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दिल्ली दंगों के आरोपी एमसीडी चुनाव के लिए अब बीजेपी के नए पोस्टर ब्वॉय

दिल्ली दंगों के आरोपी एमसीडी चुनाव के लिए अब बीजेपी के नए पोस्टर ब्वॉय

दिल्ली दंगों के आरोपियों को बीजेपी आरएसए अब राजनीतिक चेहरा बना रहे हैं। जानिए इन चेहरों को।

उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों में जिन भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ताओं के नाम आरोपी के रूप में आए थे, वे अब दिल्ली नगर निगम चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवार बनने जा रहे हैं। पार्षद बनने के बाद इनके पास खुद के बचाव का रास्ता आसान होगा। इस समय सुभाष मोहल्ला समेत तमाम गलियां ऐसे आरोपी मुलजिमों के पोस्टरों से पटी हुई हैं। स्क्रॉल वेबसाइट ने इस संबंध में एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट आज प्रकाशित की है। उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों में 36 साल के नासिर अली पर पहाड़ टूट पड़ा था। उन्होंने सुभाष मोहल्ले में ये पोस्टर देखे तो हैरान रह गए। उनके दिमाग में उस उत्तम त्यागी का चेहरा घूम गया जो सिर्फ दो साल पहले एक भीड़ का नेतृत्व कर रहा था, जिसने उन पर हमला किया था। नासिर की बाईं आंख में गोली मार दी गई थी। वही उत्तम त्यागी अब बीजेपी के सहकारी प्रकोष्ठ का कोऑर्डिनेटर है।

सुभाष मोहल्ले की गलियों में बिखरे बीजेपी के पोस्टरों पर दो अन्य चेहरे प्रमुख हैं: आशीष पूनिया जो बीजेपी की युवा शाखा का नवीन शाहदरा का जिला अध्यक्ष है। दूसरा सुरेश पंडित, जो 2020 में सुभाष मोहल्ला बीजेपी यूनिट का कोऑर्डिनेटर था। फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे के दौरान तीनों पर गंभीर आरोप लगे थे। त्यागी और पंडित ने दिसंबर 2020 में जमानत पर रिहा होने से पहले आठ महीने जेल में बिताए। तीनों दंगा मुलजिमों को इसी अप्रैल में होने वाले उत्तर पूर्वी दिल्ली नगरपालिका (नॉर्थ एमसीडी) चुनावों के लिए बीजेपी का टिकट मिलने की उम्मीद है। उन्हें सुभाष मोहल्ला वॉर्ड से टिकट चाहिए। लेकिन उनके लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि टिकट किसे मिलेगा। उनका कहना है कि हम यहां बीजेपी की जीत चाहते हैं।

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यह सुरेश पंडित है, दिल्ली के दंगों में एफआईआर में नामजद है (फोटो साभार स्क्रॉल)

दंगा आरोपी पूनिया ने कहा, हमारा मकसद साफ है - 2022 में सुभाष मोहल्ला वॉर्ड में बीजेपी को जीतने की जरूरत है क्योंकि हम हिंदू यहां रहना चाहते हैं। सुभाष मोहल्ला हिंदू बहुल इलाका है। पूनिया का खुद का अनुमान है कि इसकी लगभग 68% आबादी हिंदू है। चार घटनाएं और एक वीडियो जैसे-जैसे एमसीडी चुनाव नजदीक आ रहे हैं, सुभाष मोहल्ले में सांप्रदायिक तनाव बढ़ता जा रहा है। फरवरी 2020 में, जब सीएए-एनआरसी के खिलाफ उत्तर पूर्वी दिल्ली में आंदोलन शुरू हुआ तो मुस्लिमों को दंगे में निशाना बनाया गया। सुभाष मोहल्ला बुरी तरह प्रभावित हुआ था। इन दंगों में मारे गए 53 लोगों में से 36 मुस्लिम थे। इनमें सुभाष मोहल्ले के दो मुस्लिम भी थे। बहुत लोग घायल हुए थे। उत्तम त्यागी और उसके भाइयों के साथ-साथ पंडित और पूनिया कम से कम चार मामलों में नामजद मुलजिम हैं।

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आशीष पुनिया, दिल्ली दंगों में आरोपी (फोटो साभार स्क्रॉल)

राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) में एक जूनियर असिस्टेंट के तौर पर काम करने वाले नासिर अली ने जो शिकायत पुलिस में की थी, उसके अनुसार, त्यागी बंधु उस भीड़ का हिस्सा थे, जिसने 24 फरवरी, 2020 को उन पर हमला किया था। नासिर को वो क्षण याद है कि जब त्यागी ने शूटर से उन पर गोली चलाने को कहा था।27 साल के साहिल परवेज ने जो पुलिस शिकायत दी थी, उसमें पंडित और त्यागी बंधुओं पर कम से कम 16 लोगों की भीड़ के साथ, उनके पिता परवेज आलम पर हमला किया और उनकी हत्या कर दी। उन्होंने बताया कि भीड़ में मौजूद लोगों में से एक ने दूसरे को उकसाया कि मुझ पर गोली चलाई जाए। मैं अपनी जान बचाने के लिए दौड़ा लेकिन मेरे पिता को मार डाला गया। साहिल ने 1 मार्च, 2020 को पास के भजनपुरा थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। साहिल की शिकायत के आधार पर त्यागी और पंडित की गिरफ्तारी हुई थी। साहिल उस घटना को याद करते हुए कहते हैं - 

उत्तम त्यागी के पास एक डंडा था, जबकि सुरेश पंडित के हाथ में तलवार थी। मैंने अपने पिता की हत्या अपनी आंखों के सामने देखी थी।


-साहिल परवेज, दिल्ली दंगों के पीड़ित

34 साल के सैयद जुल्फिकार, के चेहरे पर भी गोली लगी थी। उन्होंने अपनी शिकायत में त्यागी बंधुओं का नाम लिया है। दंगे के दौरान गोली उनके बाएं गाल से निकलकर उनके सिर में जा लगी थी। बाद में डॉक्टरों ने सर्जरी करके गोली को निकाला। 58 साल के मोहम्मद सलीम की शिकायत में उस समय कहा गया था कि पंडित और त्यागी बंधुओं ने 24 फरवरी, 2020 की रात सुभाष मोहल्ला में उनके घर पर हमला किया था। उनकी शिकायत में कहा गया था कि उन्होंने हम पर गोली चलाई, पेट्रोल बम फेंके और मेरे घर पर पथराव किया। सलीम ने लिखा है उन्होंने मुझे लगातार गालियां दीं और हमें जान से मारने की धमकी दी। सलीम ने हमले का वीडियो भी बनाया था।

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दिल्ली दंगों में नासिर अली की आंख के पास गोली मारी गई थी (फोटो साभार स्क्रॉल))

स्क्रॉल ने उस वीडियो को देखा, जिसमें सलीम के घर के सामने एक आदमी बड़ी भीड़ के साथ खड़ा है। चेहरे पर दाढ़ी है, ग्रे शर्ट पहने हुए है। वह पेट्रोल बम सलीम के घर पर फेंकता हुआ नजर आ रहा है। सुभाष मोहल्ला के निवासियों ने कहा कि उन्होंने उनकी पहचान तब की जब उसका चेहरा भारतीय जनता युवा मोर्चा के नए जिला प्रमुख के रूप में नवंबर 2020 में पोस्टरों पर नजर आया। उनका आरोप है कि पेट्रोल बम फेंकने वाला 33 वर्षीय आशीष पूनिया था। सलीम ने अभी तक अपनी एफआईआर में पूनिया का नाम नहीं लिया है। खुद दंगों के एक मामले में आरोपी सलीम ने मार्च 2020 में पंडित और त्यागी बंधुओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, तब तक उन्होंने पूनिया की पहचान नहीं की थी।

दंगे के तीनों आरोपियों ने सारे आरोपों को खारिज किया है। त्यागी और पंडित का कहना है कि हिंसा के दौरान तो वो अपने घरों से नहीं निकले। पूनिया का दावा है कि दंगा शुरू होने से दो दिन पहले उसने दिल्ली छोड़ दिया और दंगे खत्म होने के बाद लौटा। हालांकि नाम न छापने की शर्त पर इलाके के हिंदू और मुस्लिम लोगों ने कहा कि दंगों के तुरंत बाद पूनिया भाग गया था। उसे पहचाना न जा सके, इसलिए उसने अपनी दाढ़ी मुंडवा ली।

पुनिया का कहना है कि अगर मैं एक भी मामले में आरोपी हूं तो मुझे पुलिस ने बुलाया क्यों नहीं। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। पूनिया ने दावा किया कि उसके पास शहर से बाहर होने का सबूत है। उसने एक वीडियो दिखाया जिसमें वो हिंसा के समय उज्जैन के एक मंदिर में जाता हुआ दिखाई दे रहा है।

पूनिया इन दिनों उत्तर पूर्वी दिल्ली के मंदिरों में सक्रिय हैं। उसने खुद ही बताया कि इन दिनों मैं इलाके के विभिन्न मंदिरों में हनुमान चालीसा का आयोजन करा रहा हूं। इससे लोग मानसिक रूप से मजबूत होते हैं। इसे आयोजित करने के लिए वीएचपी और बजरंग दल मदद करते हैं। हर मंगलवार को करीब 40 पुरुष स्थानीय मंदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ करने आते हैं। पुनिया ने स्क्रॉल से कहा-

जब से मोदी जी सत्ता में आए हैं, मुसलमान कंट्रोल में हैं। हममें से 30-40 लोग अलग-अलग जगहों पर चालीसा पढ़ते हुए दिखेंगे। बीजेपी के सत्ता में आने के लिए हमें माहौल बनाने की जरूरत है। जब मैं 15 साल का था, तभी से संघ परिवार के संगठन की मदद से अपना रास्ता बना रहा हूं। इसकी शुरुआत संघ की बृज लोक शाखा के दौरे से हुई थी। 2008 के आसपास मैं एबीवीपी में आ गया था।


-आशीष पुनिया, दिल्ली दंगों का आरोपी

बीजेपी के तीनों महत्वाकांक्षी उम्मीदवारों का मानना है कि 2020 की हिंसा ने हिंदुओं को कमजोर कर दिया है। पंडित ने कहा कि अगर वह चुने गए तो हिंदुओं को मजबूत करने के लिए काम करेंगे, ताकि फिर कभी दंगे जैसी स्थिति पैदा न हो। पंडित के अनुसार, यह मुस्लिम समुदाय था जिसने खुद लूटपाट की। 

सुभाष मोहल्ले से पिछले चार चुनावों में बीजेपी का कोई प्रत्याशी नहीं जीता। यह वार्ड पहले महिला आरक्षित था। अभी यह सीट आम आदमी पार्टी के के पास सीट है। लेकिन इस बार यह सीट महिला रिजर्व नहीं है। इसलिए त्यागी, पंडित और पूनिया के लिए मैदान खुला है। इस इलाके के मुस्लिम लोगों की चिंता यह है कि दंगों ने इस वॉर्ड को पहले से कहीं अधिक पोलराइज (ध्रुवीकरण) कर दिया है, जो हिंदू मतदाताओं को बीजेपी उम्मीदवार को चुनने के लिए मजबूर करेगा। 

हालांकि साहिल परवेज का घर सुभाष मोहल्ले में है। लेकिन आजकल वो अपने करियर पर फोकस कर रहे हैं और ज्यादातर घर से बाहर रहते हैं। वो अब अपना घर बेचना चाहते हैं। उन्होंने कई प्रॉपर्टी डीलरों से बात भी की है। हम अच्छी कीमत का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन हम इस जगह को हर हालत में छोड़ना चाहते हैं।

पूनिया की तरह, पंडित और त्यागी भी बच्चों के रूप में संघ की बृज लोक शाखा में शामिल हुए। तीनों बचपन के दोस्त हैं। त्यागी संघ में भी कई पदों पर रह चुके हैं। 1990 के दशक में वह आरएसएस के प्रचारक थे। 2002 से 2005 तक, वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के नवीन शाहदरा के जिला प्रमुख थे। अगले तीन साल यमुना विहार में बीजेपी के संभाग प्रमुख के रूप में बिताए। फरवरी 2020 में जब सांप्रदायिक हिंसा भड़की तो वह सक्रिय राजनीति से बाहर थे। दिसंबर 2020 में जेल से छूटने के कुछ महीने बाद ही उन्हें बीजेपी के सहकारी प्रकोष्ठ के जिला कोऑर्डिनेटर का पद दिया गया। पंडित, जो फरवरी 2020 में बीजेपी के कोऑर्डिनेटर थे, अभी संघ में आधिकारिक पद पर नहीं हैं।तीनों की नजर बीजेपी टिकट पर है। पंडित ने कहा कि मैंने संघ को पहले ही बता दिया था कि मुझे टिकट चाहिए। पूनिया को लगता कि अगर पार्टी यहां से युवा उम्मीदवार चाहती है, तो वह बेहतर विकल्प हो सकते हैं। त्यागी को लगता है कि आरएसएस के प्रचारक के रूप में काम करने के उनके अनुभव ने उन्हें एक आदर्श चुनावी उम्मीदवार बना दिया है। उनका संघ का अनुभव चुनाव प्रचार में काम आएगा। त्यागी को यकीन है कि जेल में बिताया गया समय उनके राजनीतिक करियर में आड़े नहीं आएगा। जब समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान जेल से चुनाव लड़ सकते हैं, तो मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकता।

फरवरी 2020 के निशान सुभाष मोहल्ला के मुस्लिम निवासी इन आरोपियों के जन प्रतिनिधि बनने की आशंका से दहशत में हैं। नासिर अली ने कहा, संभावना है कि वही लोग मेरे पार्षद बनेंगे। जब वे आम नागरिक होकर दंगे में भूमिका निभा सकते हैं तो अगर उन्हें कोई आधिकारिक पद मिल जाएगा तो क्या होगा? फरवरी 2020 के दंगों ने कई तरह के निशान छोड़े हैं। त्यागी और पंडित के जेल से बाहर आने के बाद हालात और बिगड़ गए। साहिल परवेज और नासिर अली दोनों का दावा है कि आरोपी उन्हें लगातार धमका रहे हैं। हमें विश्वास नहीं हो रहा है कि वे हमारी शिकायत पर जेल गए थे। उन्होंने याद किया कि कैसे पंडित एक बार उनके पास आया और कहा: “हमने जेल में आनंद लिया। अब आप हमारा क्या कर सकते हो।

एफआईआर का खेलसाहिल परवेज ने अपनी शिकायत में 16 लोगों का नाम लिया था - ये सभी लोग पंडित और त्यागी सहित आरएसएस से जुड़े लोग थे। इन सभी को अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन दिसंबर 2020 और फरवरी 2021 के बीच जमानत पर रिहा कर दिया गया। तमाम अन्य लोगों ने एफआईआर दर्ज कराने के लिए संघर्ष किया। कुछ की शिकायत ही नहीं दर्ज की गई। नासिर अली की एक शिकायत अभी दर्ज नहीं की गई है। हालांकि दो सेशन अदालतों ने दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया, इसके बावजूद पुलिस ने दर्ज नहीं किया। एक अदालत ने तो ऐसा नहीं करने पर पुलिस पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। नासिर अली ने कहा- 

एफआईआर दर्ज न होने से आरोपियों का हौसला बढ़ा है। वे हमसे कहते रहते हैं कि तो, आपने अपनी एफआईआर दर्ज करा ली?


-नासिर अली, दिल्ली दंगों के पीड़ित

शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि एफआईआर दर्ज होने पर भी जांच नहीं होती है। जुल्फिकार ने कहा कि पुलिस ने उनके मामले में एफआईआर दर्ज की तो वह “अज्ञात” लोगों के खिलाफ है। हालांकि जुल्फिकार ने कहा कि उन्होंने कुछ नाम दिए थे। उन्हें उन लोगों के चेहरे स्पष्ट तौर पर हैं जिन्होंने उनके चेहरे पर गोली मार दी थी। मैं जानबूझकर किसी को नहीं फँसाऊंगा। मुझमें इतनी नफरत नहीं है, न ही मैं मूर्ख हूं। सलीम के मामले में भी पुलिस ने 18 महीने बाद एफआईआर दर्ज की थी। लेकिन इसके लिए अदालत को दो बार आदेश देने पड़े। लेकिन जांच अभी शुरू नहीं हुई है। दो साल हो गए हैं, और जिन लोगों का मैंने नाम लिया था, उनमें से किसी से भी पूछताछ नहीं की गई। एफआईआर आखिरकार सितंबर 2021 में दर्ज की गई, लेकिन चूंकि यह मार्च 2020 में की गई। इसलिए अभी भी इसमें पूनिया का नाम नहीं है। पुलिस ने अभी तक मजिस्ट्रेट के सामने उनका बयान दर्ज नहीं किया है।

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