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CSDS-लोकनीति चुनाव बाद सर्वेः मोदी फैक्टर क्यों हवा हवाई हो गया

CSDS-लोकनीति चुनाव बाद सर्वेः मोदी फैक्टर क्यों हवा हवाई हो गया

लगभग एग्जिट पोल ने मोदी को अजेय बताया था। तमाम राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा था कि मोदी फैक्टर ने भाजपा की हार की कल्पना को नामुमकिन कर दिया है। लेकिन नतीजा सामने है। चुनाव के बाद सीएसडीएस-लोकनीति ने सर्वे किया, जिसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि महगाई, बेरोजगारी, करप्शन के कारण मोदी फैक्टर हवा में उड़ गया। लोगों ने मोदी फैक्टर पर वोट नहीं डाले, बल्कि अपनी रोजमर्रा जिन्दगी से जुड़े मुद्दों पर वोट डाले। हालांकि सीएसडीएस-लोकनीति ने तो अपने चुनाव पूर्व सर्वे में ही कह दिया था कि इस बार मंदिर कोई मुद्दा नहीं है। यह सच हुआ- अयोध्या में भाजपा हार गई। अब ताजा सर्वे के बारे में जानिएः 

केंद्र में बेशक भाजपा के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन की सरकार बनने जा रही है लेकिन मोदी भारत के सर्वमान्य नेता नहीं रहे। उन्होंने खुद अपना मुकाबला नेहरू से किया था, लेकिन पिछले एक दशक में जिस मोदी फैक्टर को भाजपा आगे बढ़ा रही थी, दरअसल वो स्थिर हो गया था और उसने 2024 के चुनाव में पार्टी की कोई मदद नहीं की।

लोगों को जल्द ही समझ आ गया कि हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद की भावनाओं में बहाकर उनसे बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती महंहाई और लोगों की कम होती आमदनी की तरफ से ध्यान भटकाने की कोशिश है। यही वजह है कि 2014 और 2019 में अपार जनसमर्थन पाने वाली भाजपा इस बार अपने दम पर बहुमत तक नहीं पा सकी। उसे क्षेत्रीय दलों का समर्थन लेकर सरकार बनाना पड़ रही है। सीएसडीएस लोकनीति सर्वे में कहा गया जनता ने अपने मुद्दों के आधार पर वोट डाला था।  

2024 के चुनावों में भाजपा (और एनडीए) ने अपनी चुनावी रणनीति के तहत मोदी को अपने अभियान का चेहरा बनाया। खुद मोदी भी यही चाहते थे। एनडीए गठबंधन के उम्मीदवारों ने मोदी के लिए तीसरे कार्यकाल के लिए वोट मांगा। मोदी ने कहा कि आप लोग सिर्फ मोदी की गारंटी को वोट दीजिए। मोदी ने पूरे देश में गठबंधन उम्मीदवारों के लिए भी प्रचार किया। विपक्षी गठबंधन ने यह सूझबूझ दिखाई कि  इस चुनाव को नेतृत्व की लड़ाई न बनाया जाए और जानबूझकर किसी चेहरे को आगे नहीं रखा गया।  लोकनीति-सीएसडीएस डेटा बताता है कि इस खास वजह ने 2024 के चुनावी नतीजों को आकार देने में मदद की। यानी एक तरफ मोदी-मोदी-मोदी था, दूसरी तरफ सिर्फ जनता के मुद्दे थे, कोई नेता नहीं थे। सामूहिक नेतृत्व था।

लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक, कम से कम 30% मतदाताओं ने कहा कि वे महंगाई को लेकर चिंतित थे, जो चुनाव से पहले 20% से भी ज्यादा है। करीब 32% मतदाताओं की मुख्य चिंता बेरोजगारी थी। सर्वे एजेंसी ने पूरे मतदान के दौरान भारत के 28 में से 23 राज्यों के लगभग 20,000 मतदाताओं से बात की।

कांग्रेस के घोषणापत्र के जरिए नौकरी देने का मुद्दा जब उछलने लगा तो भाजपा ने भी इसे छूने की कोशिश की और ढेरों वादे कर डाले। इसके बाद यह आंकड़ा 27% पर आ गया। यानी लोगों को थोड़ा भरोसा हुआ कि तीसरी बार आने पर मोदी सरकार रोजगार देगी। लेकिन ऐसे मतदाताओं का अंतर सिर्फ 5% था। 

सीएसडीएस लोकनीति सर्वे के अनुसार घटती आमदनी और भ्रष्टाचार तथा घोटालों से निपटने का सरकार का तरीका मतदाताओं को चिंतित करने वाले अन्य मुद्दे थे। कुल 21% मतदाताओं ने कहा कि उन्होंने देश के विकास के प्रयासों के लिए भाजपा को चुना, जबकि 20% ने मोदी के नेतृत्व को चुना, जो चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में 10% से दोगुना हो गया।

सर्वे में यूपी के अयोध्या शहर में भव्य मंदिर के निर्माण को मोदी और भाजपा सरकार का सबसे पसंदीदा काम बताया गया। हालांकि इसके बावजूद भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह फैजाबाद लोकसभा सीट 50 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए। यही लल्लू सिंह थे, जिन्होंने कहा था कि 400 पार के बाद संविधान बदलना लाजमी है। लल्लू की हार ने अयोध्या में नया इतिहास लिख दिया है।

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