सरकारी पत्रिका में सावरकर को गांधी के बराबर खड़ा करने की कोशिश क्यों?
30 जनवरी 1948 को जब महात्मा गाँधी की हत्या की गई थी तब या उसके बाद के भी कई दशकों में शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि कभी विनायक दामोदर सावरकर की तुलना उस महात्मा गांधी से कर दी जाएगी जिनके बारे में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था- 'भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।'
आज उन्हीं महात्मा गांधी की यादों को सहेजकर रखने के लिए स्थापित संस्था गांधी स्मृति और दर्शन समिति की पत्रिका में सावरकर को महात्मा गांधी के बरक्स लाकर खड़ा करने की कोशिश की गयी है।
दरअसल, गांधी स्मृति और दर्शन समिति यानी जीएसडीएस संस्कृति मंत्रालय के अधीन कार्य करती है और इसके अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री होते हैं। जीएसडीएस द्वारा प्रकाशित एक मासिक पत्रिका अंतिम जन का नवीनतम अंक चर्चा में है। इसका अंक विनायक दामोदर सावरकर को समर्पित है। इस अंक की प्रस्तावना में कहा गया है कि 'सावरकर का कद गांधी से कम नहीं है'।
जीएसडीएस के उपाध्यक्ष और बीजेपी नेता विजय गोयल ने प्रस्तावना में सावरकर को 'महान देशभक्त' बताते हुए लिखा है, 'यह दुखद है कि जिन्होंने जेल में एक दिन भी नहीं बिताया है, और समाज के लिए योगदान नहीं दिया है, सावरकर जैसे देशभक्त की आलोचना करें…। सावरकर का इतिहास में स्थान और स्वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्मान महात्मा गांधी से कम नहीं है।' गोयल ने लिखा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके योगदान के बावजूद सावरकर को 'कई वर्षों तक स्वतंत्रता के इतिहास में उनको उचित स्थान नहीं मिला'।
वैसे विजय गोयल द्वारा लिखी गई इस प्रस्तावना और इस विशेष अंक में किए गए दावों पर विवाद हो रहा है। पत्रकार और गांधीवादी विचारों के मानने वाले लोगों ने सोशल मीडिया पर उनके दावों के विरोध में अपनी बात रखी है। जनसत्ता के संपादक रहे ओम थानवी ने कहा है, "गांधीजी की हत्या की जाँच के सिलसिले में गठित जस्टिस कपूर आयोग ने अपने अंतिम निष्कर्ष में 'सावरकर और उनकी मंडली (ग्रुप)' को गांधीजी की हत्या का षड्यंत्र रचने का गुनहगार ठहराया था। तमाशा देखिए कि गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति सावरकर को गांधीजी की ही ओट देकर इज़्ज़त दिलाने की कोशिश कर रही है।"
🧵के पहले ट्वीट का आरम्भ इस प्रकार पढ़ें: गांधीजी की हत्या की जाँच के सिलसिले में गठित …
— Om Thanvi | ओम थानवी (@omthanvi) July 16, 2022
ओम थानवी ने साफ़ तौर पर कहा है कि सावरकर की एक साफ़-सुथरी छवि पेश करने के लिए महात्मा गांधी की छवि का ही सहारा लिया जा रहा है। इतिहास के जानकार अशोक कुमार पांडेय ने कहा है कि गांधी स्मृति से आया 'सावरकर अंक' उसमें भी विजय गोयल ग़लतबयानी कर रहे हैं! उन्होंने कहा है कि विजय गोयल का यह लिखा कि सावरकर लंदन गए तो उनकी श्यामा प्रसाद मुखर्जी से मुलाक़ात हुई, एकदम ग़लत है। उन्होंने आज़ादी से पहले नाशिक कलेक्टर की हत्या के आरोप में सावरकर को सजा दिए जाने के गोयल के दावे को भी ग़लत बताया है।
गांधी स्मृति से आया 'सावरकर अंक' उसमें भी विजय गोयल जी, आप #savarkar पर ग़लतबयानी कर रहे हैं!
— Ashok Kumar Pandey अशोक اشوک (@Ashok_Kashmir) July 16, 2022
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गांधी की यादों को सहेज कर रखने के लिए स्थापित संस्था गांधी स्मृति और दर्शन समिति की पत्रिका अंतिम जन सावरकर विशेषांक छाप रहा है और उसमें सावरकर को गांधी के समकक्ष रखने का घटिया प्रयास हो रहा है। pic.twitter.com/XD0YxA2heM
— PANKAJ CHATURVEDI (@PC70001010) July 11, 2022
बता दें कि जीएसडीएस के अधिकारियों ने कहा है कि जून का अंक सावरकर को 28 मई को उनकी जयंती के अवसर पर समर्पित किया गया था। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने कहा है, 'जीएसडीएस स्वतंत्रता सेनानियों को स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने पर पत्रिका के आगामी अंक भी समर्पित करना जारी रखेगा।'
1984 में स्थापित जीएसडीएस का मूल उद्देश्य महात्मा गांधी के जीवन, मिशन और विचारों को विभिन्न सामाजिक-शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से प्रचारित करना है। गांधीवादियों का एक मनोनीत निकाय और विभिन्न सरकारी विभागों के प्रतिनिधि इसकी गतिविधियों का मार्गदर्शन करते हैं।
पत्रिका के जून के कवर पर सीताराम द्वारा सावरकर का एक स्केच है, और 68-पृष्ठ के लगभग एक तिहाई अंक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मराठी रंगमंच और फिल्म लेखक श्रीरंग गोडबोले, राजनीतिक टिप्पणीकार उमेश चतुर्वेदी, और कन्हैया त्रिपाठी जैसे लेखकों के सावरकर पर निबंध और लेख समर्पित किए गए हैं।
हिंदुत्व पर एक निबंध भी है, जिसे सावरकर ने इसी नाम से एक पुस्तक लिखी थी और उसी से इसे लिया गया है। गोयल की प्रस्तावना के बाद भारत में धार्मिक सहिष्णुता पर महात्मा का एक निबंध भी है।
वाजपेयी का निबंध सावरकर को 'व्यक्तित्व नहीं बल्कि एक विचार' कहता है और उल्लेख करता है कि सावरकर ने गांधी से पहले 'हरिजन' समुदाय के लोगों के उत्थान की बात की थी। गोडबोले ने सावरकर और गांधी की हत्या के मुक़दमे के बारे में लिखा और लेखक मधुसूदन चेरेकर ने गांधी और सावरकर के बीच संबंधों के बारे में लिखा है।