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काली पूजा में शामिल हुए थे क्रिक्रेटर शाकिब, मांगनी पड़ी माफ़ी

काली पूजा में शामिल हुए थे क्रिक्रेटर शाकिब, मांगनी पड़ी माफ़ी

शाकिब भारत आए थे और कोलकाता में वे काली पूजा के एक कार्यक्रम में शरीक हुए थे। लेकिन इसके लिए उन्हें मुसलिम कट्टरपंथियों ने निशाने पर ले लिया और हालात यहां तक बिगड़ गए कि उन्हें माफ़ी मांगनी पड़ी। 

पाकिस्तान और बांग्लादेश हिंदुस्तान से ही टूटकर बने हैं। इस पूरे खित्ते में हिंदु बनाम मुसलमान की लड़ाई कम से कम सोशल मीडिया पर तो जोरों पर है। पाकिस्तान बनते वक़्त वहां जो हिंदू आबादी थी और आज जो हिंदू आबादी है और इसी पैमाने पर बांग्लादेश के मामले में भी, भारत सरकार और हिंदू नेता सवाल उठाते हैं। वहां के धार्मिक अल्पसंख्यकों पर जुल्म होने की बात कहकर वे सीएए और एनआरसी की हिमायत करते हैं। 

दूसरी ओर, भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ पिछले कुछ सालों में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं और सीएए-एनआरसी को लेकर पाकिस्तान और बांग्लादेश की मरकज़ी हुक़ूमतें और वहां के मुसलिम सियासतदां सवाल उठाते हैं। 

बात सिर्फ़ इतनी है कि हिंदु बनाम मुसलमानों के बीच खड़ी की जा रही नफ़रत की इस दीवार से नुक़सान इंसानियत और ऐसे लोगों का हो रहा है, जिन्हें किसी भी तरह की फिरकापरस्ती से कोई मतलब नहीं है और जो दिन-रात अपने लिए दो वक़्त की रोटी के इंतजाम में जुटे हैं।

इन देशों में सोशल मीडिया पर भी ऐसे सैकड़ों वाकये हैं, जहां पर अमन के शैतान लोग कुछ न कुछ ऐसा कर रहे हैं, जिससे ये दोनों समुदाय शांति से न रह सकें। ताज़ा वाकया हुआ है, बांग्लादेश के स्टार क्रिकेटर शाकिब अल हसन के साथ। 

शाकिब भारत आए थे और कोलकाता में वे काली पूजा के एक कार्यक्रम में शरीक हुए थे। पूजा कार्यक्रम का जो वीडियो सोशल मीडिया पर आया था, उसमें शाकिब मोमबत्ती से सिर्फ़ दीपक जला रहे थे। 

लेकिन इसके लिए उन्हें मुसलिम कट्टरपंथियों ने निशाने पर ले लिया और हालात यहां तक बिगड़ गए कि इसके लिए उन्हें माफ़ी मांगनी पड़ी। शाकिब को सोशल मीडिया पर हत्या करने तक की धमकियां भी मिलीं। इसलामिक उपदेशकों का कहना था कि मुसलमानों को दूसरे धर्मों के कार्यक्रमों में शामिल नहीं होना चाहिए। 

ईश निंदा करने का आरोप 

धमकियां देने वालों ने शाकिब पर ईश निंदा करने का आरोप लगाया। सिलहट के रहने वाले मोहसिन तालुकदार नाम के युवा कट्टरपंथी ने फ़ेसबुक पर वीडियो जारी कर उन्हें हत्या की धमकी दी। पुलिस ने मोहसिन को गिरफ़्तार कर लिया है। 

शाकिब ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर कहा, ‘मुसलिम होने पर गर्व होने के नाते और अगर मैंने आपकी भावनाओं को आहत किया है तो मैं आप सब से माफ़ी मांगता हूं।’ 

‘उद्घाटन नहीं किया’

शाकिब ने अपनी सफाई में कहा, ‘मैंने पूजा कार्यक्रम का उद्घाटन नहीं किया था बल्कि पहले से जारी कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। अगर आप पूजा कार्यक्रम का आमंत्रण पत्र देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि मुझे उद्घाटन के लिए नहीं बुलाया गया था। मेरे पहुंचने से पहले ही पश्चिम बंगाल के मंत्री फिरहाद हाकिम इसका उद्घाटन कर चुके थे।’ 

बांग्लादेश के इस पूर्व कप्तान ने कहा, ‘मैं स्टेज पर मुश्किल से दो मिनट के लिए रुका था। लोगों को ऐसा लग रहा है कि मैंने कार्यक्रम का उद्घाटन किया।’ शाकिब ने कहा कि कार्यक्रम के आयोजकों ने उनसे पूजा पंडाल के अंदर आकर फ़ोटो खिंचवाने का अनुरोध किया, जिससे वह इनकार नहीं कर सके। 

‘माफ़ कर दें’

शाकिब ने कहा, ‘मैंने ऐसा नहीं किया और एक जागरूक मुसलमान होने के नाते मैं यह करता भी नहीं। लेकिन शायद, मुझे वहां नहीं जाना चाहिए था। मुझे इसका ख़ेद है और इसके लिए माफ़ी मांगता हूं।’ 1 साल का प्रतिबंध झेलकर वापस लौटे शाकिब ने कहा कि अगर उन्होंने कुछ ग़लत किया है तो उन्हें माफ़ कर दिया जाए। 

बांग्लादेश के कट्टरपंथियों का यह कृत्य भारत में रह रहे मुसलमानों के लिए मुश्किलें खड़ी करेगा। क्योंकि यहां के मुसलमानों के ख़िलाफ़ एक और हथियार ऐसे लोगों को मिलेगा जो इसलाम और मुसलमानों के ख़िलाफ़ डर दिखाकर ही अपनी राजनीतिक ज़मीन तैयार करते हैं।

साथ ही उदार हिंदुओं का एक वर्ग इस तरह की घटनाओं के प्रति निश्चित रूप से रिएक्ट करेगा कि आख़िर शाकिब ने ऐसा क्या गुनाह कर दिया कि जिस पर उन्हें उनके ही मज़हब के लोग हत्या की धमकी देने लेगे। आंकड़ों के मुताबिक़, बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी में जोरदार गिरावट आई है और यह 2001 के मुक़ाबले 2011 में 9.2% गिरी थी। इस तरह के कट्टरपंथ से अमनपसंद लोगों को ही नुक़सान होगा। 

मुसीबतों से लड़ें तीनों देश 

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश, ये तीनों ही मुल्क़ बेरोज़गारी, भुखमरी, शिक्षा- स्वास्थ्य की बदतर हालत जैसी अनेक मुसीबतों से जूझ रहे हैं। तीनों ही मुल्क़ों की मरकज़ी हुक़ूमत को कट्टरपंथ पर नकेल कसनी चाहिए जिससे ये तीनों अपने नागरिकों का तो जीवन बेहतर बना ही सकें ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे की मदद भी कर सकें। ऐसा होना कठिन बिलकुल नहीं है, बस ज़रूरत दूसरों को मज़हबी आज़ादी देने और उन्हें भी इंसान समझने की है। 

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