चीन की सैनिक क्षमता का कितना मुक़ाबला कर सकता है भारत?
उत्तराखंड और उत्तरी सिक्किम में भारत और चीन को अलग करने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के दोनों तरफ सैनिकों का भारी जमावड़ा हो गया है। भारत और चीन के सैनिक बिल्कुल एक दूसरे की आँखों में आँख डाले खड़े ही नहीं है, बल्कि बीते हफ़्तों दोनों में एक बार गुत्थमगुत्था भी हुई थी। इसके साथ ही एक बेहद अहम सवाल खड़ा होता है। वह है, भारत और चीन की सैनिक क्षमता कितनी है, युद्ध को लेकर दोनों तरफ कितनी तैयारी है, दोनों की क्या ताक़त और क्या कमज़ोरियाँ हैं
आधुनिकीकरण, छंटनी
कम्युनिस्ट चीन की जन मुक्ति सेना यानी पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) कुछ दिन पहले तक दुनिया की सबसे बड़ी सेना थी। पर यह पुरानी टूटी हुई बड़ी मशीन की तरह थी, जिसके अधिकांश कल पुर्जे किसी काम के नहीं रह गए थे। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2015 में जो ‘चीनी स्वप्न’ (‘चाइनीज़ ड्रीम’) की जो बात कही थी, उसमें एक अत्याधुनिक, तेज़, छोटी और चुस्त सेना की परिकल्पना भी शामिल थी।उन्होंने चीनी सेना के आधुनिकीकरण का काम बड़े पैमाने पर शुरू किया, बड़े पैमाने पर छंटनी और सैनिकों को दूसरी सेवाओं में लगाने का काम किया।
चीनी सरकार के नियंत्रण में चलने वाली समाचार एजेन्सी शिन्हुआ में इस साल जनवरी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, पीएलए के सैनिकों की संख्या आधी हो चुकी है।
डिफेंस ऑफ़ जापान 2019 रिपोर्ट के मुताबिक़, अब यह 22 लाख सैनिकों वाली दुनिया की सबसे बड़ी सेना नहीं रही, बल्कि 9,80,000 सैनिकों की वाली दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना बन चुकी है।
बड़ी है भारतीय सेना
संख्या के लिहाज से भारतीय सेना सबसे बड़ी है, जिसमें 14 लाख से अधिक सैनिक अभी भी है। ज़ाहिर है, भारतीय सेना की चीनी सेना की तरह सर्जरी नहीं हुई है, न यह उसकी तुलना में उतनी अत्याधुनिक है।
भारतीय सेना में 14 लाख सैनिक हैं, जिनका बड़ा हिस्सा अंदरूनी समस्याओं से निपटने में लगा हुआ है। बाढ़, भूकंप और चक्रवाती तूफ़ान से लेकर मणिपुर, नागालैंड के विद्रोही ही नहीं, बस्तर के माओवादी छापामार गुरिल्लों तक से निपटने में लोगों को सबसे पहले सेना की ही याद आती है। कश्मीर में तो वह है ही।
चीन के पास 9,80,000 सैनिक हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल घरेलू समस्याओं में नहीं के बराबर होता है। वे शिनजियांग या तिब्बत में तैनात नहीं है। दक्षिण चीन सागर से लेकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे तक की सुरक्षा में उन्हें लगाया जाता है। पर मोटे तौर पर सुरक्षा या कॉम्बैट के ही काम में हैं। यह दोनों सेनाओं के बीच एक बड़ा अंतर है।
शी जिनपिंग के नेतृत्व में 2015 में शुरू हुए आधुनिकीकरण के बाद चीनी सेना बिल्कुल बदली हुई है। इसके पास भारत की तुलना में संख्या में अधिक और गुणवत्ता में बेहतर साजो सामान है।
बेहतर साजो-सामान
पीएलए के पास लगभग 13,000 टैंक हैं, भारतीय सेना के पास 4,100 टैंक हैं। इसी तरह चीनी सेना के पास 40 हज़ार बख़्तरबंद गाड़ियाँ हैं और इस मामले में भारत की कोई तुलना नहीं है, 2,800 बख़्तरबंद गाड़ियों के साथ यह बहुत पीछे है। इसी तरह चीनी सेना के पास 2,500 रॉकेट प्रोजेक्टर हैं और भारत के पास 266। इस मामले में दोनों के पास लगभग दस गुणे का अंतर है।ब्लू वॉटर नेवी
दोनों देशों की नौसेना में भी बहुत अंतर है। चीन के पास कुल 714 नौसेना के जहाज़ हैं, भारत के पास सिर्फ 295। चीन के पास 76 पनडुब्बियाँ हैं, भारत के पास 16 पनडुब्बियाँ ही हैं। भारत ब्लू वॉटर नेवी परियोजना के तहत 7 पनडुब्बियों पर काम कर रहा है, पर उनके बनने में कई साल लगेंगे।भारत के पास सिर्फ एक विमानवाहक पोत यानी एअरक्राफ़्ट कैरिअर है, आईएनएस विक्रमादित्य। इस पर 30 हवाई जहाज़ रखे जा सकते हैं और ऑपरेट कर सकते हैं। एक दूसरे विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर कोच्चि के शिपयार्ड पर काम चल रहा है। इस पर बहुत तेज़ी से काम हुआ और पैसे मिलते रहे तो यह 2022 तक बन कर तैयार हो पाएगा।
चीन के पास दो एअरक्राफ़्ट करियर हैं, लियाओनिंग और शॉनदोंग। एक तीसरे पर काम चल रहा है।
चीन के पास 33 डेस्ट्रॉयर हैं, यानी वे जहाज़ जिन्हें सीधे हमला करने के लिए भेजा जाता है। भारत के पास 11 डेस्ट्रॉयर हैं।
मिसाइल प्रणाली
इसी तरह मिसाइल सिस्टम में भी चीन भारत से आगे है। उसके पास शॉर्ट रेंज से लेकर लॉन्ग रेंज तक के यानी 50 किलोमीटर से लेकर 5,500 किलोमीटर रेंज तक की मिसाइलें है और हर तरह के प्लैटफ़ॉर्म से छोड़ने वाली मिसाइलें हैं। ये मिसाइलें भारत के पास भी हैं। पर उनकी संख्या और मारक क्षमता में अंतर हैं।
चीनी मिसाइल प्रणाली का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि उसने बीते साल दक्षिण चीन सागर के अपने अड्डे से 4,000 किलोमीटर दूर प्रशांत महासागर में स्थित गुआम द्वीप तक मिसाइल का परीक्षण किया था। गुआम द्वीप पर अमेरिकी नौसेना का अड्डा है।
वायु सेना
चीनी वायु सेना के पास 3000 हवाई जहाज़ हैं, भारत के पास 2000। इसी तरह चीन में 507 हवाई अड्डे हैं, जिनका वह ज़रूरत पड़ने पर सैनिक इस्तेमाल कर सकता है। भारत के पास ऐसे 346 हवाई अड्डे हैं। पहले चीन के पास सोवियत जमाने के मिग-21 और मिग-29 जैसे जहाज़ थे, उनकी संख्या अधिक थी।
चीन ने सोवियत युग के हवाई जहाज़ों को रिटायर कर दिया है और बड़े पैमाने पर नए और आधुनिक जहाज़ ले रहा है। भारत भी इस प्रक्रिया से गुजर रहा है, पर यहाँ रफ़्तार धीमी है।
जहाँ तक रक्षा बजट की बात है, साल 2019 में चीनी रक्षा बजट लगभग 225 अरब डॉलर का था, भारत का बजट 55 अरब डॉलर का। युद्ध की स्थिति में किसी देश की अर्थव्यवस्था पर भी नज़र डाली जाती है। चीनी अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था से बहुत आगे है।
दोनों देशों की रक्षा तैयारियों में साफ़ अंतर दिख रहा है और वह निश्चित तौर पर चीन के पक्ष में झुका हुआ है। दोनों देशों में फ़िलहाल युद्ध की कोई संभावना नहीं है। पर रक्षा तैयारियों पर नज़र डालना ज़रूरी होता है।