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मेडिकल में 27% ओबीसी आरक्षण पर मुहर, लेकिन निकाय चुनाव में रिजर्वेशन के लिए तीन टेस्ट

मेडिकल में 27% ओबीसी आरक्षण पर मुहर, लेकिन निकाय चुनाव में रिजर्वेशन के लिए तीन टेस्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण जरूरी है। प्रतियोगी परीक्षाएं आर्थिक सामाजिक लाभ को नहीं दर्शाती हैं जो कुछ वर्गों के लिए अर्जित किया जाता है। 

अदालत ने मेडिकल परीक्षा नीट में अपने 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को आज फिर से सही ठहराया है। यह आदेश राज्य सरकार के चिकित्सा संस्थानों में मेडिकल सीटों पर केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है। कोर्ट ने 7 जनवरी को एक छोटे से आदेश के जरिए मेडिकल सीटों पर ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण को बरकरार रखा था। हालाँकि, उसने इसके लिए विस्तृत कारण नहीं बताए थे। लेकिन उसने आज के आदेश से सारी बातें साफ कर दी हैं।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा,  "अनुच्छेद 15(4) और 15(5) वास्तविक समानता के पहलू हैं। प्रतियोगी परीक्षा आर्थिक सामाजिक लाभ को नहीं दर्शाती है जो कुछ वर्गों को अर्जित किया जाता है। योग्यता को सामाजिक रूप से प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए। आरक्षण योग्यता के साथ नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव को आगे बढ़ाता है।" कोर्ट ने आज अपने आदेश में कहा कि नीट एंट्रेस परीक्षा की योजना सरकारी चिकित्सा संस्थानों में सीटें आवंटित करने के लिए बनाई गई थी।

अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा - 

सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण जरूरी है। प्रतियोगी परीक्षाएं आर्थिक सामाजिक लाभ को नहीं दर्शाती हैं जो कुछ वर्गों के लिए अर्जित किया जाता है।


सुप्रीम कोर्ट ने आज यह भी साफ कर दिया कि "मेडिकल सीटों में आरक्षण देने से पहले केंद्र को इस अदालत की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं थी। इस प्रकार उनका निर्णय सही था। हम मानते हैं कि स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए एआईक्यू में ओबीसी के लिए आरक्षण संवैधानिक रूप से मान्य है।" हालांकि, कोर्ट ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा निर्धारित करने के लिए मानदंड की वैधता को इस साल मार्च के अंत में कोर्ट को विस्तार से सुनना होगा। कोर्ट ने कहा, "ईडब्ल्यूएस के लिए, हमने कहा है कि ईडब्ल्यूएस की वैधता में याचिकाकर्ताओं का तर्क एआईक्यू में उसके हिस्से तक ही सीमित नहीं था, बल्कि आधार मानदंड पर भी था। इस प्रकार, इसे विस्तार से सुनने की जरूरत है।" इस बीच, वर्ष 2021 के लिए एनईईटी स्नातकोत्तर (पीजी) पाठ्यक्रमों में प्रवेश ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत के मौजूदा आरक्षण के अनुसार होगा।

उधर 

निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के तीन टेस्ट 

सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच ने एक अलग आदेश में निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर भी स्थिति साफ की है। उसने इस संबंध में मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार की याचिकाओं पर कहा कि  अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को कोटा प्रदान करने के लिए उसके द्वारा निर्धारित ट्रिपल टेस्ट का पालन किया जाना जरूरी है।

बुधवार को, जस्टिस ए एम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी.टी. रविकुमार की बेंच ने आदेश दिया कि यदि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षण प्रदान करने वाले स्थानीय निकाय चुनाव कराने का इरादा है तो ट्रिपल टेस्ट का पालन करना होगा। कोर्ट ने कहा -   

यदि राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ट्रिपल टेस्ट की आवश्यकता को पूरा करने की स्थिति में नहीं है तो किसी भी स्थानीय निकाय के चुनाव को वैधानिक अवधि से आगे स्थगित नहीं किया जा सकता है, तो (राज्य) चुनाव आयोग (संबंधित) को खुली श्रेणी की सीटों के रूप में सीटों के बारे में स्थिति स्पष्ट करना होगी।


- सुप्रीम कोर्ट, बुधवार को

तीन टेस्ट हैं -

1. राज्य को पहले राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की कड़ी जांच करने के लिए एक आयोग का गठन करने की आवश्यकता है।  2. पैनल की सिफारिशों के आलोक में प्रति स्थानीय निकाय में प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को जारी करना, ताकि अधिकता का भ्रम न हो। 3.ऐसा आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के कुल 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।

बता दें पिछले 15 दिसंबर को, अदालत ने महाराष्ट्र सरकार और राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को सामान्य वर्ग के रूप में ओबीसी के लिए आरक्षित 27 प्रतिशत सीटों को फिर से अधिसूचित करने और शेष 73 प्रतिशत के लिए उनके साथ चुनाव कराने को कहा था।

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