मृत्यु पंजीकरण: कोरोना से मौत की वास्तविक संख्या पता चलेगी या नहीं?
रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय ने नागरिक पंजीकरण प्रणाली यानी सीआरएस के आँकड़े जारी कर कहा है कि 2020 में देश में 81.16 लाख मौतें दर्ज की गईं। यह पिछले वर्ष 2019 की संख्या से लगभग छह प्रतिशत अधिक है। आम तौर पर हाल के वर्षों में साल दर साल मौत के रजिस्ट्रेशन में इतनी बढ़ोतरी होती ही रही है। सीआरएस के इन आँकड़ों में सभी तरह की मौतें शामिल हैं और इसमें अलग से कोरोना से मौत होना नहीं बताया गया है। यह सिर्फ़ मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने वालों की संख्या है। यहाँ तक तो शायद विवाद की कोई गुंजाइश नहीं थी। लेकिन बहस का विषय तब बन गया जब नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वीके पॉल ने इन आँकड़ों को कोरोना मौत के आँकड़ों से जोड़ दिया। उन्होंने कह दिया कि नागरिक पंजीकरण प्रणाली के आँकड़े संकेत देते हैं कि 2020 में कोरोना मौत के मामले शायद वास्तविक मौत की संख्या से काफ़ी अलग नहीं थे। तो क्या सच में ऐसा है?
वीके पॉल ने कहा है, 'यह आँकड़ा मृत्यु का कारण नहीं बताता है, लेकिन निश्चित रूप से 4.74 लाख अतिरिक्त मौतों में कोविड-19 की मौतें भी शामिल होंगी। रिपोर्ट की गई संख्या की तुलना में कोविड-19 के कारण कुछ और मौतें हो सकती हैं, लेकिन अब हमारे पास 2020 से मौतों की वास्तविक संख्या है। यह कुल संख्या है जिसके भीतर आप अधिक मृत्यु दर की बात कर रहे हैं और इसलिए, कोविड-19 के मौत के मामले बेहद ज़्यादा नहीं हो सकते हैं।'
उनका यह बयान तब आया है जब पिछले महीने ही एक रिपोर्ट आई थी कि पूरी दुनिया में कोरोना से मारे गए लोगों की वास्तविक संख्या बताने के डब्ल्यूएचओ के प्रयास को भारत रोक रहा है।
न्यूयॉर्क टाइम्स' ने ख़बर दी थी कि डब्ल्यूएचओ ने कोरोना महामारी से वैश्विक मृत्यु की गणना करने का एक महत्वाकांक्षी प्रयास किया है। रिपोर्ट के अनुसार 2021 के अंत तक कुल लगभग 1.5 करोड़ लोगों की मौत हुई होगी जबकि आधिकारिक तौर पर कुल मिलाकर 60 लाख लोगों की मौत बताई गई है। यानी आधिकारिक आँकड़ों से क़रीब 90 लाख ज़्यादा लोगों की मौत होने का अनुमान है जिसे रिपोर्ट नहीं किया गया है।
हालाँकि डब्ल्यूएचओ ने वह रिपोर्ट जारी नहीं की है, लेकिन अमेरिकी अख़बार ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि अतिरिक्त 90 लाख मौतों में से एक तिहाई से अधिक मौतें भारत में होने का अनुमान है।
आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार लगभग 5 लाख 20 हज़ार लोगों की मौत होना बताती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि डब्ल्यूएचओ के आँकड़ों के अनुसार मृतकों की यह संख्या 40 लाख होने का अनुमान है।
हालाँकि भारत ने डब्ल्यूएचओ के मौत के आँकड़े तय करने के तौर-तरीक़ों पर सवाल उठाया है। इसने कहा है कि इस तरह के गणितीय मॉडलिंग का उपयोग करके इतने विशाल भौगोलिक आकार और जनसंख्या वाले देश के लिए मृत्यु का आंकड़ों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
इससे पहले भी अमेरिका के एक शोध में भारत में मौत की संख्या कहीं ज़्यादा होने का संकेत दिया गया था। जब भारत में कोरोना की दूसरी लहर ढलान पर थी तब जुलाई 2021 में वह रिपोर्ट आई थी। वाशिंगटन स्थित अमेरिकी संस्था सेंटर फ़ॉर ग्लोबल डेवलपमेंट ने अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला था कि जनवरी 2020 से जून 2021 के बीच भारत में कोरोना से मौत की तादाद 49 लाख से 50 लाख के बीच होगी। हालाँकि तब भारत में कोरोना से मौत की आधिकारिक संख्या चार लाख से थोड़ी ज़्यादा बताई गई थी।
अंतरराष्ट्रीय पत्रिका द इकॉनमिस्ट ने जून 2021 में शोध की एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में कोरोना से मौत का वास्तविक आँकड़ा 5-7 गुना ज़्यादा होगा। जब उन्होंने यह रिपोर्ट दी थी तब भारत में कोरोना से मौत की आधिकारिक संख्या 3 लाख 67 हज़ार थी। सरकार ने इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया था।
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ही राज्यों से भी ऐसी रिपोर्टें आ रही थीं कि वास्तविक मौत के आँकड़े रिपोर्ट की गई संख्या से कहीं ज़्यादा थे। छत्तीसगढ़ में पांच गुनी ज़्यादा मौत बताई गई थी। राज्य में 2020 में अप्रैल-मई के दौरान 8,878 मौतें हुई थीं, लेकिन 2021 में इस दौरान 43,062 लोगों की मृत्यु हुई। यह सामान्य से लगभग पाँच गुना ज़्यादा थी। इसी तरह बिहार में नागरिक पंजीकरण प्रणाली के आँकड़ों के अनुसार 2021 में जनवरी से मई के बीच यह आँकड़ा क़रीब 2.2 लाख रहा था जो उससे पिछले साल से क़रीब 82 हज़ार ज़्यादा था।
इस बीच अब वीके पॉल का बयान कितना सही है, यह जानने से पहले यह जान लीजिए कि नागरिक पंजीकरण प्रणाली के आँकड़े क्या संकेत देते हैं।
नागरिक पंजीकरण प्रणाली यानी सीआरएस के आँकड़ों से पता चला है कि 2020 में पंजीकृत जन्मों की संख्या 2019 में 2.48 करोड़ से घटकर 2.42 करोड़ हो गई थी। मृत्यु पंजीकरण 2019 में 76.41 लाख से बढ़कर 81.16 लाख हो गया है।
यह 2020 में भारत में जन्म और मृत्यु की वास्तविक संख्या नहीं है, बल्कि केवल वे जन्म और मृत्यु हैं जो पंजीकृत हुए हैं। एक बड़ा तथ्य यह भी है कि हाल के वर्षों में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण में लगातार वृद्धि हुई है।
खासकर, मौतों के पंजीकरण में पिछले तीन वर्षों में तेज उछाल देखा गया है। 2019 में सभी मौतों में से 92 प्रतिशत पंजीकृत की गई थी, जबकि 2017 में 79 प्रतिशत मौतों का ही पंजीकरण हो पाया था। यह संख्या भी इसलिए पता चला कि भारत में जन्म और मृत्यु की वास्तविक संख्या का अनुमान नमूना पंजीकरण प्रणाली यानी एसआरएस से लगाया जाता है। एसआरएस में 2019 में भारत में 83.01 लाख लोगों के मरने का अनुमान था, जिनमें से 76.41 लाख मौतें ही पंजीकृत कराई गयी थीं।
अब कोविड से 2020 में मौत का आधिकारिक आँकड़ा देखिए। इसके अनुसार 2020 में कोरोना के कारण लगभग 1.49 लाख लोगों की मौत हुई थी। लेकिन अब तक इससे कुल 5.23 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
तो अब सवाल है कि जब देश भर में जितनी मौतें होती हैं उन सभी का पंजीकरण ही नहीं होता है तो नागरिक पंजीकरण प्रणाली के आँकड़ों के आधार पर कोरोना से मौत की संख्या का आकलन कैसे किया जा सकता है?