+
अदालत न तो विपक्ष हो सकती है और न ही सरकारः जस्टिस एस.के. कौल

अदालत न तो विपक्ष हो सकती है और न ही सरकारः जस्टिस एस.के. कौल

सुप्रीम कोर्ट से हाल ही में रिटायर जस्टिस संजय किशन कौल ने इंडियन एक्सप्रेस को एक लंबा इंटरव्यू दिया। इंटरव्यू मंगलवार को प्रकाशित हुआ है। जस्टिस कौल ने कई बातें कहीं हैं जिनसे अदालत और सरकार के संबंधों का पता चलता है। जस्टिस कौल की कही कुछ महत्वपूर्ण बातों को सत्य हिन्दी पर प्रकाशित कर रहे हैं।

जस्टिस एस.के. कौल से सवाल किया गया था कि क्या यह सरकार आक्रामक है या भारी बहुमत वाली सरकार आक्रामक होती है। इसके जवाब में जस्टिस कौल ने कहा- इसे 1950 के दशक से देखिए। सभी फैसले थोड़े कठिन रहे होंगे और यह काम का हिस्सा है। सरकार को किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं है, लेकिन न्यायपालिका का काम जाँच और संतुलन करना है। आप इंदिरा गांधी के समय या यहां तक ​​कि पंडित नेहरू के समय को देखें... जब उन्होंने बहुमत वाली सरकारें स्थापित कीं... आप देखते हैं कि कानून में कितने बदलाव लाए गए और निश्चित रूप से वे चरित्र में समाजवादी थे। आज सरकार अपनी आर्थिक नीति को कहां ले जाना चाहती है, इसे लेकर कई चीजें हो रही हैं।

जस्टिस कौल ने कहा- कमजोर विपक्ष भी एक समस्या है। अगर विपक्ष में सांसद नहीं है तो यह महत्वपूर्ण बात है। अब, अदालत को राजनीतिक रूप से सरकार को संभालने के लिए नहीं रखा जा सकता... अदालत विपक्ष नहीं हो सकती। न्यायपालिका एक नियंत्रण और संतुलन है। लेकिन यह कहना कि देखो, सरकार यह गलत कर रही है और अब आपको इसके बारे में कुछ करना होगा - गलत है।

जस्टिस कौल ने कहा- कभी-कभी हम अतीत को भूल जाते हैं। जब एक मजबूत कार्यपालिका होगी, तो न्यायपालिका को थोड़ा झटका लगेगा। 1990 के बाद से देश में गठबंधन सरकारें रही हैं। इसलिए न्यायपालिका अपने उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सक्षम थी, मुझे लगता है कि कभी-कभी कुछ क्षेत्रों में अतिक्रमण भी करती थी। लेकिन बहुमत की सरकार आने से उम्मीद थी कि कुछ कदम वापस लेने पड़ेंगे। यानी जस्टिस कौल यह कहना चाहते हैं कि गठबंधन सरकारों के दौर में अदालतों ने ज्यादा महत्वपूर्ण फैसले लिए।

इंडियन एक्सप्रेस ने इंटरव्यू में पूछा कि अदालतों ने अक्सर इस बात को कहा है कि कानून बिना बहस के जल्दबाजी में पारित कर दिया जाता है... जैसे कि कृषि कानून, आपराधिक कानून बिल या पिछले हफ्ते मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के संबंध में... अदालत में चुनौती मिलने पर न्यायपालिका को इन पहलुओं को कैसे देखना चाहिए? इसके जवाब में जस्टिस कौल ने कहा- न्यायपालिका का कार्य उनके कार्य से भिन्न है। किसी कानून पर पहले कितना सलाह-मशविरा होना चाहिए, यह संसद का काम है। अब, इस सरकार ने एक सिस्टम बनाया, जिसमें  स्पष्ट रूप से सलाह-मशविरा एक अलग तरीके से होगा... सार्वजनिक डोमेन में नहीं बल्कि बंद दरवाजों के पीछे। यानी जस्टिस कौल ने कहा कि इस सरकार में किसी भी कानून बनाने को लेकर सलाह मशविरा बंद दरवाजों के पीछे ज्यादा हो रहा है।

जस्टिस कौल ने कहा- मेरा विचार है कि किसी कानून को लागू करने से पहले उसके कानूनी प्रभाव का अध्ययन होना चाहिए। उदाहरण के लिए, धारा 138 (जो चेक बाउंस को अपराध मानती है)। मैंने कहा है कि आप अचानक यह देखे बिना कोई कानून नहीं ला सकते कि सिस्टम पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। यह एक पहलू है और दूसरा पहलू इस विधेयक को ड्राफ्ट कैसे किया गया है। अच्छी तरह से तैयार किया गया कानून अनावश्यक मुकदमेबाजी को रोकता है। सब कुछ कहा और किया गया, कोई भी यह नहीं कह सकता कि हमारे आपराधिक कानून समय की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं...साक्ष्य अधिनियम को ही लीजिए। मैं इस पर नहीं जा रहा हूं कि क्या उपाय किये जाने चाहिए या नहीं, लेकिन यह एक बेहद अच्छी तरह से तैयार किया गया कानून है।

उन्होंने कहा- ... लेकिन आज हम कुछ मायनों में बहुत विभाजित समाज हैं। वो इसलिए क्योंकि राजनीतिक तौर पर या तो लोग सरकार के साथ हैं या फिर घोर सरकार विरोधी। ऐसी कई चीजें हैं जो सरकार करती है, जो अच्छी हैं, लेकिन शायद ऐसी चीजें हैं जिनसे हम सहमत नहीं हो सकते... बीच का रास्ता निकालना और भी कठिन हो गया है।

उनसे सवाल किया गया कि सुप्रीम कोर्ट पर न्यायिक हमले का आरोप है... कि सरकार से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को सुनवाई से पहले नहीं सुना गया। जस्टिस कौल ने कहा- कुछ मामले ऐसे हैं जो पूरी तरह से कानूनी मामले हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, जरूरी नहीं कि इसी सरकार के तहत... जिन्हें मैं राजनीतिक-कानूनी मामले कहूंगा, उनकी संख्या में वृद्धि हुई है। वे मूलतः राजनीतिक निर्णय हैं, जिनके कानूनी प्रभाव होते हैं। इसलिए, निस्संदेह, अदालत को कानूनी जटिलताओं से निपटना होगा। ...मैं हमेशा से बातचीत का समर्थक रहा हूं लेकिन हम ऐसी जगह पहुंच गए हैं, जहां, ऐसा लगता है कि कोई अन्य राय संभव ही नहीं है। असहमत होना बिल्कुल सही है।

रिटायरमेंट के बाद क्याः उनसे पूछा गया कि रिटायरमेंट के बाद क्या योजना है। जस्टिस कौल ने कहा- सबसे पहला इरादा तो आराम करना है। मैं कश्मीर में काफी समय बिताने की योजना बना रहा हूं। मेरी एक संपत्ति को टूरिजम के नजरिए से तैयार किया जा रहा है और मैं अपने घर को फिर से बनाने की योजना बना रहा हूं जो जल गया था। यह 90 साल पुराना घर था। मुझे इसे फिर से बनाने की अनुमति मिल गई है। यह झील के किनारे एक विरासत वाली संपत्ति है और विचार यह है कि इसे वैसा ही बनाया जाए जैसा तब था, जब परिवार वहां था।

यह पूछे जाने पर कि रिटायर होने वाल जजों को सरकार की ओर से जो ऑफर दिए जाते हैं, उसके बारे में उनकी क्या राय है। उन्होंने कहा- किसी ट्रिब्यूनल में मेरी रुचि क्यों होनी चाहिए? एक वकील और जज के रूप में मैंने लगभग 40 वर्षों तक काम किया है। जिस तरह से मैं इसे देखता हूं, यह मेरी स्थिति से समझौता करना है। इसका मतलब है कि मैंने चीजें इसलिए कीं क्योंकि मैं सरकार से कुछ चाहता था। 

कश्मीर शांति हो

राज्यसभा में नामांकन के सवाल पर उन्होंने कहा- सभी राजनीतिक पदों के लिए मैं नहीं बना हूं क्योंकि मुझे संरक्षण नहीं चाहिए। लेकिन इस पर अलग-अलग लोगों के अलग-अलग नजरिए होते हैं। यदि कोई मुझसे पूछे, तो मैं कहूँगा कि कश्मीर में मेरी विशेष रुचि है। मैं उस क्षेत्र में शांति देखना चाहूंगा। इसके अलावा मुझे किसी चीज़ में दिलचस्पी नहीं है। अनुच्छेद 370 के फैसले में मैंने जो लिखा, उस पर मैं विश्वास करता हूं। मैं जानता हूं कि कुछ आलोचना हो रही है, लेकिन मैं इससे परेशान नहीं हूं। कश्मीर जिस तरह से भारत में आया, यह अपने आप में एक मामला है। मैंने हमेशा महसूस किया है कि अंततः चरणबद्ध तरीके से इसका पूर्ण विलय होना ही था। तो इसमें अभी थोड़ा समय लगा है, यह एक राजनीतिक निर्णय है कि इसे करना है या नहीं करना है। यह राजनीतिक निर्णय किसी के द्वारा लिया जाता है। भले ही जिस प्रक्रिया के तहत इसे किया जाता है, उसके बारे में दो राय संभव हैं। मुझे लगता है कि कुछ ऐसा जो कई तरीकों से देश के हित को आगे बढ़ाता है और राज्य को स्थिर करने में मदद करता है, वह अधिक महत्वपूर्ण है।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें