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सीएसडीएस-लोकनीति 2024 चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में बेरोजगारी कितना बड़ा मुद्दा?

सीएसडीएस-लोकनीति 2024 चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में बेरोजगारी कितना बड़ा मुद्दा?

लोकसभा चुनाव से पहले सीएसडीएस-लोकनीति के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में रोजगार बड़ा मुद्दा उभरकर सामने आया है। तो क्या इससे चुनाव नतीजे पर सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा? जानिए, सर्वे में क्या-क्या कहा गया है। 

सीएसडीएस-लोकनीति के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के अनुसार मतदाताओं की सबसे बड़ी चिंता बेरोजगारी है। सर्वे किए गए लोगों से जब यह सवाल पूछा गया कि उनका सबसे बड़ा एक मुद्दा क्या है तो इसमें सबसे ज़्यादा 27 फ़ीसदी लोगों ने बेरोजगारी को मुद्दा बताया। 

बेरोजगारी के बाद महंगाई दूसरा बड़ा मुद्दा उभरकर सामने आया है। इसमें महंगाई को 23%, विकास को 13%, भ्रष्टाचार को 8%, अयोध्या में राम मंदिर को 8%, हिंदुत्व को 2%, भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि को 2% और आरक्षण को 2% लोगों ने सबसे बड़ा मुद्दा बताया। अन्य उत्तर 9% आए और 6% लोगों ने कहा कि मुद्दा पता नहीं। 

सीएसडीएस-लोकनीति ने द हिंदू के साथ मिलकर सर्वे किया है। चुनाव पूर्व इस सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से लगभग दो तिहाई यानी क़रीब 62% ने कहा है कि नौकरियां पाना अधिक मुश्किल हो गया है। ऐसा मानने वाले शहरों में 65% हैं। गाँवों में 62% और कस्बों में 59% लोग ऐसा मानते हैं। 59% महिलाओं की तुलना में 65% पुरुषों ने यह राय साझा की। केवल 12% ने कहा कि नौकरी पाना आसान हो गया है।

सर्वे के अनुसार मुसलमानों में यह चिंता सबसे अधिक थी। 67% ने कहा कि नौकरी पाना मुश्किल हो गया है, यह संख्या अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के हिंदुओं में 63% और अनुसूचित जनजाति की 59% है। जब लोगों से यह सवाल पूछा गया कि क्या नौकरियाँ पाना आसान था? हिंदू उच्च जातियों के 17% लोगों ने कहा कि यह आसान है। यहाँ तक कि उनमें से 57% ने महसूस किया कि नौकरियाँ पाना अधिक मुश्किल हो गया है।

सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि 17 फीसदी लोग राज्य सरकारों को, 21 फीसदी लोग केंद्र को और 57 फीसदी लोग केंद्र व राज्य दोनों को नौकरी के अवसरों को कम करने के लिए जिम्मेदार मानते हैं। महंगाई के मुद्दे पर भी केंद्र को 26%, राज्य को 12% और दोनों को 56% लोग ज़िम्मेदार मानते हैं।

2019 के चुनाव बाद सर्वेक्षण में 11 फीसदी लोगों ने बेरोजगारी को मुद्दा बताया था जो अब बढ़कर 2024 के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में 27% हो गया है। 

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की भारत रोजगार रिपोर्ट-2024 बताती है कि 2022 में कुल बेरोजगार आबादी में बेरोजगार युवाओं की हिस्सेदारी 82.9% थी।

मानव विकास संस्थान और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा तैयार भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 में कहा गया है, 'भारत में बेरोजगारी मुख्य रूप से युवाओं, विशेष रूप से माध्यमिक स्तर या उससे अधिक शिक्षा वाले युवाओं के बीच एक समस्या थी, और यह समय के साथ बढ़ती गई।'

रिपोर्ट के अनुसार भारत के बेरोजगार कार्यबल में लगभग 83% युवा हैं और कुल बेरोजगार युवाओं में माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की हिस्सेदारी 65.7% है। यानी बेरोजगार युवाओं के बारे में कोई यह भी नहीं कह सकता है कि जब पढ़ाई नहीं पढ़ेंगे तो रोजगार कहाँ से मिलेगा। ऐसे पढ़े-लिखे युवाओं का प्रतिशत बढ़ता रहा है। साल 2000 में यह दर 35.2 फ़ीसदी ही थी। यानी क़रीब 22 साल में इसमें क़रीब 30% प्वाइंट की बढ़ोतरी हुई है। यह भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 में आँकड़ा आया है। 

सीएसडीएस के इस ताज़ा सर्वेक्षण के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था से जुड़ा संकट मतदाताओं के लिए गंभीर चिंता का विषय है। सार्थक रोजगार के अवसर सुरक्षित न कर पाने का डर, महंगाई की वास्तविकता, जीवन और आजीविका पर इसका प्रभाव और ग्रामीण संकट का तथ्य कुछ ऐसा है जो सर्वे में शामिल लोगों के दिमाग में है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि आर्थिक रूप से कम संपन्न लोग इस संकट को अधिक तीव्रता से अनुभव कर रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को आर्थिक चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता है, बल्कि उनके पास इससे मुकाबला करने की रणनीतियाँ और साधन उपलब्ध हैं।

अर्थव्यवस्था की इन तमाम चिंताओं को देखते हुए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि चुनाव में कौन से मुद्दे हावी रहेंगे। सर्वे में शामिल आधे लोगों ने बेरोजगारी और महंगाई को प्रमुख चुनावी मुद्दे बताया। 

यह अहम है कि 2019 के सीएसडीएस-लोकनीति चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के अनुसार, 2019 में बमुश्किल छठा हिस्सा ही यानी क़रीब 16 फ़ीसदी लोगों ने इन दो मुद्दों का उल्लेख किया था।

सर्वे में 19 राज्यों में क़रीब 10 हज़ार लोगों की राय ली गई है। ताज़ा सर्वे में अमीरों द्वारा इन मुद्दों को उठाने की संभावना कम थी और ग्रामीण उत्तरदाताओं द्वारा बेरोजगारी और महंगाई का उल्लेख उन मुद्दों के रूप में करने की अधिक संभावना थी जिनसे वे चिंतित थे। कम पढ़े-लिखे लोग महंगाई को लेकर ज्यादा चिंतित थे, जबकि ज्यादा पढ़े-लिखे और युवा मतदाता बेरोजगारी को लेकर ज्यादा चिंतित थे।

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