहले आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दिल्ली में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से हर रोज़ कम से कम 80 मौतें होती हैं। डॉक्टर कहते हैं कि खाँसी, जुकाम जैसी मामूली बीमारी से लेकर दमा, कैंसर और ब्रेन स्ट्रोक तक प्रदूषण की देन हैं। ऐसे में अगर जस्टिस से लेकर कोठी-बंगलों में रहने वालों को प्रदूषण का डर सता रहा है तो सवाल यह उठता है कि आम जनता कहाँ जाए। 

क्या करना चाहिए?

दिल्ली में हवा और ज़्यादा ख़राब न हो, इसके लिए गाड़ियों में साफ़ ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को बंद करना और अगर ज़रूरत हो तो ऑड-ईवन लागू करना व अन्य क़दम उठाये जाने चाहिये। क्योंकि भारत में बढ़ता प्रदूषण लगातार चिंताजनक होता जा रहा है और सरकारों के तमाम दावों के बाद भी यह हर साल बढ़ रहा है। 

देश के एक दर्जन से ज़्यादा शहर विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में हैं। दिल्ली से लेकर ग़ाज़ियाबाद और कानपुर के अलावा कई शहरों में सांस लेना बेहद मुश्किल हो गया है। लेकिन इतना तय है कि यदि हम अभी भी नहीं जागे तो आगे इससे भी भयावह हालात का सामना करना पड़ सकता है।

आंकड़ों के मुताबिक़, दिल्ली में हर दिन 4000 टन से ज़्यादा धूल-मलबा सड़कों पर उड़ता है। दिल्ली में 1 करोड़ से ज़्यादा वाहन पंजीकृत हैं। इनसे होने वाला प्रदूषण, पटाखों से होने वाला प्रदूषण वातावरण में जहरीली गैसों की मात्रा बढ़ा देता है। 

सवाल यह खड़ा होता है कि दिल्ली-एनसीआर के लोगों को इस दमघोटू हवा से छुटकारा कैसे मिलेगा। क्या दिल्ली और केंद्र सरकार एक-दूसरे को दोष ही देते रहेंगे। वे यह दावा करते हैं कि प्रदूषण को कम करने के लिए वे ठोस क़दम उठा रहे हैं। और अगर उन्होंने क़दम उठाये हैं तो फिर इनका रिजल्ट क्यों नहीं दिखाई देता। आख़िर क्यों हर साल दिल्ली में हवा और ज़्यादा ख़राब होती जा रही है। छोटे बच्चों से लेकर व्यस्कों और बुजुर्गों तक की जान आफ़त में हैं और लोग अपना काम-धंधा छोड़कर यहां से जाने के लिए मजबूर हैं। 

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