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एग्जिट पोल: एमसीडी से बीजेपी की विदाई का क्या मतलब है?

एग्जिट पोल: एमसीडी से बीजेपी की विदाई का क्या मतलब है?

एमसीडी चुनाव में बीजेपी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, बड़ी संख्या में केंद्रीय मंत्री और कई राज्यों के संगठन पदाधिकारियों को चुनाव मैदान में उतारा था। बावजूद इसके एग्जिट पोल बताते हैं कि दिल्ली के लोगों पर आम आदमी पार्टी का रंग चढ़ा हुआ है।

तमाम एग्जिट पोल के मुताबिक दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव में आम आदमी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल रहा है। अगर एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित होते हैं तो यह माना जाना चाहिए कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जबरदस्त पकड़ है और पिछले 24 साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर बीजेपी एमसीडी से भी विदा होने जा रही है। अगर एग्जिट पोल के आंकड़े सही साबित होते हैं तो इसका दिल्ली में बीजेपी की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा, आइए इस बारे में बात करते हैं।

उससे पहले यह जानना जरूरी होगा कि दिल्ली में सातों सांसद बीजेपी के हैं और बावजूद इसके पार्टी अगर एमसीडी चुनाव में हारती है तो यह उसके लिए बहुत बड़ा झटका होगा।

देश के तमाम राज्यों में फतेह हासिल कर रही बीजेपी दिल्ली में करारी हार का घूंट पीने को मजबूर है। साल 2014 में मोदी-शाह युग के उदय के बाद से बीजेपी ने ऐसे राज्यों में भी सरकार बनाई है जहां उसकी सरकार बनने की कल्पना ही की जा सकती थी। ऐसे राज्यों में त्रिपुरा का नाम प्रमुख है। 

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1993 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनी थी लेकिन 1998 में कांग्रेस के हाथों मिली हार के बाद शिकस्त का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आम आदमी पार्टी के आने के बाद आगे बढ़ता चला गया।

ऐसा नहीं है कि दिल्ली में बीजेपी मजबूत नहीं है। एमसीडी में वह 15 साल तक सत्ता में रही है और 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह यहां की सभी 7 सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है लेकिन दिल्ली की विधानसभा में उसे बढ़त कब मिलेगी, दिल्ली में उसकी सरकार कब बनेगी, यह सवाल बीजेपी के साथ ही संघ परिवार को भी परेशान करता है।

बीजेपी 1998 से दिल्ली की सत्ता से बाहर है। पार्टी के कार्यकर्ता भी इस बात को लेकर निराश दिखते हैं कि दिल्ली की विधानसभा में उनकी सरकार बनने का ख्वाब कहीं ख्वाब ही ना रह जाए।

साल 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगाने के बाद भी बीजेपी 3 और 8 सीटों के आंकड़े तक पहुंच सकी। 

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शीला दीक्षित और केजरीवाल 

दिल्ली में आम आदमी पार्टी से लोहा लेने के लिए बीजेपी को एक लोकप्रिय स्थानीय चेहरे की सख्त जरूरत है। बीते सालों में बीजेपी ने वरिष्ठ नेता विजय कुमार मल्होत्रा से लेकर हर्षवर्धन, विजय गोयल, पूर्वांचल से आने वाले मनोज तिवारी तक को पार्टी ने अपना चेहरा बनाया है लेकिन पार्टी यहां की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी। पहले जहां शीला दीक्षित उसकी राह का रोड़ा बनी रहीं वहीं अब अरविंद केजरीवाल उसकी मुसीबत बन गए हैं।

एमसीडी के नतीजों का असर

दिल्ली में एमसीडी के चुनाव नतीजों की गूंज केवल दिल्ली की सियासत में ही नहीं कुछ हद तक उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में भी होती है। क्योंकि इन सभी राज्यों के मतदाता बड़ी संख्या में दिल्ली में रहते हैं। इसलिए एमसीडी का चुनाव बहुत अहम है और अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम अगर एमसीडी में आ गई तो निश्चित रूप से उनकी पकड़ दिल्ली में और मजबूत होगी। 

आम आदमी पार्टी के लिए यह जीत इसलिए भी बड़ी होगी क्योंकि 2017 के एमसीडी चुनाव में उसे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। 2017 में एमसीडी के 272 वार्डों के लिए चुनाव हुआ था। तब बीजेपी को 181 वार्डों में जीत मिली थी जबकि आम आदमी पार्टी को 48, कांग्रेस को 30 और अन्य को 13 वार्डों पर जीत मिली थी।

इस बार एमसीडी चुनाव में बीजेपी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, बड़ी संख्या में केंद्रीय मंत्री और कई राज्यों के संगठन पदाधिकारियों को चुनाव मैदान में उतारा था। बावजूद इसके एग्जिट पोल बताते हैं कि दिल्ली के लोगों पर आम आदमी पार्टी का रंग बरकरार है। यहां तक कि पार्टी के स्टार चेहरे अरविंद केजरीवाल भी एमसीडी के चुनाव में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे और उनका अधिकतर वक्त गुजरात के चुनाव में ही बीता। बावजूद इसके अगर आम आदमी पार्टी यहां जीत जाती है तो यह उसके लिए निश्चित रूप से एक बड़ी जीत होगी। 

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चेहरा बदलेगी बीजेपी?

अब ऐसे में बीजेपी के पास विकल्प क्या है। क्या वह दिल्ली की सियासत में किसी ऐसे चेहरे को उतारेगी जो उसे आम आदमी पार्टी के सामने लड़ाई में खड़ा कर सके क्योंकि 2015 और 2020 के चुनाव विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी पूरी ताकत लगाकर भी आम आदमी पार्टी का मुकाबला नहीं कर सकी है और अगले विधानसभा चुनाव में अब 2 साल का वक्त ही बचा है। 

स्मृति ईरानी को मिलेगा मौका?

ऐसी चर्चा है कि बीजेपी इस बार दिल्ली में पार्टी की कमान केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को सौंप सकती है। स्मृति ईरानी पंजाबी समुदाय से हैं और इस समुदाय का दिल्ली की सियासत में अच्छा खासा दखल है। 

स्मृति ईरानी साल 2004 में चांदनी चौक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं। हालांकि तब उन्हें हार मिली थी लेकिन वक्त बदला और कुछ ही साल में उन्होंने बीजेपी और केंद्र की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। 

कुल मिलाकर अगर बीजेपी को दिल्ली में अपनी सरकार बनानी है तो तो उसे किसी बड़े चेहरे को केजरीवाल के सामने करना होगा। कई महीनों से प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता की जगह किसी नए चेहरे को आगे लाने की बात चल रही है। देखना होगा कि वह किस नेता पर दांव लगाती है। 

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