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एक साल पहले आख़िर किसने भड़काया था दिल्ली दंगा?

एक साल पहले आख़िर किसने भड़काया था दिल्ली दंगा?

दिल्ली दंगे के एक साल हो गए। देश इसे एक बुरे सपने की तरह शायद भूलने की कोशिश में है, लेकिन बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने एक ताज़ा विवादित बयान देकर उन घटनाक्रमों की पीड़ा को फिर से ताज़ा कर दिया! 

दिल्ली दंगे का एक साल हो गया। देश इसे एक बुरे सपने की तरह शायद भूलने की कोशिश में है, लेकिन बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने एक ताज़ा विवादित बयान देकर उन घटनाक्रमों की पीड़ा को फिर से ताज़ा कर दिया! सोमवार को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में एक कार्यक्रम में कपिल मिश्रा ने कहा, 'पिछले साल 23 फ़रवरी को जो किया, ज़रूरत पड़ी तो दुबारा करूँगा।' उनका यह बयान इसलिए विवादित है कि कपिल मिश्रा पर आरोप है कि पिछले साल दिए उनके कथित तौर पर भड़काऊ भाषण के बाद उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़क गए थे। उस दंगे में 53 लोगों की मौत हो गई थी। हालाँकि कपिल मिश्रा भड़काऊ भाषण के आरोपों को खारिज करते रहे हैं। तो सवाल है कि आख़िर हुआ क्या था जिससे दंगे भड़के?

वैसे तो इस मामले में पुलिस की जाँच चल रही है। पुलिस का कहना है कि अब तक दर्ज किए गए 755 मामलों में से 303 मामलों पर 'संज्ञान' लिया गया है। पुलिस क़रीब 400 मामलों में कार्रवाई कर 1825 लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है। जाँच जारी है। यानी इस पर अदालत का फ़ैसला आना बाक़ी है। फ़ैसला जब आएगा तब, उससे पहले जानिए कि घटनाक्रम कैसे चला था-

यह वह दौर था जब देश के कई हिस्सों में नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन चल रहा था। शाहीन बाग़ के प्रदर्शन की तो दुनिया भर में इसलिए काफ़ी तारीफ़ हुई कि यह शांतिपूर्ण था। देश भर में कई जगहों पर शाहीन बाग़ की तरह प्रदर्शन शुरू हुए थे। सरकार इससे परेशान थी। इसी तरह का प्रदर्शन उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भी हो रहा था जहाँ पर दंगा हुआ। तो सवाल है कि नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ जाफराबाद में शांतिपूर्वक प्रदर्शन में आख़िर ऐसा क्या हो गया कि इतने बड़े स्तर पर हिंसा हो गई और 53 लोगों की जान चली गई?

पूरे घटनाक्रमों को देखिए। सड़क पर बैठ कर किया जा रहा यह प्रदर्शन तब तक शांतिपूर्ण था जब तक कि बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने प्रदर्शनकारियों के विरोध में वहाँ नागरिकता क़ानून के समर्थन में रैली नहीं निकाली थी। मिश्रा ने अपने समर्थकों के साथ जब रैली निकाली तो उस दौरान नागरिकता क़ानून का विरोध करने वालों के साथ झड़प हुई। दोनों ओर से पत्थरबाज़ी हुई। मिश्रा ने वीडियो जारी किया और फिर प्रदर्शनकारियों को धमकी भी दी। यह सब पुलिस के सामने हुआ। 

23 फ़रवरी को कपिल मिश्रा ने प्रदर्शनकारियों को चेतावनी देते हुए एक वीडियो जारी किया था। फिर वह अपने समर्थकों के साथ प्रदर्शन वाली जगह पर इकट्ठा हुए। वहाँ भारी संख्या में पुलिस बल भी तैनात था।

उस दौरान का एक वीडियो सामने आया था। उस वीडियो में दिख रहा था कि एक पुलिस अफ़सर के बगल में खड़े कपिल मिश्रा ने वहाँ पर धमकी दी। उस वीडियो में वह पुलिस अफ़सर को संबोधित करते हुए कहते हैं, '...आप सबके (समर्थक) बिहाफ़ पर यह बात कह रहा हूँ, ट्रंप के जाने तक तो हम शांति से जा रहे हैं लेकिन उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे यदि रास्ते खाली नहीं हुए तो... ठीक है?'

कपिल मिश्रा ने डोनल्ड ट्रंप का ज़िक्र इसलिए किया कि तब वह अमेरिका के राष्ट्रपति थे और भारत दौरे पर आए थे। लेकिन ट्रंप जिस दिन भारत आए उसी दिन हिंसा भड़क गई। 

 - Satya Hindi

दो समुदायों के लोग बाबरपुर-मौजपुर मेट्रो लाइन पर सड़क के दोनों ओर से आमने-सामने आ गए। तब पुलिस की तैयारी बिल्कुल ही नहीं थी और पुलिसकर्मी दोनों गुटों के सामने काफ़ी कम पड़ गए। दोनों गुटों में झड़प हो गई। यह साफ़ नहीं हुआ है कि हिंसा की शुरुआत किस गुट ने की। दोनों तरफ़ से जमकर पत्थरबाज़ी हुई। आगजनी हुई थी। गाड़ियों में तोड़फोड़ हुई थी। गोलियाँ चली थीं।

इस मामले में कपिल मिश्रा की यह कहते हुए आलोचना की गई थी कि उन्होंने कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिया था। यही बात दिल्ली हाई कोर्ट ने 26 फ़रवरी को इस मामले में सुनवाई करते हुए कही थी। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह की बेंच ने तुषार मेहता से कहा था कि वह पुलिस कमिश्नर को सलाह दें कि बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर, प्रवेश सिंह वर्मा और कपिल मिश्रा के कथित नफ़रत वाले बयान पर एफ़आईआर दर्ज की जाए। हालाँकि, इस मामले में कार्रवाई आगे होने से पहले ही जज का ट्रांसफर हो गया था और फिर वह मामला बाद में ख़त्म हो गया था। उन पर कोई केस नहीं हुआ था।

बता दें कि दिल्ली दंगे से पहले 'भड़काऊ' नारा दिल्ली चुनाव के दौरान बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी लगाया था। तब उन्होंने चुनावी रैली में नारा लगाया था- 'देश के गद्दारों को...' इस पर भीड़ ने '...गोली मारो... को' बोलकर इस नारे को पूरा किया था। प्रवेश वर्मा ने नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ शाहीन बाग़ में प्रदर्शन करने वालों के बारे में कहा था कि 'ये लोग घरों में घुसेंगे और बहन व बेटियों का रेप करेंगे।'

दंगे पिछले साल 23 फ़रवरी को शुरू हुए थे और 25 फ़रवरी तक तीन दिनों तक चले थे। पूर्वोत्तर दिल्ली की गलियों में लोगों ने लाठी-डंडों और हथियारों से लैस होकर वाहनों और दुकानों में आग लगा दी थी। पूजा स्थल सहित निजी संपत्तियों में तोड़फोड़ की गई थी।

सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र जाफराबाद, वेलकम, सीलमपुर, भजनपुरा, ज्योति नगर, करावल नगर, खजुरी खास, गोकलपुरी, दयालपुर और न्यू उस्मानपुर थे।

दंगे के बाद जिस तरह की ख़बरें बाद में आईं उससे संकेत मिले कि ये दंगे पूर्व नियोजित थे। राजनेताओं ने भी ऐसे ही आरोप-प्रत्यारोप एक-दूसरे पर लगाने शुरू किए। पुलिस ने जाँच के लिए एसआईटी की तीन टीमें गठित कीं। 

पुलिस जाँच के दायरे में वे लोग भी आए जो सोशल एक्टिविस्ट थे। फिर जेएनयू और जामिया से जुड़े रहे छात्रों के नाम भी हिंसा की साज़िश करने के आरोपियों के रूप में लिए गए।  दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में पुलिस 'पिंजरा तोड़' की सदस्यों देवांगना, नताशा के अलावा सफ़ूरा ज़रगर, मीरान हैदर और कुछ अन्य लोगों को भी गिरफ़्तार कर चुकी है। ये सभी लोग दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर सीएए, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ हुए विरोध-प्रदर्शनों में शामिल रहे थे। ऐसे लोगों की गिरफ़्तारी के लिए भी पुलिस पर निशाना साधा गया कि भड़काऊ भाषण देने वालों को पर कार्रवाई नहीं की जा रही है जबकि सरकार से सवाल उठाने वाले लोगों को घसीटा जा रहा है। फ़िलहाल पुलिस की जाँच चल ही रही है और इस मामले में फ़ैसला आना बाक़ी है। 

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