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सबसे ख़राब हवा कटिहार में तो दिल्ली जैसा हंगामा क्यों नहीं?

सबसे ख़राब हवा कटिहार में तो दिल्ली जैसा हंगामा क्यों नहीं?

दिल्ली में जिस तरह प्रदूषण को लेकर हंगामा मचता है वैसा दूसरे शहरों में क्यों नहीं मचता? क्या सिर्फ़ दिल्ली में ही साँस लेना दूभर है? जानिए, देश के बड़े शहरों में प्रदूषण का स्तर।

देश में वायु प्रदूषण का स्तर ख़राब होता जा रहा है। और इसका असर सिर्फ़ दिल्ली पर नहीं है, बल्कि देश भर के शहरों में ऐसी ही स्थिति है। ख़राब हवा के मामले में दिल्ली से भी बदतर स्थिति कई शहरों की है। दिल्ली के आसपास के शहर भी इस मामले में अच्छी स्थिति में नहीं हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 7 नवंबर को 163 भारतीय शहरों में सबसे अधिक एक्यूआई यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक बिहार के कटिहार का 360 था। आँकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली का एक्यूआई 354 था, फरीदाबाद का 338, नोएडा का 328, सोनीपत का 324 और गाजियाबाद का 304 था। हरियाणा में बेगूसराय (बिहार), बल्लभगढ़, फरीदाबाद, कैथल और गुरुग्राम और ग्वालियर भी सोमवार को सबसे प्रदूषित शहरों में से थे।

इन सभी जगहों की हवा बेहद ख़राब रही। इन शहरों में पीएम10 और पीएम2.5 की मात्रा काफ़ी ज़्यादा थी और इसका लोगों के स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर होता है। पीएम10 या पीएम2.5 का एक्यूआई से सीधा संबंध है। एक्यूआई यानी हवा गुणवत्ता सूचकांक से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है। 

पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद बहुत छोटे कण होते हैं जिन्हें आप साधारण आँखों से नहीं देख सकते। 'पीएम10' मोटे कण होते हैं। लेकिन स्वास्थ्य के लिए ये बेहद ख़तरनाक होते हैं। कई बार तो ये कण जानलेवा भी साबित होते हैं।  201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘ख़राब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत ख़राब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है।

पीएम2.5 और पीएम10 यानी हवा में मौजूद कण कितना ख़तरनाक है यह इससे समझा जा सकता है कि इससे हर साल लाखों मौतें होती हैं। इसी साल मई में 'द लैंसेट' प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित द लैंसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन एंड हेल्थ ने कहा है कि 2019 में सभी तरह के प्रदूषणों के कारण भारत में 23 लाख से अधिक लोगों की अकाल मृत्यु हुई। यह दुनिया में सबसे ज़्यादा है। दुनिया भर में ऐसी 90 लाख मौतों में से एक चौथाई से अधिक भारत में हुई हैं।

लैंसेट की रिपोर्ट में भी चौंकाने वाले तथ्य ये हैं कि 2019 में प्रदूषण से भारत में हुई कुल मौतों में से 16.7 लाख मौतों के लिए वायु प्रदूषण यानी ख़राब हवा ज़िम्मेदार थी। देश में उस वर्ष सभी मौतों में से 17.8% मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं।

बता दें कि जहरीली हवा न केवल स्वस्थ फेफड़ों को प्रभावित करती है, बल्कि साँस की बीमारियों से पीड़ित लोगों में समय से पहले मौत का कारण भी बनती है। ग्रीनपीस के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण 2017 में 12 लाख से अधिक भारतीयों की समय से पहले मृत्यु हो गई थी।

इस ख़राब हवा का असर सिर्फ़ दिल्ली पर ही नहीं होता है, बल्कि हर उस शहर में होता है जहाँ प्रदूषण ज़्यादा है। क़रीब एक पखवाड़े पहले विश्व वायु गुणवत्ता सूचकांक के अनुसार, एशिया के शीर्ष 10 सबसे ख़राब हवा वाले शहरों में आठ भारत के थे। लेकिन इसमें दिल्ली नहीं थी। ख़राब हवा के मामले में 23 अक्टूबर को हरियाणा का गुरुग्राम शीर्ष पर था। इसके बाद रेवाड़ी और फिर मुजफ्फरपुर। इनके अलावा लखनऊ, बेगूसराय, देवास जैसे शहर थे। 

वैसे, साल 2020 में ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट-2018 आई थी। उसमें देश के शीर्ष दस प्रदूषित शहरों में दिल्ली 10वें स्थान पर थी। इस सूची में झारखंड का झरिया नंबर वन रहा था। झरिया में पीएम10 का स्तर 322 रहा था, जो तय मानक से कई गुना ज्यादा था। झरिया के बाद धनबाद दूसरे स्थान पर रहा था। 

तो सवाल वही है कि आख़िर इन शहरों को लेकर वैसा हंगामा क्यों नहीं होता है जैसा कि दिल्ली को लेकर होता है?

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