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बिहार : महागठबंधन में सब कुछ तय, सीट बँटवारे में देरी क्यों?

बिहार : महागठबंधन में सब कुछ तय, सीट बँटवारे में देरी क्यों?

आगामी लोकसभा चुनाव की घंटी बज चुकी है। अब देखना यह है कि क्या एनडीए बिहार में विजयश्री हासिल कर पाता है या महागठबंधन उसे मात देता है।

राजनीतिक गलियारों से ख़बर आ रही है कि महागठबंधन 17 मार्च को सीट बँटवारे की औपचारिक घोषणा कर देगा। होली के पूर्व सीट बंटवारे का एलान कई लोगों के लिए ख़ुशियाँ लाएगा तो कई के मंसूबों पर पानी भी फेर सकता है। जानकारी के अनुसार, कुछ को छोड़, बाक़ी सीटों को फ़ाइनल कर दिया गया है। कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने भी 17 मार्च तक सीट बंटवारे के औपचारिक एलान की संभावना जताई है। लेकिन यह भी सूचना है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के सर्वेसर्वा जीतनराम मांझी इससे नाराज़ हैं।

जीतनराम मांझी को मनाने का ज़िम्मा कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह को दिया गया है। मांझी दिल्ली में महागठबंधन की बैठक से नाराज़ होकर पटना लौट गए थे। 

महागठबंधन के बड़े दलों, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में भी कुछ सीटों जैसे बेगूसराय, मुंगेर आदि पर पेच फंसा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि सीट बंटवारे में किसे कौन सी सीट मिलती है।

मांझी और उपेंद्र की मजबूरी

जहाँ तक मांझी का प्रश्न है, उनको एक सीट देने की बात कही जा रही है, जिससे वह संतुष्ट नहीं हैं और कम से कम दो सीट - गया और नालंदा की माँग पर अड़े हैं। मांझी ने चार सीटों पर दावेदारी की है जो कहीं से भी फ़िट नहीं बैठती। बता दें कि हाल ही में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष वृषिण पटेल ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया था।

उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) की बात करें तो उनको अभी तक काराकाट और मोतिहारी सीट देने को लेकर महागठबंधन एकमत है। हालाँकि कुशवाहा पाँच सीटों पर दावा ठोक रहे हैं। नरेंद्र मोदी कैबिनेट में मंत्री रहे उपेन्द्र कुशवाहा काफ़ी अलग-थलग पड़ते दिख रहे हैं। यही कारण है कि उनकी मोलजोल करने की ताक़त काफ़ी कम हुई है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव राम बिहारी सिंह ने भी उपेन्द्र कुशवाहा का साथ छोड़ दिया है।

राम बिहारी सिंह आरएलएसपी के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं। इसके पूर्व नागमणि ने उपेन्द्र से अपने रिश्ते तोड़ लिए थे। नागमणि ने उपेन्द्र पर भ्रष्टाचार में शामिल होने का भी आरोप लगाया था और उपेन्द्र को इस पर सफ़ाई देनी पड़ी थी।

वाम दलों और अनंत सिंह पर रार

सूत्रों से मिली जानकारी से अनुसार, अभी तक आरजेडी 20-22, कांग्रेस 11, आरएलएसपी को 3, हम (सेक्युलर) 2, मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को 1 और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव की पार्टी एलजेडी को 1 सीट देने पर सहमति बन चुकी है। वामदलों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। 

कांग्रेस चाह रही है कि वाम दलों के प्रभाव वाली बेगूसराय और कुछ और सीटें देकर उन्हें भी महागठबंधन में शामिल कर लिया जाए लेकिन आरजेडी वामदलों को शामिल करने का विरोध कर रही है।

आरजेडी का मानना है कि राज्य में युवा चेहरे के तौर पर सिर्फ़ तेजस्वी ही विपक्ष का एकमात्र चेहरा हो सकते हैं। आरजेडी को डर है कि कहीं कन्हैया चुनाव जीत जाते हैं तो वह भविष्य में तेजस्वी की 'युवा' दावेदारी को चैलेंज कर सकते हैं। महागठबंधन में सीट बंटवारे के औपचारिक एलान में देरी की एक वजह यह भी है। 

महागठबंधन में मुंगेर सीट को लेकर भी पेच फंसा हुआ है। कांग्रेस यहाँ से अनंत सिंह को चुनाव लड़ाना चाह रही है, जबकि आरजेडी पहले ही उनको 'बैड एलिमेंट' कह चुका है।

पप्पू यादव की पार्टी जनअधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) को भी महागठबंधन में जगह नहीं मिली है। आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव पप्पू से काफ़ी नाराज़ थे। यही कारण है कि पप्पू यादव को महागठबंधन में शामिल नहीं किया गया। 

पप्पू यादव मधेपुरा एवं पूर्णिया सीट पर पार्टी उम्मीदवार खड़ा करने की बात कह चुके हैं। चर्चा तो यह भी है कि मुकेश सहनी दरभंगा और खगड़िया सीट पर दावा ठोंक रहे हैं।

कांग्रेस में नई भर्तियाँ तेज़

महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान के बीच कई नेताओं के कांग्रेस ज्वाइन करने का सिलसिला अभी भी जारी है। ताज़ा घटनाक्रम में बिहार के दो पूर्व विधायकों बिजेन्द्र चौधरी एवं सतीश कुमार ने नई दिल्ली में कांग्रेस का दामन थाम लिया। चर्चा है कि मुज़फ़्फ़रपुर से चार बार विधायक चुने गए बिजेन्द्र को आगामी लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया जा सकता है।

मुज़फ़्फ़रपुर शुरू से ही काफ़ी चर्चित सीट रही है। अभी यहाँ से बीजेपी के अजय निषाद, जो कैप्टन जयनारायण निषाद के पुत्र हैं, सांसद हैं। चर्चा यह भी है कि पूर्व विधायक सतीश कुमार को भी कुछ आश्वासन मिला है और वह काफ़ी उत्साहित नजर आ रहे हैं।

एनडीए में प्रत्याशी चयन में देरी

दूसरी तरफ़ एनडीए में शुरू में सीट बंटवारे को लेकर थोड़ी दिक्कत आई थी। लेकिन उपेन्द्र कुशवाहा के बाहर चले जाने से रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी को फायदा मिला क्योंकि बीजेपी और जेडीयू 17-17 सीट पर लड़ने की घोषणा पहले ही कर चुके थे। एनडीए में लड़ाई इस बात को लेकर है कि बीजेपी को जेडीयू के लिए अपनी सीटें त्याग करनी पड़ रही हैं। 

पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू को सिर्फ़ 2 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि बीजेपी ने 22 सीटों और एलजेपी ने 6 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब जेडीयू ने अकेले चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया था जो ग़लत साबित हुआ।

आरजेडी ने जेडीयू के साथ मिलकर 2015 का विधानसभा चुनाव लड़ा था और काफ़ी अच्छी सफलता हासिल की थी। लेकिन बाद में नीतीश कुमार अलग हो गए और फिर से एनडीए में शामिल हो गए। आगामी लोकसभा चुनाव की घंटी बज चुकी है। अब देखना यह है कि क्या एनडीए बदली हुई परिस्थितियों में विजयश्री हासिल कर पाता है या महागठबंधन उसे मात देता है।

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