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जीरा के दाम आसमान पर, रिकॉर्डतोड मंहगा 

जीरा के दाम आसमान पर, रिकॉर्डतोड मंहगा 

जीरा के बाजार में पैदा हुए मांग-आपूर्ति के असंतुलन ने जीरे की कीमतों को रिकॉर्ड ऊंचाई के स्तर तक पहुंचा दिया है। इसने फसलों पर हो रहे मौसम के प्रभाव को भी सही साबित कर दिया है। 

जीरा, भारतीय रसोई का सबसे महत्वपूर्ण मसाला है जिसके बिना भारतीय खाने की कल्पना भी मुश्किल है। इस समय इसमें आग लगी हुई है, भाव आसमान छू रहे हैं। आज की तारीख में यह 550 -600 रुपये किलो तक बिक रहा है। 

लगातार महंगे हो रहे जीरे के पीछे का कारण मौसम में हो रहा अनियमित बदलाव है, जिसकी वजह से इसके उत्पादन पर फर्क पड़ रहा है। भारत के सबसे बड़े जीरा उत्पादक राज्य राजस्थान में मौसम के बदलते पैटर्न ने मांग-आपूर्ति के संतुलन को बिगाड़ दिया है। इससे जीरे के भाव लगातार महंगे हो रहे हैं।

भारत के मसाला कारोबार के सबसे बड़े केंद्र गुजरात के ऊंझा में पिछले हफ्ते जीरे की कीमतें 56,000 रुपये प्रति क्विंटल (100 किलोग्राम) तक पहुंच गईं।

ताजा जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार मार्च में मसालों की मुद्रास्फीति 18.21% तक बढ़ गई जो  खुदरा खाद्य बास्केट के घटकों में सबसे ज्यादा है। बाजार के आंकड़ों के अनुसार, भारत के मसाला कारोबार के सबसे बड़े केंद्र गुजरात के ऊंझा में पिछले हफ्ते जीरे की कीमतें 56,000 रुपये प्रति क्विंटल (100 किलोग्राम) तक पहुंच गई। जीरे के दामों में बढ़ोत्तरी का यह हाल तब है जब सर्दियों में बोए जाने वाले जीरे की कटाई चल रही है।

फेडरेशन ऑफ इंडियन स्पाइस स्टेकहोल्डर्स (एफआईएसएस) के अनुमानों के अनुसार गुजरात और राजस्थान में जीरे की बुआई वाले क्षेत्र में एक साल पहले की तुलना में लगभग 13%  की बढ़ोतरी हुई है। अनुमानों के अनुसार पिछले साल की तुलना में औसत पैदावार भी 13.2% अधिक होने की उम्मीद है।

राजस्थान के जोधपुर स्थित दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र के भागीरथ चौधरी ने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा कि इस उद्योग और व्यापार से जुड़े लोगों ने एक महीने पहले 26% सरप्लस की भविष्यवाणी की थी, जो कि सही नहीं है क्योंकि खराब और बदलते मौसम ने जीरे की फसल को नुकसान पहुंचाया है। कई रिपोर्टों में इसको दिखाया और बताया जा चुका था कि खराब मौसम का असर उत्पादन पर पड़ेगा।

चौधरी की फर्म ने जीरा उत्पादकों की तरफ से फसलों का सर्वेक्षण किया और पाया कि खराब मौसम ने न केवल उत्पादन को कम कर दिया है, बल्कि पैदावार भी लगभग एक तिहाई तक कम हो गई है।

भागीरथ चौधरी ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि उन्हें संदेह है कि जीरे के थोक व्यापारी कीमतों में कटौती करने के लिए उत्पादन के अनुमानों को बढ़ा रहे हैं ताकि किसानों के मुनाफा मार्जिन को कम कर सकें। आपूर्ति बढ़ने पर कीमतों में कमी के सिद्धांत का हवाला देते हैं।

जीरा के बाजार में पैदा हुए मांग-आपूर्ति के असंतुलन ने जीरे की कीमतों को रिकॉर्ड ऊंचाई के स्तर तक पहुंचा दिया है। इसने फसलों पर हो रहे मौसम के प्रभाव को भी सही साबित कर दिया है।  जीरे की बढ़ी हुई मांग और दामों मे बढ़ोतरी से किसानों को फायदा हुआ। मसालों के बाजार के काम करने के तरीके में आए ट्विस्ट के कारण भी किसानों को बाजार मूल्य का उचित लाभ मिल रहा है।  

ऊंझा कृषि बाजार उपज समिति के अध्यक्ष दिनेश पटेल ने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा कि  मांग-आपूर्ति में पैदा हुए अंतर से जीरे की कीमतें अपने उच्च स्तर पर पहुंच गईं। एफआईएसएस के अध्यक्ष अश्विन नायक कहते हैं कि गुजरात की तुलना में राजस्थान में जीरे की फसल का नुकसान ज्यादा है और कीमतें पिछले साल की तुलना में लगभग दोगुनी हैं।

जिस मौसम में हुए बदलाव की वजह से जीरे के दाम अपने उच्चतम स्तर पर हैं, उसमें लगातार बदलाव हो रहा है। इस बदलाव पर बात करते हुए चौधरी कहते हैं कि सर्दियों की अवधि कम होती जा रही है, फरवरी की शुरुआत जब जीरे के अंकुरण का समय होता है पाकिस्तान (पश्चिमी राजस्थान की सीमा से लगे) से पश्चिमी गर्म हवा चलने लगी है। जोकि कुछ साल पहले तक ऐसा नहीं हुआ था।  

800,000 बोरी (प्रत्येक 55 किलोग्राम) की मांग के तुलना में इस साल जीरे का उत्पादन लगभग 550,000 बैग होने का अनुमान है, जो 31% तक की बड़ी गिरावट है। गुजरात और राजस्थान में हुई बेमौसम बारिश से जीरे की फसल को नुकसान हुआ है।  

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