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पंजाब: क्या अकाली दल भी छोड़ेगा बीजेपी का साथ?

पंजाब: क्या अकाली दल भी छोड़ेगा बीजेपी का साथ?

नागरिकता संशोधन क़ानून पर शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बदलते रुख से नाराज़ बीजेपी अब सुखदेव सिंह ढींढसा से हाथ मिलाने की तैयारी में हैं। 

नागरिकता संशोधन क़ानून पर शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के रोज बदलते रुख से नाराज़ बीजेपी ने अब इसके प्रतिद्वंदी अकाली नेताओं से हाथ मिलाने की पूरी तैयारी कर ली है। माना जा रहा है कि हरसिमरत कौर बादल के मंत्री पद के लालच के चलते शिअद फिलहाल गठबंधन तोड़ने की पहल नहीं कर रहा है लेकिन उसने बीजेपी से पिंड छुड़ाने का फ़ैसला कर लिया है। बीजेपी अब शिअद के बाग़ी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींढसा के साथ खुलकर नज़दीकियां बढ़ा रही है। इसी क्रम में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सोमवार की देर रात ढींढसा से लंबी मुलाक़ात की। हालांकि दोनों पक्ष इसे 'बधाई मिलन' और 'शिष्टाचार मुलाक़ात' बता रहे हैं लेकिन दोनों के बीच भविष्य की रणनीति पर विस्तार से चर्चा हुई है। ख़ुद सुखदेव सिंह ढींढसा और बीजेपी के कुछ नेताओं ने इस मुलाकात की पुष्टि की है। 

पहले इस मुलाक़ात को गुप्त रखने की हर संभव कोशिश की गई लेकिन धीरे-धीरे जब ख़बर बाहर आई तो शिरोमणि अकाली दल में हड़कंप मच गया। पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने आनन-फ़ानन में वरिष्ठ नेताओं की मीटिंग बुलाकर आगे की रणनीति पर विचार विमर्श किया। सोमवार को ही सुखबीर ने दबी जुबान में कहा था कि बेशक दिल्ली और हरियाणा में अकाली-बीजेपी गठबंधन टूट गया है लेकिन पंजाब में फिलहाल कायम रहेगा। इसी समय शिअद के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद बलविंदर सिंह भूंदड़ का नागरिकता संशोधन क़ानून को खारिज करने वाला बयान आया। 

सुखदेव सिंह ढींढसा शिअद में बड़े क़द के नेता रहे हैं। बीजेपी से उनके गहरे रिश्ते हैं। इसी के चलते प्रकाश सिंह बादल से सलाह किए बग़ैर पिछले साल केंद्र सरकार ने उन्हें पद्म श्री से नवाजा था। बादल परिवार ने इसका इस क़दर बुरा माना कि ढींढसा को पार्टी की ओर से औपचारिक बधाई भी नहीं दी गई।

कुछ समय बाद ढींढसा ने सुखबीर सिंह बादल पर तानाशाही और मनमर्जी करने के आरोप लगाकर खुली बग़ावत कर दी और पार्टी को अलविदा कह कर अन्य बाग़ियों द्वारा बनाये गये टकसाली अकाली दल में चले गए। उनके बेटे परमिंदर सिंह ढींढसा ने भी विधानसभा में शिरोमणि अकाली दल के विधायक दल का पद छोड़कर अपने पिता का साथ देते हुए टकसाली अकाली दल का दामन थाम लिया। दोनों पिता-पुत्र मालवा इलाक़े की कई सीटों पर अच्छा प्रभाव रखते हैं। 

इन दिनों दिल्ली के बाग़ी अकाली नेता और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) के पूर्व प्रधान मनजीत सिंह जीके और पूर्व केंद्रीय मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया भी ढींढसा के साथ हैं। इनकी एकजुटता और बढ़ती सक्रियता शिअद के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। खासतौर से तब, जब अकाली-बीजेपी गठबंधन टूटने की कगार पर है।

सूत्रों के मुताबिक़, दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद अकाली-बीजेपी गठबंधन टूट सकता है। गठबंधन टूटने की सूरत में हरसिमरत कौर बादल का मंत्रिमंडल से बाहर आना तय है। कयास लगाये जा रहे हैं कि सुखदेव सिंह ढींढसा को केंद्रीय मंत्री बनाया जाएगा। यह बादलों के लिए बहुत बड़ा झटका होगा।

शिअद के सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल ने इस घटनाक्रम पर ख़ामोशी अख्तियार की हुई है। बीते दिनों जालंधर में राज्य बीजेपी के नए अध्यक्ष अश्विनी शर्मा की ताजपोशी के समारोह में पार्टी नेताओं ने खुलकर कहा था कि अब पार्टी बादलों की पिछलग्गू नहीं बनेगी और छोटे के बजाए 'बड़े भाई' की भूमिका निभाएगी। बीजेपी नेताओं ने बराबर की सीटें लेने की भी बात कही थी। माना जाता है कि पार्टी आलाकमान के इशारों पर ही पार्टी की राज्य इकाई ने इस तरह खुलेआम शिअद को ललकारा और अपने रुख का इजहार किया।

शिअद ने बदला रुख, बीजेपी नाराज

इससे पहले हरियाणा में अकाली-बीजेपी गठबंधन गठबंधन सुखबीर सिंह बादल की पहल पर टूट चुका था और बाद में दिल्ली में बीजेपी की जवाबी पहल पर टूटा। प्रकाश सिंह बादल तब भी खामोश रहे और अब भी खामोश हैं। नागरिकता क़ानून पर पहले शिअद ने लोकसभा में सरकार का समर्थन किया था और हरसिमरत कौर बादल ने पंजाब में जगह-जगह इस क़ानून के पक्ष में दलीलें दीं। अब सुखबीर सिंह बादल और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता मुखर हैं कि नागरिकता कानून में बदलाव करके मुसलमानों को भी उसमें शामिल किया जाए। 

बीजेपी को अकालियों की यह मांग सिरे से नागवार गुजरी और यह भी कि बादल के सबसे क़रीबी बलविंदर सिंह भूंदड़ ने देश में अल्पसंख्यक विरोधी माहौल होने की बात की तथा सार्वजनिक तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तीख़ी आलोचना की। एसजीपीसी के प्रधान व श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने भी आरएसएस मुखिया की आलोचना करते हुए देश में अल्पसंख्यकों के असुरक्षित होने की बात कई बार दोहराई और अब भी वे यह सब पुरजोर तरीक़े से कह रहे हैं। दोनों सर्वोच्च सिख संस्थाओं की कमान शिअद के हाथ में है। बीजेपी इससे भी बेहद चिढ़ी हुई है।        

तय है कि जेपी नड्डा और सुखदेव सिंह ढींढसा की मुलाक़ात पंजाब की राजनीति में नए गुल खिलाएगी। बेशक दोनों की ओर से इसे साधारण मुलाक़ात कहा जा रहा है लेकिन राजनीति पर इसका असाधारण असर पड़ सकता है। 

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