दंगों में मुसलमानों की पैरवी कर रहे प्राचा पुलिस के निशाने पर?
क्या मशहूर वकील महमूद प्राचा को दिल्ली पुलिस इसलिए निशाना बना रही है कि वे दिल्ली दंगों में मुसलमानों की पैरवी कर रहे हैं? क्या वे गृह मंत्रालय के निशाने पर इसलिए हैं कि उन्होंने 22 आरएसएस कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ सबूत पेश कर उन्हें गिरफ़्तार करवाया था?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि दिल्ली पुलिस ने न सिर्फ उनके दफ़्तर पर छापे मारे हैं, बल्कि प्राचा के अनुसार उनके सहयोगियों को पीटा है और उनसे बदतमीज़ी की है। मीडिया रिपोर्ट यह भी है कि दिल्ली पुलिस ने उनके कुछ मुवक्क़िलों पर दबाव बनाया है कि वे प्राचा को अपने मुक़दमों से हटा दें और वे मामले वापस ले लें।
क्या है मामला?
बता दें कि दिल्ली पुलिस ने दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले के सिलसिले में शुक्रवार को महमूद प्राचा की क़ानूनी कंपनी 'लीगल एक्सिस' के दफ़्तर पर छापा मारा। पुलिस ने अगस्त में ही कहा था कि इस मशहूर वकील ने एक मामले में फ़र्जी दस्तावेज पेश किया और एक व्यक्ति से कहा था कि वह गवाह बन कर ग़लत जानकारी अदालत को दे। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने इसकी सुनवाई करने के बाद कहा था कि यह अच्छा होगा कि सीबीआई या पुलिस की विशेष शाखा इस मामले की जाँच करे। इसके बाद प्राचा के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज किया गया और फिर छापा मारा गया।
विशेष शाखा ने एक बयान में कहा है कि जाँच अधिकारी ने पूरा संयम बरता, पूरे छापे की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई है। महमूद प्राचा और उनके सहयोगियों के दुर्व्यवहार की शिकायत स्थानीय थाने में की गई है। दूसरी ओर प्राचा ने दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में इस मामले की शिकायत की है और विशेष सेल के खिलाफ़ मामला दर्ज कराया है। अदालत ने विशेष शाखा से छापे का वीडियो फ़ुटेज पेश करने को कहा है।
मुवक्क़िलों पर दबाव?
'इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक़, प्राचा के कुछ मुवक्किलों ने आरोप लगाया है कि दिल्ली पुलिस उन पर दबाव डाल रही है कि वे महमूद प्राचा को अपने मामलों से हटा दें और वे मामले वापस ले लें। उत्तर प्रदेश के गोंडा निवासी मुहम्मद नासिर ख़ान ने कहा कि 24 फरवरी को एक गोली लगने से उनकी आँख खराब हो गई।
उन्होंने प्राचा से संपर्क किया और यह मामला दर्ज करवाया। अब पुलिस उन पर दबाव डाल रही है कि वे मामला वापस ले लें। एक और मुवक्किल साहिल परवेज़ ने कहा कि उन्होंने अपने पिता की हत्या के मामले में प्राचा को अपना वकील नियुक्त किया। पुलिस उन पर प्राचा को हटाने और मामला वापस लेने के दबाव बना रही है।
दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता अनिल मित्तल ने इन तमाम आरोपों को बेबुनियाद क़रार दिया है।
क्या कहना है विशेषज्ञों का?
'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की मशहूर वकील इंदिरा जयसिंह ने पुलिस के छापे को 'क़ानूनी प्रतिनिधित्व के बुनियादी हक़' का सीधा उल्लंघन क़रार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की वकील करुणा नंदी ने इसके तकनीकी पक्ष को उठाया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि किसी मामले से जुड़ी जानकारी वकील का निजी मामला है और यह उसका विशेषाधिकार है, लेकिन पुलिस दूसरे मामलों से जुड़ी जानकारियाँ भी ले गई होगी।
दिल्ली की वकील शरबीर पनाग ने कहा कि वकील और मुवक्क़िल के बीच के मामले और उससे जुड़े काग़ज़ात उस वकील का विशेषाधिकार है और इसका उल्लंन नहीं किया जा सकता है।
आम आदमी पार्टी से जुड़े और मशहूर वकील राहुल मेहरा ने कहा कि निजी तौर पर महमदू प्राचा से उनके कई मुद्दों पर उनके मतभेद हैं, लेकिन वे इस छापे को वकीलों के विशेषाधिकार का उल्लंघन मानते हैं और इसकी कड़ी भर्त्सना करते हैं।
कांग्रेस नेता और वकील मनीष तिवारी ने भी छापे की निंदा की है।
कई मशहूर वकीलों और क़ानूनों के जानकारों ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पुलिस छापे की निंदा की है। प्रशांत भूषण ने कहा, "पहले वे सक्रिय कार्यकर्ताओं को पकड़ने आए, फिर छात्रों को पकड़ने आए, उसके बाद वे किसानों के लिए आए, अब वे उनके वकीलों को पकड़ने के लिए आ रहे हैं। इसके बाद वे आपको पकड़ने आएंगे। क्या आप इसे लोकतंत्र कहेंगे? हम सबको मिल कर इसके ख़िलाफ़ लड़ना होगा।"
First they came for activists; then they came for students; then they came for farmers; now they are coming for their lawyers; Next, they will come for you.
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) December 24, 2020
Will you call this a Democracy?
We will all have to fight this together. https://t.co/ZggkHS3uyk
बार कौंसिल
लेकिन वकीलों से जुड़े संगठन इस मुद्दे पर बेहद चौकन्ना होकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। दिल्ली बार कौंसिल के अध्यक्ष रमेश गुप्ता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "शायद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन कुछ कर रहा हो। हम अपने स्तर से करेंगे, क्या किसी को जाकर टक्कर मार दें?"
बता दें कि इस साल फरवरी में हुए दिल्ली दंगों की चार्जीशीट में ज़्यादातर नाम उन लोगों के हैं, जिन्होंने समान नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलाया था या इसमें भाग लिया था। इसमें जामिया मिल्लिया इसलामिया, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र हैं। इसमे पिंजड़ा तोड़ आन्दोलन से जुड़ी छात्राएं भी हैं। भारतीय जनता पार्टी के सांसद कपिल मिश्रा का नाम इस रूप में है कि उन्होंने कहा था कि यदि शाहीन बाग खाली नहीं कराया गया तो वे अनशन पर बैठ जाएंगे।
सच तो यह है कि कपिल मिश्रा ने कहा था कि यदि शाहीन बाग खाली नहीं कराया गया तो वे खुद अपने कुछ लोगों के साथ उसे खाली कराएंगे और उन्हें पुलिस भी नहीं रोक पाएगी। उन्होंने यह बात दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अफ़सरों की मौजूदगी में कही थी और लगभग चुनौती देने के स्वर में कही था।
इतना ही नहीं, एडिशनल चार्जशीट में सीपीआईएम के सीताराम येचुरी, अर्थशास्त्री जयति घोष और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर व लेखक अपूर्वानंद तक के नाम हैं।