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जानिए, केजरीवाल सरकार की आबकारी नीति पर क्या है विवाद

जानिए, केजरीवाल सरकार की आबकारी नीति पर क्या है विवाद

कथित दिल्ली आबकारी घोटाले के मामले में ईडी ने संजय सिंह के घर छापे क्यों मारे, सीबीआई ने मनीष सिसोदिया को गिरफ़्तार क्यों किया था? जानिए क्या विवाद है।

दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा लाई गई और फिर वापस ले ली गई आबकारी नीति को लेकर दिल्ली में फिर से बवाल मचा है। ईडी ने अब आप नेता संजय सिंह के घर पर छापा मारा है। दिल्ली शराब नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के अधिकारी आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह के आवास पर पहुंचे हैं। 

शराब नीति मामले में दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पहले से ही जेल में हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी घंटों तक पूछताछ हुई थी। इसी मामले में सांसद संजय सिंह के कई अन्य करीबी लोगों के परिसरों की तलाशी ली गई थी। शराब नीति मामले में दायर आरोपपत्र में संजय सिंह का नाम था।

बीजेपी और कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि आम आदमी पार्टी सरकार ने नई आबकारी नीति के जरिए बड़ा घोटाला किया है जबकि आम आदमी पार्टी का कहना है कि आबकारी नीति में कहीं कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है और केंद्र सरकार जांच एजेंसियों के जरिए उसके नेताओं को परेशान कर रही है। आबकारी नीति को लेकर यह पूरा मामला क्या है, आइए समझते हैं। 

दिल्ली सरकार के तर्क 

दिल्ली सरकार ने पिछले साल नवंबर में नई आबकारी नीति को सामने रखा था। नई आबकारी नीति को लेकर दिल्ली सरकार का तर्क था कि दिल्ली में 849 शराब की दुकानों में से 60 फ़ीसदी दुकानें सरकार की हैं और ये दुकानें निजी दुकानों के मुक़ाबले सरकार को बहुत कम टैक्स देती हैं। सरकार का कहना था कि दिल्ली में शराब माफ़िया की जबरदस्त पकड़ है और सरकार की 849 दुकानों के अलावा 2 हज़ार दुकानें शराब माफिया चलाते हैं। ये दुकानें घरों-गोदामों से चलती हैं। 

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2022 में बीजेपी ने किया था प्रदर्शन।

दिल्ली सरकार का कहना था कि सरकारी दुकानों में टैक्स चोरी से लेकर तमाम तरह की गड़बड़ियां हैं और बड़े पैमाने पर राजस्व की चोरी हो रही है। 

केजरीवाल सरकार ने कहा था कि नई शराब नीति का मुख्य उद्देश्य दिल्ली में शराब माफ़ियाओं पर शिकंजा कसना और शराब की बिक्री से दिल्ली सरकार का राजस्व बढ़ाना है। सरकार का दावा था कि इससे अवैध शराब का कारोबार ख़त्म हो जाएगा।

नई आबकारी नीति को लेकर केजरीवाल सरकार का कहना था कि शराब की दुकानों को पॉश और स्टाइलिश दुकानों में बदला जाएगा। इस नीति में यह भी कहा गया था कि शराब पीने वाले अब सुबह 3 बजे तक होटल, क्लब, रेस्तरां और बार में आराम से शराब पी सकते हैं।

दुकानों के बाहर भीड़

दिल्ली में नई आबकारी नीति का एलान होने के बाद शराब की दुकानों के बाहर लंबे वक्त तक अच्छी-खासी लाइनें लगी रही। इसकी वजह यह थी कि शराब की एक बोतल के साथ एक बोतल फ्री मिल रही थी और एक पेटी के साथ एक पेटी फ्री। कई जगहों पर शराब की कीमत बहुत ज्यादा गिरा दी गई थी। 

नई आबकारी नीति आने के बाद शराब बेहद सस्ती हो गई थी। कई शराब विक्रेताओं ने एमआरपी पर 40 प्रतिशत तक छूट दी थी। 

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साफ़ है कि नई शराब नीति से कंपनियों और दुकानदारों को छूट मिली कि वे एमआरपी से कम दाम पर शराब बेच सकते थे। क़ीमतें कम होने से उनकी बिक्री ज़्यादा हो गई थी और इससे कंपनियों और दुकानदारों के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी। लेकिन बड़ी संख्या में लोग शराब के नशे में डूबने लगे और यह मुद्दा एक बड़ी सामाजिक चिंता के रूप में सामने आया। 

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर दिल्ली की केजरीवाल सरकार नई आबकारी नीति को लेकर बैकफुट पर क्यों आ गई। अगर उसने कोई गड़बड़ी नहीं की थी तो उसे पुरानी आबकारी नीति पर टिके रहना चाहिए था। क्या इसके पीछे वजह उपराज्यपाल के द्वारा इस मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश किया जाना है?

सिसोदिया का आरोप

उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा था कि नई आबकारी नीति से बीजेपी का भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाता और साल में 9,500 करोड़ का राजस्व दिल्ली सरकार को मिल सकता था। उन्होंने कहा था कि बीजेपी ने प्राइवेट दुकानदारों को ईडी, सीबीआई की धमकी देकर उनकी दुकानें बंद करवा दी। बीजेपी का मक़सद है कि बिकने वाली वैध शराब की क़िल्लत हो और राजधानी में अवैध शराब बिके। 

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आबकारी नीति को लेकर अच्छा खासा विवाद होने के बाद इसे 2022 में 30 जुलाई को वापस ले लिया गया था। इससे कुछ दिन पहले ही दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के द्वारा नई आबकारी नीति की सीबीआई जांच की सिफारिश की गई थी। उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिल्ली के मुख्य सचिव को निर्देश दिया था कि वह आबकारी नीति में हुई कथित गड़बड़ियों के मामले में आबकारी विभाग की भूमिका की जांच करें। इसके साथ ही शराब के खुदरा लाइसेंस की बोली प्रक्रिया में कार्टेलाइजेशन को लेकर आई शिकायतों की भी जांच की जाए। उपराज्यपाल के द्वारा सीबीआई जांच की सिफारिश करने के बाद दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने भी इस मामले में अलग से जांच शुरू कर दी थी। 

मुख्य सचिव की रिपोर्ट 

दिल्ली के मुख्य सचिव ने 8 जुलाई 2022 को दी अपनी रिपोर्ट में कहा कि पहली नजर में ऐसा स्पष्ट होता है कि जीएनसीटीडी अधिनियम 1991, व्यापार नियमों का लेनदेन (टीओबीआर) 1993, दिल्ली उत्पाद शुल्क अधिनियम 2009 और दिल्ली उत्पाद शुल्क नियम 2010 का उल्लंघन किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 2021-22 के लिए शराब लाइसेंसधारियों को निविदा के बाद ‘अनुचित’ लाभ पहुंचाने के लिए जानबूझकर चूक की गई। 

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मुख्य सचिव की यह रिपोर्ट उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दोनों को भेजी गई थी और इसमें कहा गया था कि शीर्ष राजनीतिक स्तर पर किसी चीज के बदले में किया गया फेवर या फायदा दिए जाने के संकेत मिले हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि आबकारी विभाग के प्रभारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने तमाम फैसले लिए। इस दौरान स्थापित प्रावधानों का उल्लंघन हुआ और नई आबकारी नीति को नोटिफाइड कर दिया गया जिसका वित्तीय मामलों में बड़ा असर पड़ा। 

सीबीआई की एफआईआर 

नई आबकारी नीति को लेकर सीबीआई ने उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर पर छापेमारी करने के साथ ही उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की थी। एफआईआर में कुल 15 लोगों के नाम हैं और मनीष सिसोदिया को अभियुक्तों की सूची में पहले नंबर पर रखा गया है। सूची में मनीष सिसोदिया के अलावा आबकारी विभाग के कई अफसरों के साथ ही विजय नायर और दिनेश अरोड़ा के नाम भी शामिल थे। बीजेपी ने कहा था कि विजय नायर और दिनेश अरोड़ा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के लिए कैश कलेक्शन का काम करते थे। 

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सीबीआई ने एफआईआर में कहा था कि मनीष सिसोदिया के करीबियों अमित अरोड़ा, दिनेश अरोड़ा और अर्जुन पांडे ने शराब लाइसेंसधारियों से कमीशन इकट्ठा किया।

एफआईआर में आरोप लगाया है कि शराब कारोबारी समीर महेंद्रु ने दिनेश अरोड़ा के द्वारा चलाई जा रही एक कंपनी को 1 करोड़ रुपए दिए और उन्होंने अर्जुन पांडे और उसके सहयोगियों को दो से चार करोड़ रुपए दिए।

एफआईआर में कहा गया था कि विजय नायर, मनोज राय, अमनदीप ढल और समीर समीर महेंद्रु दिल्ली की नई आबकारी नीति बनाने और इसे लागू करने के काम में हुई गड़बड़ियों में शामिल हैं।

कई जगहों पर छापेमारी और गिरफ्तारी

केजरीवाल सरकार के द्वारा लाई गई और फिर वापस ली गई आबकारी नीति के मामले में जांच एजेंसी ईडी देशभर में कई जगहों पर छापेमारी कर चुकी है। ईडी ने दिल्ली-एनसीआर, पंजाब और हैदराबाद में कई जगहों पर छापेमारी की थी। 

अब तक इस मामले में कई लोगों की गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं। बीते महीने सीबीआई ने विजय नायर और ईडी ने समीर महेंद्रू को गिरफ्तार किया था। नायर आम आदमी पार्टी के कम्युनिकेशन विभाग के प्रभारी हैं जबकि समीर महेंद्रू इंडो स्पिरिट्स के मालिक हैं और शराब कारोबारी हैं। सीबीआई को अपनी जांच में समीर महेंद्रू द्वारा कथित तौर पर उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के करीबी सहयोगियों को करोड़ों रुपये का भुगतान किए जाने का पता चला था।

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2022 में हैदराबाद से शराब व्यवसायी अभिषेक बोइनपल्ली को गिरफ्तार किया गया था। अभिषेक बोइनपल्ली इस मामले में आरोपी अरुण रामचंद्र पिल्लई के सहयोगी हैं, पिल्लई का नाम भी सीबीआई की एफआईआर में शामिल है।

बीजेपी ने जारी किए स्टिंग

बीजेपी ने एक के बाद एक दो स्टिंग जारी कर यह दावा किया था कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने नई आबकारी नीति में जमकर भ्रष्टाचार किया है। यह स्टिंग आबकारी घोटाले में आरोपी नंबर 9 अमन अरोड़ा और सीबीआई के द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में आरोपी बनाए गए सनी मारवाह के पिता कुलविंदर मारवाह का था।

बीजेपी ने पूछे आदमी पार्टी से सवाल

बीजेपी ने पूछा था कि आम आदमी पार्टी ने शराब के ठेकों पर कमीशन 2 से बढ़ाकर 12% क्यों किया। बीजेपी नेताओं ने मनीष सिसोदिया से पूछा था कि आबकारी नीति के मामले में जो लोग अभियुक्त हैं उनसे उनके क्या रिश्ते हैं। 

दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने पूछा था कि मनीष सिसोदिया जवाब दें कि उन्होंने शराब माफियाओं को फायदा पहुंचाने के लिए 21 ड्राई-डे की संख्या को घटाकर 3 क्यों किया? उन्होंने बीयर की इंपोर्ट ड्यूटी को गैरकानूनी तरीके से कम क्यों किया।

गुप्ता ने पूछा था कि दिल्ली में आवासीय परिसरों, स्कूलों के पास, मंदिरों के पास शराब के ठेके खोलने की अनुमति क्यों दी गई।

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