अलग रह रहे पति से बच्चा पैदा करने का हक़ है पत्नी को, अदालत ने कहा
महाराष्ट्र की एक अदालत ने अंतरराष्ट्रीय नियमों का हवाला देते हुए एक फ़ैसले में कहा है कि प्रजनन का हक किसी भी आदमी के बुनियादी नागरिक अधिकारों में शामिल है और उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इसके तहत किसी स्त्री को यह अधिकार है कि वह अलग रह रहे पति से बच्चा पैदा करे और पति उसके इस अधिकार से इनकार नहीं कर सकता। अदालत ने तलाक़ की अर्जी दिए हुए एक विवाहित जोड़े से कहा है कि वह एक महीने के अंदर किसी विवाह सलाहकार और आईवीएफ़ विशेषज्ञ से मिले और आईवीएफ़ के लिए तारीख़ तय करे।
दरअसल, तलाक़ की अर्जी के बाद 35 साल की इस महिला ने अदालत को दी एक और अर्ज़ी में कहा कि वह एक और बच्चा चाहती है जो उसके मौजूदा बच्चे का साथ दे और बुढ़ापे में उसका सहारा बने। उसने यह भी कहा कि चूँकि उसकी प्रजनन उम्र बहुत ज़्यादा नहीं बची है, उसे अभी ही बच्चा चाहिए। इसलिए वह अपने पति के साथ स्वाभाविक रूप से बच्चा पैदा करना चाहती है। उसके पति ने इससे इनकार करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को यौन क्रिया के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। इस पर उस उसकी पत्नी ने कहा कि ऐसी स्थिति में उसे आईवीएफ़ से बच्चा पैदा करने दिया जाए और इसके लिए उसका पति शुक्राणु दे।
क्या कहते हैं नियम
- अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने 1942 में स्किनर बनाम ओक्लाहोमा राज्य पर दिए फ़ैसले में कहा, ‘विवाह और प्रजनन मानव जाति के अस्तित्व की बुनियादी शर्त है।’
- ब्रिटेन के लॉर्ड डैनिंग ने 1966 में एक निर्णय में कहा, ‘यौन क्रिया के लिए लगातार इनकार करने को क्रूरता कह सकते हैं। पर इसके साथ ही ख़राब स्वास्थ्य, समय, उम्र, बीमारी और मनोवैज्ञानिक अपंगता का भी ख़्याल रखा जाना चाहिए।’
- भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में जस्टिस के. एस. पुत्तस्वामी बनाम भारतीय गणतंत्र के मामले में दिए फ़ैसले में महिला के प्रजनन के हक़ को अनुच्छेद 21 के तहत संवैधानिक अधिकार माना। बंबई हाई कोर्ट ने 2016 में एक फ़ैसले में कहा, ‘अपने शरीर, प्रजननशीलता और मातृत्व से जुड़े फ़ैसले लेने का अधिकार सिर्फ़ महिलाओं को है।’
क्या होता है प्रजनन का अधिकार
विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन यानी व्हू) ने महिलाओं के प्रजनन के अधिकार को परिभाषित करते हुए दिशा निर्देश जारी किया है।
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हर किसी का यह मौलिक अधिकार है कि वह कितने बच्चे पैदा करे, कब बच्चे पैदा कर, दो बच्चों के बीच कितना अंतर रखे। इसके साथ ही उसे इसकी पूरी जानकारी होनी चाहिए। हर किसी को उच्चतम यौन स्तर और प्रजनन स्वास्थ्य रखने का अधिकार है। प्रजनन अधिकारों में यह भी शामिल है कि प्रजनन में किसी तरह का भेदभाव, दबाव या हिंसा नहीं होनी चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन
अदालत ने महिला की अर्ज़ी को स्वीकार करते हुए कहा है कि उसे बच्चा पैदा करने का हक़ है और उसका पति इससे इनकार नहीं कर सकता। अदालत ने अपने निर्णय में कहा है कि वह स्त्री असिस्टेड रीप्रोडक्षन टेक्नोलॉजी, मसलन, आईवीएफ़ तकनीक से बच्चा पैदा कर सलकती है।
कोर्ट ने पति-पत्नी दोनों को विवाह सलाहकार से मिलने की तारीख तय करने का आदेश देते हुए कहा कि यदि उसका पति आईवीएफ़ से इनकार करता है तो उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने का हक उस महिला को है।
फ़ैसले में कहा गया है, ‘किसी महिला को प्रजनन से इनकार करना उसके ज़बरन बंध्याकरण करने जैसा है। महिलाओं को प्रजनन के अधिकार को सीमित करने या उसमें कटौती करने का जनसंख्या पर बेहद बुरा असर पड़ सकता है।’
अदालत ने यह भी कहा है कि बच्चा पैदा करने का मतलब यह नहीं है कि उस स्त्री को उस बच्चे के भरण-पोषण का खर्च माँगने का हक भी है। अदालत ने भरण-पोषण के दावे को यह कह कर पहले ही ख़ारिज कर दिया है कि वह स्त्री ख़ुद कमाती है।
अदालत के इस फ़ैसले को महिलाओं के हक के मामले में मील का पत्थर माना जा सकता है। ऐसे समय जब महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा बढ़ी है, लेकिन उनमें जागरूकता भी आई है, इस तरह के निर्णय विवाह, संतान और यौन क्रिया जैसे मामलों में महिलाओं की स्थिति को मजबूती देगी। इस फ़ैसले से यह साफ़ हो गया है कि पत्नी को संतान के बारे में फ़ैसले लेने का हक है। यौन क्रिया के लिए पति को विवश नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह उसका हक है, पर पत्नी असिस्टेड रीप्रोडक्शन टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर उसी पति के बच्चे की माँ बन सकती है। महिलाओं की स्थिति इससे पहले से बेहतर होगी, यह कहा जा सकता है।