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गोमूत्र से बढ़ता है पृथ्वी का तापमान, होते हैं कई तरह के नुक़सान

गोमूत्र से बढ़ता है पृथ्वी का तापमान, होते हैं कई तरह के नुक़सान

वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि गोमूत्र से पृथ्वी का तापमान बढ़ता है, जलवायु परिवर्तन होता है और कई दूसरी तरह की दिक्क़ते हो सकती हैं। 

भारतीय जनता पार्टी के मंत्री भले ही यह कहते फिरें कि गोमूत्र औषधियों गुणों की खान है, लेकिन वैज्ञानिक शोध यह बताते हैं कि गाय का पेशाब पृथ्वी के तापमान बढ़ाने के प्रमुख कारणों में एक है। यह नाइट्रस ऑक्साइड का मुख्य स्रोत है, जो कार्बन डाइऑक्साइड से 300 गुना अधिक ख़तरनाक माना जाता है। चिंताजनक बात है कि भारत में इस नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन तीन गुना बढ़ गया है। 

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वैज्ञानिक पत्रिका 'साइंटिफ़िक रिपोर्ट्स'  में लैटिन अमेरिकी देश कोलंबिया के इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रॉपिकल रीसर्च का एक चौंकाने वाला शोध छपा है। यह शोध कोलंबिया, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, निकारागुआ और त्रिनिडाड एंड टोबैगो के सात परीक्षण स्थलों पर किया गया। इस शोध में पाया गया कि कम या छोटी घास वाले चारागाहोें में जब गोमूत्र डाल दिया जाता है तो वहाँ नाइट्रस ऑक्साइ़ड का उत्सर्जन तीन गुना ज़्यादा बढ़ जाता है। इस शोध के नतीजे भारत की दृष्टि से इसलिए काफ़ी महत्वपूर्ण हैं कि यहाँ गोपालन और गोरक्षा पर इन दिन बहुत ज़ोर दिया जा रहा है और यहाँ कम या छोटी घास वाले मैदानों, चारागाहों और खेतोें की भरमार है। इसरो ने 2012 में सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों का अध्ययन कर बताया था कि देश में कुल क्षेत्रफल के 30 प्रतिशत यानी 9 करोड़ 64 लाख हेक्टेयर इलाक़े में इस तरह के मैदान हैं। और भारत में खाद के लिए गोबर और गोमूत्र का बहुतायत से प्रयोग होता है। 

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गाय-भैंस और दूसरे पालतू पशु ग्रीन हाउस गैस मीथेन के बहुत बड़े स्रोत हैं और इसलिए ग्लोबल वार्मिंग में इनका भारी योगदान है। कोलंबिया के इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रॉपिकल रिसर्च का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग में गोमूत्र की भूमिका के बारे में अभी तक कोई ख़ास अध्ययन नहीं हुआ था। इस सेंटर ने इस पर विशेष अध्ययन किया और कम घास और अधिक घास वाले दोनों किस्म के पशु चारागाहों से मूत्र के नमून लिए। जिन सात परीक्षण स्थलों पर यह शोध किया गया था, उनमें से छह मामलों में पाया गया कि कम घास वाले चारागाहों में नाइट्रस ऑक्साइ़ड का उत्सर्जन बहुत ज़्यादा था, जो कुछ मामलों में तीन गुना तक था। 

यहाँ यह बात भी ध्यान देने लायक है  कि गाय और अन्य पालतू पशुओं में सबसे अधिक नाइट्रस ऑक्साइड गोमूत्र से निकलता है। शोध के मुताबिक़ गोमूत्र से 42 प्रतिशत, भैंस के पेशाब से 28 प्रतिशत और बकरी के पेशाब से सिर्फ़ 15 प्रतिशत नाइट्रस ऑक्साइड निकलता है। इसी तरह अमोनिया के उत्सर्जन के मामले में भी गाय का गोबर काफ़ी आगे है। गाय के गोबर से बनी खाद से 56 प्रतिशत अमोनिया और भैंस के गोबर से 23 प्रतिशत अमोनिया गैस निकलती है। 

भारत में दुनिया के सबसे अधिक मवेशी पाए जाते हैं और कम घास वाली ज़मीनें और चारागाह भी यहाँ बाकी दुनिया के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा हैं। लिहाज़ा भारत में पशु मूत्र ख़ास कर गोमूत्र से निकली नाइट्रस ऑक्साइड का ख़तरा भी सबसे अधिक है। दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, मिज़ोरम और त्रिपुरा में इस तरह की कम घास वाली ज़मीनें बढी हैं। भारत में सबसे ज़्यादा अमोनिया उत्सर्जित करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। इसके बाद मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल आते हैं। इसी तरह सबसे ज़्यादा नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जित करने वाले राज्यों में भी उत्तर प्रदेश ही अव्वल है। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश और तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र है। अमोनिया उत्सर्जन में उत्तर प्रदेश का हिस्सा 12.7 प्रतिशत, मध्य प्रदेश का 8.7 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल का 8.4 प्रतिशत है। इसी तरह नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में उत्तर प्रदेश का हिस्सा 13.1 प्रतिशत, मध्य प्रदेश का 8 प्रतिशत और महाराष्ट्र का 7.5 प्रतिशत है। यह भी ध्यान देने लायक बात है कि यूपी में ही सबसे अधिक गायें हैं। 

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घास के सामान्य मैदान की तुलना में कम घास या छोटे घास के मैदान इस लिहाज़ से ज़्यादा ख़तरनाक इसलिए होते हैं कि लंबे घास कुछ मात्रा में नाइट्रोज़न गैस सोख लेते हैं, जो इन मैदानों में नहीं होता है। चूँकि भारत में इस तरह के मैदान बढ़ रहे हैं और गोबर के साथ गोमूत्र मिला कर खाद सबसे अधिक बनाई जाती है। लिहाज़ा, यहाँ गोमूत्र और गोबर से अधिक नुक़सान होता है। और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों की भूमिका सबसे ज़्यादा है। 

यह शोध उन लोगों के लिए ज़रूरी हैं जो बग़ैर किसी वैज्ञानिक आधार के कह देते हैं कि गोमूत्र में औषधीय गुण होते हैं। इसी तरह बेजीपी की नेता और उत्तराखंड की पशुपालन मंत्री रेखा आर्य ने यह कह कर सबको हैरत में डाल दिया था कि 'गाय एक मात्र जीव है जो सांस छोड़ती है तो ऑक्सीज़न ही निकलती है।' इस तरह की बातों के राजनीतिक फ़ायदे भले ही हों, पर यह देश के वैज्ञानिक सोच और स्वास्थ्य दोनों के लिए ख़तरनाक है। ख़ास कर इसलिए कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज़्यादा ख़तरा अगर किसी को है तो वह किसानों को ही है।  

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