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सीएसडीएस के सर्वे में सामने आया युवा वोटरों का रुझान

सीएसडीएस के सर्वे में सामने आया युवा वोटरों का रुझान

सीएसडीएस के इस सर्वे में 764 छात्रों ने भाग लिया और उनके सवालों के जवाब दिए। यह सर्वे नेशनल वोटर्स डे के परिपेक्ष्य में वोटर की चुनावी जागरुकता को जानने के लिए किया गया था।

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच 16-20 जनवरी के बीच लोकनीति और सीएसडीएस द्वारा किए गये सर्वे में युवाओं के राजनीतिक रुझान को लेकर कुछ नए खुलासे हुए हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक सीएसडीएस के इस सर्वे में 764 छात्रों ने भाग लिया और उनके सवालों के जवाब दिए। यह सर्वे नेशनल वोटर्स डे के परिपेक्ष्य में वोटर की चुनावी जागरुकता को जानने के लिए किया गया था।

सीएसडीएस के इस सर्वे का पहला सवाल था कि भारत के अगले लोकसभा चुनाव कब होने हैं। लगभग 70% छात्रों ने इसका सही जवाब दिया इसमें  79% लड़के और 55% लड़कियों के जवाब सही थे।

इसी क्रम में दूसरा सवाल था कि कितने लोगों ने अपना नाम वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराया हुआ है, इस सवाल के जवाब में 55 प्रतिशत छात्रों ने बताया कि उनका नाम वोटर लिस्ट में शामिल है। इसमें 58 प्रतिशत लड़के और 51 प्रतिशत लड़कियां शामिल हैं।  

वोटर लिस्ट में नाम दर्ज न कराने का कारण क्या है जानने पर जो जवाब मिले उसमें 53 प्रतिशत ने समय के अभाव का हवाला दिया जबकि 8 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें वोट देने में कोई रुचि नहीं है, 12 प्रतिशत ने रजिस्ट्रेशन में आने वाली दिक्कतों का हवाला दिया। 12 प्रतिशत के पास इसकी कोई ठोस वजह नहीं थी।

वोट देने से कुछ असर होता है के सवाल पर नब्बे प्रतिशत छात्रों ने सहमति जताई, इसमें 89 प्रतिशत लड़के और 91 प्रतिशत लड़कियों को लगता है वोट देने से फर्क पड़ता है। वोटिंग के लिए बैलट पेपर या फिर ईवीएम क्या ज्यादा बेहतर विकल्प है? इस सवाल के जवाब में पांच में से चार लोगों ने वोटिंग के लिए ईवीएम को प्राथमिकता दी।

नेताओं के रिटायरमेंट की उम्र के सवाल पर चार में से तीन लोगों ने सहमति जताई और कहा कि नेताओं के रिटायरमेंट की उम्र तय होनी चाहिए। ऐसा मानने वालों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या थोड़ी सी ज्यादा है। इस सवाल के समर्थन पोस्ट ग्रेजुएशन कर छात्रों की संख्या ज्यादा थी। इसको आर्ट औऱ साइंस के छात्रों का समर्थन ज्यादा मिला बजाए कॉमर्स के।

पांच में से चार छात्रों ने कहा कि चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम योग्यता एक पैमाना होनी चाहिए। इस सवाल पर महिलाओं का रुख पुरुषों की तुलना थोड़ा सा ज्यादा सकारात्मक रहा। इसको मास्टर्स का पढ़ाई कर रहे छात्रों का भी ज्यादा समर्थन मिला बजाए ग्रेजुएशन के छात्रों के।

एक साथ चुनाव कराने के सवाल पर पांच में से तीन छात्रों ने असहमति जताई और कहा कि यह बेकार का विकल्प है।

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