+
<b>बीजेपी को रोकने चुनाव बाद कांग्रेस का साथ देगी सीपीएम</b>

बीजेपी को रोकने चुनाव बाद कांग्रेस का साथ देगी सीपीएम

 सीपीएम किसी भी क़ीमत पर सांप्रदायिक ताक़तों को रोकना चाहती है, भले ही उसे कांग्रेस का समर्थन ही क्यों न करना पड़े। पर वह उसे समर्थन चुनाव के बाद ही देगी।

दिल्ली में अगली सरकार बीजेपी की न बने, इसके लिए सीपीएम कांग्रेस को समर्थन दे सकती है, पर चुनाव के पहले नहीं, उसके बाद। पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी ने सोमवार को पार्टी की स्थिति साफ़ करते हुए कहा कि चुनाव के पहले सभी विपक्षी दलों का 'महागठबंधन' तो नहीं बन सकता, पर चुनाव बाद बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस का समर्थन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अलग अलग राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ सीटों के बंटवारे पर सहमति बन सकती है। इसका एकमात्र मक़सद बीजेपी को हराना होगा। जिस राज्य में जो पार्टी बीजेपी को हराने की स्थिति में होगी, सीपीएम वहां उसे समर्थन करेगी। 

बीएसपी को समर्थन

बीजेपी को रोकने की रणनीति के तहत ही उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का समर्थन किया जाएगा क्योंकि वहां वह मज़बूत है। इसी तरह बिहार में नीतिश कुमार के जनता दल युनाइटेड और बीजेपी के गठजोड़ को शिकस्त देने के लिए राष्ट्रीय जनता दल का समर्थन किया जाएगा। पार्टी तेलंगाना में टीआरएस-बीजेपी को रोकने के लिए तेलुगु देशम पार्टी का समर्थन करेगी। 

 - Satya Hindi

2004 की रणनीति 2019 में

पार्टी ने यही रणनीति 2004 में अपनाई थी। उस समय चुनाव के पहले के गठजोड़ में सीपीएम कांग्रेस के साथ नहीं थी। पर बाद में सांप्रदायिकता रोकने के नाम पर उसने कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार का बाहर से समर्थन किया था। वह सरकार में शामिल नहीं हुई थी। 

उस समय इस कम्युनिस्ट पार्टी ने तर्क दिया था कि  'वैकल्पिक धर्मनिरपेक्ष सरकार' का वह समर्थन करती है। येचुरी ने तीन दिन तक पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक के बाद बिल्कुल यही बात दुहराई है। 

सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद सांप्रदायिक ताक़तों को रोकने के लिए किसी 'वैकल्पिक धर्मनिरपेक्ष सरकार' का समर्थन किया जा सकता है। यह कांग्रेस भी हो सकती है।

 - Satya Hindi

प्रकाश करात और सीताराम येचुरी

येचुरी की पकड़ मज़बूत

येचुरी के इस बयान से यह भी साफ़ हो जाता है कि पार्टी पर उनकी पकड़ पहले से अधिक मज़बूत हुई है। इसी साल अप्रैल में हैदराबाद में हुई पार्टी कांग्रेस में भी इस पर खुल कर चर्चा हुई थी। प्रकाश करात और उनके केरल गुट का मानना रहा है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही नीतियां देश के लिए ख़तरनाक हैं। लिहाज़ा, दोनों का विरोध ज़रूरी है।

इसके उलट येचुरी की बंगाल लाइन का मानना रहा है कि फ़िलहाल देश को सांप्रदायिकता से कहीं अधिक ख़तरा है।  इसे हर क़ीमत पर रोकना प्राथमिकता होनी चाहिए। लिहाज़ा, बीजपी को रोकने के लिए ज़रूरत पड़ने पर कांग्रेस का साथ देना चाहिए।

सीपीएम की केंद्रीय समिति की बैठक के बाद यह साफ हो गया कि बंगाल लाइन ही पार्टी की ‘टैक्टिकल स्ट्रैटजी’ यानी रणनीति है। पार्टी ने इस लाइन को बहुत ही सोच समझ कर चुना है।

हाशिए पर कांग्रेस

इस लाइन पर रणनीति बनाने से उसे बंगाल में ख़ास सहूलियत होगी। बंगाल में अतीत में माकपा और कांग्रेस के बीच दुश्मनी के स्तर पर प्रतिद्वंद्विता रही है। दोनों  पार्टियों के कैडरों के बीच कई बार ख़ूनी झड़पेें तक हुईं। उस समय कोई कांग्रेस के प्रति नरमी बरतने की सोच भी नहीं सकता था। पर मौज़ूदा समय में कांग्रेस हाशिए पर है, तृणमूल की सरकार है और बीजेपी धीरे धीरे अपने पैर पसार रही है। ऐसे में तृणमूल को चुनौती देकर ही पार्टी अपने को मज़बूत विपक्ष साबित कर सकती है अगले विधानसभा चुनाव में जीत के बारे में सोच सकती है।

 - Satya Hindi

तृणमूल के निशाने पर सीपीएम 

तृणमूल को चुनौती देना इसलिए भी ज़रूरी है कि माकपा कैडर ही उसके कैडरों के निशाने पर हैं। ऐसे में कांग्रेस के साथ किसी तरह की सहमति से सत्ताधारी पार्टी का मुक़ाबला किया जा सकता है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी के पैर पसारने से सबको दिक्क़त है। बीते चुनावों में उसे सिर्फ़ तीन सीटें मिलीं, पर बाद के उपचुनावों में वह कई जगहों पर दूसरे नंबर पर रही। पंचायत चुनावों में भी वह बहुत सीटों पर दूसरे नंबर पर रही।  ज़ाहिर है, वह तृणमूल के आधार में सेंध लगा रही है, कांग्रेस को कमज़ोर कर रही है और माकपा को सैद्धांतिक स्तर पर चुनौती दे रही है।

सैद्धांतिक चुनौती

कुछ साल पहले तक पश्चिम बंगाल, केरल और त्रि्पुरा में सीपीएम की सरकारें थी। सीपीएम के हाथ से त्रिपुरा और बंगाल निकल चुके हैं। बंगाल में भी वह पहले की तुलना में काफ़ी क़मजोर स्थिति में है। उसके कैडर का बड़ा हिस्सा तृणमूल में जा चुका है। ऐसे में वह अपने बचे खुचे आधार में बीजेपी को सेंध मारने की इजाज़त बिल्कुल नहीं दे सकती। इसका सैद्धांतिक कारण यह है कि यह शुरू से ही उन मूल्यों के ख़िलाफ़ रही है, जिसकी वक़ालत बीजेपी कर रही है। ऐसे में उसके ख़िलाफ़ मोर्चा खोल कर पार्टी जहां पश्चिम बंगाल में अपनी स्थिति बेहतर कर सकती है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रासंगिकता बरक़रार रख सकती है। तेज़ी से हाशिए की ओर बढ़ रही सीपीएम सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ मुहिम को मज़बूत कर अपने कैडरों को भी संकेत दे रही है कि वैचारिक स्तर पर वह अपनी जगह बक़रार है। वह वापसी करने की तैयारी में है। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें