जामिया केस में शरजील इमाम समेत 11 लोग कोर्ट से बाइज्ज़त बरी
दिल्ली की साकेत कोर्ट ने 2019 में दर्ज जामिया हिंसा मामले में शनिवार को एक्टिविस्ट शरजील इमाम, छात्र नेता आसिफ इकबाल तन्हा, सफूरा जरगर समेत 11 लोगों को बाइज्जत बरी कर दिया। 2019 में जामिया के छात्र सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। इसके बाद प्रदर्शनकारी छात्रों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस दौरान हिंसा भड़क उठी थी। शरजील पर यहां लोगों को उकसाने और देशविरोधी बयान देने का आरोप लगा था। शरजील को 2021 में जमानत मिली थी। लेकिन शरजील पर कई एफआईआर हैं, इसलिए इस केस में बरी होने के बावजूद वो जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे।
अदालत ने इसी मामले में आसिफ इकबाल तनहा, सफूरा जरगर, मो. अबुजर, उमैर अहमद, मो. शोएब, महमूद अनवर, मो. कासिम, मो. बिलाल नदीम, शहजर रजा खान और चंदा यादव को भी बरी कर दिया।
पुलिस ने आरोप लगाया था कि शरजील इमाम ने कथित तौर पर 13 दिसंबर, 2019 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में और 16 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भाषण दिया था, जहां उन्होंने दिल्ली को शेष भारत से काट देने की कथित धमकी दी थी। हालांकि उनके वकील ने कोर्ट में कहा था - शरजील ने अपने भाषण में किसी हिंसा की बात नहीं की थी। उन्होंने किसान आंदोलन की तर्ज पर दिल्ली को घेरने की बात कही थी। जिससे दिल्ली का संपर्क देश के तमाम हिस्सों से कट जाता।
हालांकि, अदालत ने एक आरोपी मोहम्मद इलियास के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अरुल वर्मा ने कहा-
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चार्जशीट और तीन पूरक चार्जशीट के अवलोकन से सामने आए तथ्यों को देखते हुए, यह अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि पुलिस अपराध करने के पीछे वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में असमर्थ थी, लेकिन निश्चित रूप से यहां लोगों को बलि का बकरा बनाने में कामयाब रहे।
-अरुल वर्मा, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, साकेत कोर्ट, 4 फरवरी 2023
जज ने कहा कि माना जा सकता है कि घटनास्थल पर बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी थे और भीड़ के भीतर कुछ असामाजिक तत्व व्यवधान और तबाही का माहौल बना सकते थे। उन्होंने कहा- हालांकि, विवादास्पद सवाल बना हुआ है - क्या यहां आरोपी व्यक्ति उस तबाही में भाग लेने में प्रथम दृष्टया भी शामिल थे? इसका उत्तर एक स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा-
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कहने की जरूरत नहीं है, जांच एजेंसी को निष्पक्ष तरीके से आगे की जांच करने से रोका नहीं गया है ... ताकि वास्तविक अपराधियों को बुक किया जा सके। लेकिन पुलिस को असंतुष्टों और दंगाइयों के बीच अंतर समझना होगा। वो निर्दोष प्रदर्शनकारियों को न लपेटे।
-अरुल वर्मा, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, साकेत कोर्ट, 4 फरवरी 2023
हाईकोर्ट के सामने अपनी याचिका में, इमाम ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट "यह पहचानने में विफल" रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, उसकी पहले की जमानत याचिका को खारिज करने का आधार, राजद्रोह का आरोप, अब अस्तित्व में नहीं है, इसलिए राहत उसे दिया जाना चाहिए।
11 मई, 2022 को, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों द्वारा देश भर में राजद्रोह के अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने, जांच करने और जबरदस्ती के उपायों पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी।
जामिया के छात्र नेता आसिफ इकबाल तन्हा भी अभी जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे, क्योंकि दिल्ली पुलिस ने उनका नाम उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों से जोड़ा था।