फ़सल बीमा का भुगतान हरियाणा में एक साल पहले 2022-23 में जहाँ 2496.89 करोड़ रुपये हुआ था वहीं 2023-24 में यह घटकर 224.43 करोड़ रुपये हो गया। राजस्थान, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में भी इस दौरान यह क़रीब आधा हो गया। तो सवाल है कि किसानों को फ़सल बीमा के पैसे कम क्यों हो गए हैं? क्या सरकार ने इसके लिए बजट ही कम कर दिया है? क्या फ़सल बीमा के पैसे बीमा कंपनियाँ हड़प रही हैं? या इसके पीछे कुछ और ही वजह है?
फ़सल बीमा भुगतान कम होने को लेकर केंद्र सरकार से सवाल पूछा गया। सरकार ने इस सवाल के जवाब में जो कहा है उसी से देश भर में फ़सल बीमा का भुगतान काफ़ी घटने बात सामने आई है। एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र ने कहा है कि देश भर में किसानों को किए गए दावों का भुगतान 2022-23 में 18,211.73 करोड़ रुपये से घटकर 2023-24 में 15,504.87 करोड़ रुपये रह गया है।
लेकिन सबसे चौंकाने वाली कमी हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में हुई है। हरियाणा में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना यानी पीएमएफबीवाई और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना यानी आरडब्ल्यूबीसीआईएस के तहत किसानों को किया जाने वाला भुगतान 2022-23 में 2496.89 करोड़ रुपये से घटकर 2023-24 में 224.43 करोड़ रुपये हो गया।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने लोकसभा को यह जानकारी दी। वह 4 फरवरी को हरियाणा के रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के एक सवाल का जवाब दे रहे थे।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय मंत्री के बयान का हवाला देते हुए हुड्डा ने कहा, 'हरियाणा के अलावा अन्य राज्यों में भी कृषि बीमा दावों के भुगतान में गिरावट आई है। राजस्थान में यह 2022-23 में 4,141.98 करोड़ रुपये से घटकर 2023-24 में 2,066.02 करोड़ रुपये हो गया, ओडिशा में 2022-23 में 568.01 करोड़ रुपये से घटकर 2023-24 में 209.03 करोड़ रुपये हो गया और मध्य प्रदेश में 2022-23 में 1,027.48 करोड़ रुपये से घटकर 2023-24 में 565.28 करोड़ रुपये तक हो गया है।'
केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार ने फ़सल बीमा दावों की पारदर्शी पड़ताल करने और उसके बाद भुगतान करने के लिए कई क़दम उठाए हैं।
इधर, एक साल में किसानों को कृषि बीमा दावों के भुगतान में 90 प्रतिशत से अधिक की भारी गिरावट पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए हुड्डा ने कहा कि इससे किसानों के लिए गंभीर वित्तीय संकट पैदा हो सकता है और योजनाओं में उनका भरोसा कमजोर हो सकता है।
हुड्डा ने आरोप लगाया, 'पीएमएफबीवाई किसानों की गाढ़ी कमाई को लूटकर निजी बीमा कंपनियों के खजाने भरने की योजना बन गई है।'
फ़सल बीमा कंपनियों पर जो आरोप हुड्डा लगा रहे हैं उसको लेकर पहले से बीमा कंपनियां सवालों के घेरे में रही हैं। कई बार ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि किसानों द्वारा फ़सलों का प्रीमियम 1800 रुपये भरने के बाद भी मुआवजा 100 रुपये का मिला है। ऐसा मामला 2017 में एमपी में आया था।
बीमा कंपनियाँ मुनाफे में?
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना यानी पीएमएफबीवाई के तहत वित्त वर्ष 2024 में फसल बीमा कंपनियों द्वारा लिखित सकल प्रत्यक्ष प्रीमियम 30,677 करोड़ रुपये था। इससे पहले यह 32,011 करोड़ रुपये था। उससे भी पहले के वित्त वर्ष में बीमा प्रीमियम 29,465 करोड़ रुपये रहा था।
ऐसी रिपोर्टें लगातार आती रही हैं कि किसानों को प्रीमियम के रूप में पैसा जमा करने के बाद भी क्लेम के लिए भटकना पड़ता है। लेकिन बीमा कंपनियाँ पूरे मुनाफे में रही हैं। ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि कंपनियाँ प्रीमियम के रूप में वसूली जाने वाली रक़म की आधी ही क्षतिपूर्ति के रूप में ख़र्च कर पाती हैं।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)