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आरएसएस के सरकार्यवाह बने दत्तात्रेय होसबाले 

आरएसएस के सरकार्यवाह बने दत्तात्रेय होसबाले 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में दत्तात्रेय होसबाले सरकार्यवाह पद के लिए चुना गया है। होसबाले 2009 से सह सरकार्यवाह का दायित्व निभा रहे थे। 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में दत्तात्रेय होसबाले को सरकार्यवाह पद के लिए चुना गया है। आरएसएस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर इसकी जानकारी दी है। होसबाले 2009 से सह सरकार्यवाह का दायित्व निभा रहे थे। वह भैयाजी जोशी का स्थान लेंगे। 

संघ में सरसंघचालक के बाद सरकार्यवाह दूसरा बड़ा पद होता है। संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की दो दिवसीय बैठक बेंगलुरू में हो रही है। 

कौन हैं दत्तात्रेय होसबाले 

दत्तात्रेय होसबाले का जन्म 1 दिसम्बर, 1955 को कर्नाटक के शिमोगा जिले के सोराबा तालुक़ में हुआ। उन्होंने अंग्रेज़ी विषय से स्नातकोत्तर तक की शिक्षा ग्रहण की है। दत्तात्रेय 1968 में 13 वर्ष की अवस्था में संघ के स्वयंसेवक बने और 1972 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े। अगले 15 वर्षों तक वे परिषद के संगठन महामंत्री रहे। 

दत्तात्रेय 1975-77 के जेपी आंदोलन में भी सक्रिय रहे और लगभग पौने दो वर्ष तक ‘मीसा’ क़ानून के अंतर्गत जेल में भी रहे। जेल में उन्होंने दो हस्तलिखित पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। 1978 में नागपुर नगर सम्पर्क प्रमुख के रूप में विद्यार्थी परिषद में पूर्णकालिक कार्यकर्ता बने। 

विद्यार्थी परिषद् में अनेक दायित्वों पर रहते हुए वे परिषद् के राष्ट्रीय संगठन-मंत्री भी रहे। संघ के मुताबिक़, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और पूर्वोत्तर भारत में विद्यार्थी परिषद के कार्य-विस्तार का सम्पूर्ण श्रेय भी उन्हें दिया जाता है। 2004 में उन्हें संघ का अखिल भारतीय सह-बौद्धिक प्रमुख बनाया गया। 

2008 से वह सह सरकार्यवाह के पद पर रहे। होसबाले कन्नड़ के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, हिंदी, संस्कृत, तमिल, मराठी आदि अनेक भारतीय एवं विदेशी भाषाएं जानते हैं और कन्नड़-मासिक ‘असीमा’ के संस्थापक-संपादक हैं।

राज्यसभा सांसद प्रोफ़ेसर राकेश सिन्हा ने बधाई देते हुए कहा कि होसबाले 18 साल की उम्र से सक्रिय हैं और आपातकाल में जेल में रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनमें विचार को आधुनिक संदर्भों में व्याख्यायित करने की अद्भुत क्षमता है।

किसान आंदोलन पर बोला संघ 

शुक्रवार को जारी की गई संघ की वार्षिक रिपोर्ट में दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसान आंदोलन को लेकर भी बयान दिया गया है। संघ ने कहा है कि राष्ट्र विरोधी और समाज विरोधी ताक़तें किसान आंदोलन का समाधान नहीं होने दे रही हैं। संघ की ओर से कहा गया है कि ऐसा लगता है कि इस आंदोलन का मक़सद देश में अस्थिरता का माहौल बनाना है और ऐसा राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा है। 

 - Satya Hindi

संघ प्रमुख मोहन भागवत।

इससे पहले जनवरी में भैया जी जोशी ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए इंटरव्यू में किसानों के आंदोलन को लेकर कहा था कि यह संभव नहीं है कि किसी भी संगठन की सभी मांगों को मान लिया जाए। 

जोशी ने कहा था, “किसी भी आंदोलन का लंबा चलना अच्छा नहीं होता है। कोई आंदोलन समाज पर अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालता है। इसलिए समाज के लिए भी यह ठीक नहीं है कि कोई भी आंदोलन ज़्यादा लंबा चले। इसलिए दोनों पक्षों को मुद्दे का हल निकालने की कोशिश करनी चाहिए।”

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