शहद में मिलावट! क्या रामदेव की कंपनी फ्रॉड कर रही है?
पतंजलि, डाबर जैसी कंपनियों के जिस शहद को शुद्ध कहकर बेचा जा रहा है उसपर गंभीर सवाल उठे हैं। सेंटर फ़ोर साइंस एनवायरमेंट यानी सीएसई ने कहा है कि प्रमुख ब्रांडों के शहद में शुगर सिरप मिलाया हुआ पाया गया है। शुगर सिरप को इस तरह बनाया जाता है कि मौजूदा भारतीय जाँच के तरीक़े उसे पकड़ नहीं पाते। चीन इस तरह के उन्नत सिरप बनाने में माहिर है जिसे भारत में जाँच कर पता करना मुश्किल है। अब भारत में भी ऐसे शुगर सिरप बनाए जाने लगे हैं। सीएसई ने इन कंपनियों के ब्रांड को जर्मनी की लैब में जाँच करने की बात कही है।
सीएसई द्वारा सवाल उठाए जाने पर पतंजलि और डाबर ने सीएसई के उन आरोपों को खारिज कर दिया है और कहा है कि उनका शहद 100 फ़ीसदी शुद्ध हैं। लेकिन यदि सीएसई के दावों की मानें तो फिर उपभोक्ता ठगे जा रहे हैं।
प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर सीएसई ने बुधवार को यही दावा किया। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि जाँच किए गए 13 ब्रांडों में से 10 ब्रांड के सैंपल न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजनेंस यानी एनएमआर टेस्ट में फ़ेल हो गए। एनएमआर टेस्ट सूक्ष्म स्तर पर उत्पाद की पड़ताल करता है। उन्होंने कहा कि जो 10 ब्रांड फ़ेल हुए हैं उनमें से तीन तो भारतीय गुणवत्ता के स्टैंडर्ड भी पास नहीं कर सके। पाँच उत्पाद राइस सिरप का पता लगाने वाले टीएमआर टेस्ट में फ़ेल हो गए।
गुणवत्ता जाँचने के लिए टीएमआर टेस्ट को पिछले साल अक्टूबर में ही सूची से हटा दिया गया था और एक अगस्त को ही भारत से बाहर निर्यात किए जाने वाले शहद के लिए एनएमआर टेस्ट आवश्यक किया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है कि निर्यात के मामले में कई देश एनएमआर मशीनों के माध्यम से प्रमाणित शहद को ही अपने अधिकार क्षेत्र में बेचते हैं।
सीएसई की रिपोर्ट में कहा गया है कि जर्मनी की लैब ने पाया कि डाबर के सभी तीन सैंपल एनएमआर टेस्ट में फेल हुए, एक सैंपल टीएमआर टेस्ट में फेल हुआ। पतंजलि के दो सैंपल टीएमआर और एनएमआर दोनों टेस्ट में फ़ेल हुए।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, सीएसई के आरोपों पर पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के एमडी आचार्य बालकृष्णन ने कहा कि कंपनी के उत्पाद '100 प्रतिशत शुद्ध' हैं। उन्होंने कहा, 'यह प्रसंस्कृत शहद को बढ़ावा देने के लिए भारतीय प्राकृतिक शहद उद्योग और निर्माताओं को बदनाम करने की साज़िश है। ऐसा लगता है कि जर्मन प्रौद्योगिकी और मशीनों को बढ़ावा देने के लिए यह एक अंतरराष्ट्रीय मार्केटिंग डिजाइन है, जिसकी लागत करोड़ों रुपये है।'
डाबर इंडिया लिमिटेड ने कहा, 'हालिया रिपोर्ट हमारे ब्रांड का नाम ख़राब करने के उद्देश्य से लाई गई लगती हैं। हम अपने उपभोक्ताओं को विश्वास दिलाते हैं कि डाबर हनी 100% शुद्ध है। हम अपने उपभोक्ताओं को यह भी आश्वस्त करते हैं कि डाबर चीन से कोई शहद / सिरप आयात नहीं करता है और हमारे शहद को पूरी तरह से भारतीय मधुमक्खी पालकों से लाया जाता है।'
कंपनी की ओर से कहा गया, 'डाबर एफ़एसएसएआई द्वारा तय अनिवार्य 22 मानकों के अनुरूप है। इसके अलावा, डाबर हनी को एफ़एसएसएआई द्वारा अनिवार्य रूप से तय एंटीबायोटिक की उपस्थिति का भी परीक्षण किया जाता है। इसके साथ ही डाबर देश में एक मात्र कंपनी है जहाँ एनएमआर परीक्षण के उपकरण हैं।'
देश में गुणवत्ता जाँच के दावों पर एफ़एसएसएआई के सीईओ अरुण सिंघल ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि हमारे वैज्ञानिक पैनल ने महसूस किया कि टीएमआर अब ज़रूरी नहीं था क्योंकि राइस सिरप के लिए विशिष्ट मार्कर परीक्षण (एसएमआर) अनिवार्य था। उन्होंने कहा कि कुछ समूह एनएमआर मशीनों के उपयोग की वकालत करते रहे हैं लेकिन एनएमआर बहुत महँगा होता है। एक और दिक्कत है कि एनएमआर तकनीक का उपयोग करने के लिए एक पर्याप्त डेटाबेस अभी तक उपलब्ध नहीं है।
अरुण सिंघल ने कहा कि हम सीएसई द्वारा प्रकाशित निष्कर्षों का अध्ययन करेंगे और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सभी कार्रवाई करेंगे कि हमारे देश में केवल शुद्ध और बिना मिलावट वाला शहद ही बेचा जाए।
हालाँकि, सुनीता नारायण ने कहा कि सीएसई एनएमआर को अनिवार्य करने की वकालत नहीं कर रहा था क्योंकि चीनी वैसे ‘सिरप बना सकते हैं जो एनएमआर परीक्षणों में भी पकड़ में नहीं आएँगे।’ सीएसई ने कहा कि यह माँग थी कि चीन से सिरप और शहद के आयात को रोका जाए, भारत सरकार उन्नत तकनीकों का उपयोग करके नमूनों का परीक्षण करवाए और इस जानकारी को सार्वजनिक करे ताकि उपभोक्ता जागरूक हों।