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रक्षा बजट 13 प्रतिशत बढ़ाया लेकिन इतना काफी नहीं  

रक्षा बजट 13 प्रतिशत बढ़ाया लेकिन इतना काफी नहीं  

देश के डिफेंस बजट के लिए घोषित 13 फीसदी की बढ़ोतरी कोई मायने नहीं रखती, वो भी ऐसे वक्त में जब आपको चीन से लगातार चुनौती मिल रही हो और पाकिस्तान के मंसूबे भी खतरनाक हों।  

पिछले दो सालों से चीन द्वारा भारत के खिलाफ पेश की गई असाधारण सुरक्षा चुनौती का मजबूती से मुकाबला करने के लिये इस साल भारत को अपने रक्षा बजट में 13 प्रतिशत की असामान्य बढ़ोतरी करनी पड़ी है। रक्षा बजट में यह बढ़ोतरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करेगी लेकिन भारत का रक्षा बजट चीन के घोषित रक्षा बजट से तीन गुना कम ही है जिसे ध्यान में रखा जाना चाहिये।

रक्षा बजट में यह बढ़ोतरी पूर्व सैनिकों को मिलने वाली पेंशन के अलावा तीनों सेनाओं के लिये नये हथियारों और शस्त्र प्रणालियों की खरीद पर होने वाले बढ़े हुए  खर्च की वजह से की गई है।

पूर्व-सैनिकों की पेंशन पर बढ़े हुए  सालाना खर्च को मिलाकर इस साल 2023-24 के रक्षा बजट में 5,93,537 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। पिछले साल रक्षा पर कुल 5.25 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। इस साल के बजट में पूर्व सैनिकों की पेंशन पर 1,38,205 करोड़ रुपये का प्रावधान है जो कि पिछले साल की तुलना में करीब 19 हजार करोड़ रुपये अधिक है।

मौजूदा सरकार ने विगत सालों की परम्परा को तोड़ते हुए रक्षा बजट को  रक्षा-पेंशन बजट से जोड़कर पेश करना शुरू किया है जिससे भारत के रक्षा बजट में असाधारण बढ़ोतरी दिखती है। वैसे हर साल की तरह इस साल के रक्षा बजट के प्रावधान में आधा से अधिक सैनिकों की पेंशन, वेतन-भत्तों के लिये ही होता है। रक्षा  बजट में सबसे अहम यह होता है कि नये शस्त्र मंचों और शस्त् प्रणालियों के लिये पूंजीगत व्यय के लिये कितना प्रावधान किया गया है। 

इस साल का पूंजीगत व्यय 1.62 लाख करोड़ रुपये है जो पिछले साल के पूंजीगत व्यय के प्रावधान ( 152,369 करोड़) से करीब 10 हजार करोड़ रुपये ज्यादा यानी करीब 6.7 प्रतिशत अधिक है। यानी गोलाबारूद और अन्य हमलावर प्रणालियों की खरीद के लिये अतिरिक्त 10 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान तीनों सेनाओं को अपनी समाघात क्षमता मौजूदा स्तर पर बनाए रखने में मदद करेगा। लेकिन तीनों सेनाओं की जरुरतों के मुताबिक नये लड़ाकू विमान, हथियार और शस्त्र प्रणालियों को हासिल करने के लिये इतना बजटीय प्रावधान काफी नहीं होगा।

हालांकि बजट में गैरवेतन- राजस्व खर्च के लिये पिछले साल के 62,431 करोड़ की तुलना में 44 प्रतिशत बढ़ाकर 90,000 करोड़ कर दिया गया है जिससे सेनाओं की मौजूदा क्षमता में  पैदा खाई को पाटा जा सकेगा।  

हिंद महासागर से लेकर चीन- पाक सीमा पर   भारत के सामने बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर तीनों सेनाओं को जिस तरह के शस्त्र चाहिये इनकी कमी  महसूस की जा रही है। भारत के सामने सबसे बडी चुनौती है कि यदि चीन और पाकिस्तान ने दोनों सीमाओं पर  भारत के सामने एक साथ मोर्चा खोल  दिया तो भारत अपने सीमित सैन्य संसाधनों से इनका मुकाबला कैसे करेगा। इसके अलावा दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी आर्थिक ताकत के तौर पर उभरने के बाद भारत को हिंद महासागर में अपने आर्थिक व सामरिक हितों को तो बचाना ही है  प्रशांत सागर के इलाके तक  अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिये जरुरी सैन्य संसाधनों से लैस होना होगा।

भारत की बढ़ी हुई सामरिक चुनौतियों के मद्देनजर भारतीय सेनाओं को भी उसी तुलना में सशक्त बनाना होगा। हिंद प्रशांत के समुद्री इलाके में दक्षिण चीन सागर से मलक्का जलडमरूमध्य से होकर भारत का आधा से अधिक समुद्री व्यापार होता है जिन्हें किसी सैन्य तनाव के दौरान साबित किया जा सकता है। भारत आने वाले इन व्यापारिक जहाजों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये भारत को सुदूर दक्षिण चीन सागर में भी अपनी नौसैनिक मौजूदगी बनानी होगी।


तीनों सेनाओं को नये हथियार तो खरीदने ही है. पहले से मौजूद शस्त्र प्रणालियों से लांच की जाने वाली मिसाइलों, राकेटों, गोला बारूद  आदि का भंडार भी इतना रखने की जरूरत है कि चीन से युद्ध छिड़ने की स्थिति में कम से कम दो सप्ताह तक का शस्त्र भंडार, जिसे वार स्टोरेज कहा जाता है, रखा जाए।  1999 में पाकिस्तान द्वारा करगिल की चोटियों पर छेड़े गए युद्ध के दौरान भारतीय सेना को अचानक आनन- फानन में विदेशों से गोला बारूद आदि आयात करने पडे थे।  लेकिन अब चीन से चल रही तनातनी के मद्देनजर अपने गोला बारूद का भंडार समुचित स्तर पर बना कर रखने की जरूरत है।

भारत का रक्षा बजट चीन के रक्षा बजट की तुलना में तीन गुना कम ही है। चीन का रक्षा बजट करीब 230 अऱब डालर के बराबर है जब कि अमेरिकी डालर में भारत का रक्षा बजट करीब 73 अरब डालर है। दूसरी ओर पाकिस्तान का पिछले साल का रक्षा बजट करीब 11 अऱब डालर के बराबर था। चीन और पाकिस्तान द्वारा साझा तौर पर पेश की जा रही सुरक्षा चुनौती के मद्देनजर भारत को अपनी सैन्य तैयारी और मजबूत करने की जरुरत है लेकिन  विकास और जनकल्याण पर  बढे हुए खर्चों की वजह से भारत अपनी सेनाओं पर केवल कामचलाऊ प्रावधान ही कर पाता है।  यही वजह है कि भारतीय वायुसेना में लडाकू विमानों के स्क्वाड्रनों की संख्या पिछले दो दशकों से नहीं बढ़ाई जा सकी है। वायुसेना को 45 स्क्वाड्रन विमान की जरूरत है लेकिन यह घटकर 30 स्कवाड्रन पर आ गया है। इसी तरह नौसेना को भी  पनडुब्बियों का बेड़ा तत्काल बढ़ाने की जरुरत है लेकिन वित्तीय संकटों के मद्देनजर  नौसेना की मांग को पूरा नहीं किया जा सका है।

थल सेना को भी अपने लड़ाकू सैनिकों को आधुनिकतम हथियार , हेलमेट , दूरबीन , रात में देखने वाले चश्मे आदि की जरूरत है लेकिन यह प्रक्रिया भी धीमी चल रही है।

 बदले हुए विश्व सामरिक माहौल में , भारत को एक सशक्त आवाज बनने के लिये अपनी सैन्य ताकत को इतना मजबूत करना होगा कि अन्य बड़ी ताकतें भारत के  आर्थिक सामरिक हितों को चोट पहुंचाने के बारे में न सोचें। इसके लिये भारत को अपने रक्षा बजट में समुचित आवंटन करना होगा ताकि भारत केवल एक क्षेत्रीय ताकत ही नहीं कहा जाए बल्कि चीन को भी चुनौती देने की स्थिति  में आ जाए। भारत का म़ौजूदा रक्षा बजट भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद का दो प्रतिशत से कम है जिसे बढ़ाकर तीन प्रतिशत तक करना होगा तभी भारत  एक  सैन्य ताकत बन कर अपने प्रतिद्वंद्वी देशों से लोहा ले सकता है।

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