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एमसीडी चुनाव: क्या आप दिल्ली में पिछली हार का बदला ले पायेगी?

एमसीडी चुनाव: क्या आप दिल्ली में पिछली हार का बदला ले पायेगी?

दिल्ली में अगले साल नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव होने वाले हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि चुनावों का बिगुल अभी से ही बज गया है। 

दिल्ली में चुनावों का बिगुल बज गया है। आप सोचेंगे कि अभी दिल्ली में कौन-से चुनाव हैं। चुनाव का बिगुल तो पश्चिम बंगाल में बजा है जहां बीजेपी हर कीमत पर जीतने के लिए आमादा है। मगर, दिल्ली में भी यही हाल है और यह हाल इसलिए है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी हर कीमत पर जीतने पर उतारू है। 

आपको ज्यादा माथापच्ची करने की जरूरत नहीं है। दिल्ली में अगले साल नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव होने वाले हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि चुनावों का बिगुल अभी से ही बज गया है। आम आदमी पार्टी के नेता रोजाना ही नगर निगम में बीजेपी को बेइमान साबित करने के लिए हर वाजिब-गैर वाजिब तरीका अपना रहे हैं। 

बीजेपी के लिए अभी दिल्ली से ज्यादा वे पांच राज्य महत्व रखते हैं जहां इस साल चुनाव होने वाले हैं। बड़ी बात यह है कि बीजेपी को सिर्फ असम में ही अपनी साख बचानी है। पश्चिम बंगाल के साथ-साथ केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में बीजेपी की सरकार नहीं है और वहां से जो कुछ भी मिलेगा, वह तो बीजेपी के खाते में इजाफा ही होगा।

बीजेपी के लिए भले ही अभी दिल्ली चिंता का विषय नहीं हो लेकिन आम आदमी पार्टी तो अब हर हाल में दिल्ली फतह करना चाहती है। विधानसभा के दो चुनावों में आंधी की तरह छाने वाली आम आदमी पार्टी 2017 में नगर निगम का चुनाव नहीं जीत सकी थी। तीनों नगर निगमों में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। 

2015 में विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीतने और उसके बाद हरचंद कोशिश करने के बाद भी आम आदमी पार्टी तीनों में से किसी भी नगर निगम में परचम नहीं फहरा सकी थी।

बीजेपी को मिली थी जीत

दक्षिण दिल्ली नगर निगम और उत्तरी दिल्ली नगर निगम में 104-104 और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में 64 सीटें हैं। बीजेपी ने दक्षिण दिल्ली में 70, उत्तरी दिल्ली में 64 और पूर्वी दिल्ली में 47 सीटें जीतकर अपनी कुल सीटों का आंकड़ा 181 तक पहुँचा दिया था। आम आदमी पार्टी तीनों नगर निगमों में सिर्फ 49 सीटें ही जीत सकी थी। उसे उत्तरी दिल्ली में 21, दक्षिण दिल्ली में 16 और पूर्वी दिल्ली में 12 सीटों पर जीत हासिल हो सकी थी। 

उसके लिए राहत की बात यह थी कि उसने कांग्रेस को जर्जर हालत में पहुंचाते हुए तीसरे नंबर पर धकेल दिया था। कांग्रेस को कुल 31 सीटें ही मिलीं जिनमें उत्तरी दिल्ली में 16, दक्षिण दिल्ली में 12 और पूर्वी दिल्ली में सिर्फ 2 सीटें ही मिली थीं।

अब आम आदमी पार्टी इन आंकड़ों को बदलना चाहती है और पिछले तीन महीनों से वह कोरोना को भुलाकर इसी अभियान में जुटी हुई है कि किसी भी तरह वह नगर निगम से उस बीजेपी को उखाड़ फेंके जो लगातार तीन बार से नगर निगम पर काबिज है। 

2007 में कांग्रेस को हराकर बीजेपी एकीकृत नगर निगम में सत्ता में आई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने नगर निगम के कांग्रेसी नेताओं के कद को कम करने के लिए नगर निगम को तीन हिस्सों में बांट दिया था लेकिन 2012 और उसके बाद 2017 में भी बीजेपी ने ही अपना कब्जा जारी रखा। 

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पैर पसार रही आम आदमी पार्टी 

वैसे तो इन दिनों आम आदमी पार्टी की नजर पंजाब, उत्तराखंड, यूपी, गोवा और गुजरात पर भी है। पार्टी के नेता इन राज्यों का दौरा करके लंबे-लंबे दावे कर रहे हैं लेकिन दिल्ली को जीतना उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतकर अरविंद केजरीवाल को जितना गुमान है, उतना ही मलाल 2017 नगर निगम चुनावों में हार का है। इसीलिए वे चुनावों से सवा साल पहले ही चुनाव का बिगुल बजा रहे हैं।

पिछली बार की थी गलती 

दरअसल, आम आदमी पार्टी इस बार का चुनाव नगर निगम के मुद्दों पर ही लड़ना चाहती है। वह नहीं चाहती कि 2017 जैसी गलती हो। 2017 में आम आदमी पार्टी 2015 विधानसभा चुनावों की जीत के घोड़े पर सवार थी। आम आदमी पार्टी ने उन चुनावों में नगर निगम के मुद्दों को चुनाव के मैदान में आने ही नहीं दिया। इसकी बजाय वह नगर निगम का चुनाव उस तरह केजरीवाल के नाम पर जीतना चाहती थी जिस तरह दूसरे राज्यों में बीजेपी मोदी के नाम पर लड़ती है। आम आदमी पार्टी को यह गलती भारी पड़ी। 

यह सच है कि आम आदमी पार्टी 2015 का चुनाव मुफ्त बिजली और पानी के मुद्दे पर जीती थी लेकिन 2017 के नगर निगम चुनावों में वह मुफ्त सुविधाओं का वैसा पिटारा नहीं खोल सकी जैसा उसने 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में खोला था।

आम आदमी पार्टी ने प्रॉपर्टी टैक्स माफ करने का नारा ज़रूर लगाया था लेकिन प्रॉपर्टी टैक्स से मुक्ति मुफ्त बिजली-पानी जैसी सुविधा नहीं है। इसके अलावा तब तक केजरीवाल की सरकार को आए सिर्फ दो साल ही हुए थे और इन दो सालों में वह कोई चमत्कार नहीं दिखा पाई थी। इसलिए बीजेपी ने नगर निगम के चुनावों को केजरीवाल के दो सालों के शासन पर जनमत संग्रह बना दिया। सच्चाई यह है कि आम आदमी पार्टी की यह नीति बीजेपी को भी रास आ गई कि नगर निगम की समस्याओं को चुनावों का मुद्दा बनने ही मत दो। 

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शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट 

उस वक्त एक तरह से कांग्रेस ने भी बीजेपी को जीतने में मदद की। चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट ले आई थी जो दिल्ली सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिए बनाई गई थी। उस कमेटी की रिपोर्ट ने दिल्ली सरकार के गवर्नेंस मॉडल के बखिये उधेड़ दिए थे। 

दिल्ली सरकार के तमाम मंत्रियों के ऑफिस में आम आदमी पार्टी के वालंटियरों की मौजूदगी, उनकी मोटी सैलरी और साथ ही महिला आयोग के ऑफिस में भी बड़े पैमाने पर आप समर्थकों की नियुक्ति को इस कमेटी ने अनुचित बताया था। आप सरकार के खर्चों पर भी उंगली उठाई गई थी। कांग्रेस उस समय अजय माकन के नेतृत्व में काफी सक्रिय हो गई थी और इसका साफ असर भी सामने आया था। यह माना जाता है कि दिल्ली में 37 से 40 फीसदी वोट बीजेपी की जेब में होते हैं। 

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वोट बैंक बचाने में कामयाब बीजेपी  

पिछले कई चुनावों में बीजेपी अपना वोट बैंक बचाए हुए है। मगर, उसका विरोधी वोट अगर बंट जाए तो उसे इसका बड़ा लाभ होता है। 2015 और 2020 में कांग्रेस को सिर्फ 8 और 4 फीसदी वोट मिला और सारा वोट आम आदमी पार्टी को शिफ्ट हो गया। नतीजा यह हुआ कि आम आदमी पार्टी जीत गई और बीजेपी हार गई। मगर, 2017 के नगर निगम चुनावों में ऐसा नहीं हुआ था। तब आम आदमी पार्टी को 26 फीसदी वोट मिले थे तो कांग्रेस भी 21 फीसदी वोटों पर आ गई थी। इसका नतीजा यह निकला कि बीजेपी बड़ी आसानी से जीत गई।

इस बार आम आदमी पार्टी जहां बीजेपी को भ्रष्ट साबित करने के लिए रोजाना एक-दो प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर रही है तो वहीं कांग्रेस में तोड़फोड़ के लिए भी जुटी हुई है। कांग्रेस के कई नेता उसके संपर्क में हैं जो सिर्फ टिकट की गारंटी मिलते ही पाला बदलने को तैयार हैं।

कांग्रेस ने युवा अनिल चौधरी को कमान तो सौंपी है लेकिन लगता है कि हाईकमान की प्राथमिकताओं में दिल्ली कहीं है ही नहीं। यही वजह है कि नौ महीने पहले अध्यक्ष बनने के बावजूद न वह अपनी टीम बना पाए हैं और न ही पुराने नेताओं को अपने साथ चलने के लिए राजी कर पाए हैं। आम आदमी पार्टी को यह रास आ रहा है। 

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आम आदमी पार्टी की रणनीति

आम आदमी पार्टी इस बार सारा ध्यान नगर निगम के मुद्दों पर ही लगा रही है। दिल्ली की सफाई, प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक अस्पताल, कॉलोनी के भीतर की सड़कें जैसे मोर्चों पर नगर निगम में सत्तारूढ़ बीजेपी को असफल साबित करना आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी रणनीति है। इन सब असफलताओं को वे बीजेपी के भ्रष्टाचार और निकम्मेपन से जोड़कर ऐसा धुआंधार प्रचार कर रहे हैं कि बीजेपी उसका सामना ही नहीं कर पा रही या फिर जानबूझ कर इस तरफ ध्यान नहीं दे रही। 

13 हजार करोड़ के फंड का मामला

आम आदमी पार्टी 13 हजार करोड़ के फंड के मामले में बीजेपी को चुनौती दे रही है तो साथ ही 2500 करोड़ के घपले का वैसा ही आरोप लगा रही है जैसा 2-जी स्पेक्ट्रम के मामले में हुआ था। उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने मिंटो रोड सिविक सेंटर का किराया दक्षिण दिल्ली नगर निगम से लेना था लेकिन तीनों नगर निगमों की माली हालत इतनी खराब है कि वे किराया तो क्या सैलरी भी नहीं दे पा रहे। इन हालात में उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने किराया माफ कर दिया तो आम आदमी पार्टी प्रचार कर रही है कि घपला हो गया। 

बीजेपी को घेरने की कोशिश 

जहां तक 13 हजार करोड़ के फंड का सवाल है तो पांचवें वित्त आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से नगर निगम की यह राशि दिल्ली सरकार पर बकाया बनती है लेकिन दिल्ली सरकार इसे देने के लिए तैयार नहीं है। केजरीवाल सरकार को पता है कि अगर यह फंड दे दिया तो फिर नगर निगम में सैलरी भी बंट जाएगी और निगम उन जिम्मेदारियों को भी पूरा कर सकता है जो उसे करनी चाहिए। इसलिए फंड न देकर निगम को पंगु बना दिया गया और इस सारे निकम्मेपन को बीजेपी का भ्रष्टाचार बताकर वह खूब प्रचारित कर रही है। उसकी मंशा यही है कि इस बार चुनाव नगर निगम की पिच पर ही हो। 

अब देखना यही है कि बीजेपी अपने थैले में से कौन-सा खरगोश निकालती है जो 2017 की तरह इस बार भी उसकी जीत का मंत्र बन सके। फिलहाल तो आम आदमी पार्टी बहुत ही अग्रेसिव और बीजेपी डिफेंसिव मोड में है।

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