कारवाँ पत्रिका का दावा- कोरोना टास्क फ़ोर्स के दो सदस्यों के मुताबिक़ लॉकडाउन फ़ेल
लॉकडाउन से क्या फ़ायदा हुआ? या सीधा सवाल है- लॉकडाउन फ़ेल हुआ या पास? इसका जवाब कोरोना वायरस पर नियंत्रण के लिए सुझाव देने के लिए मोदी सरकार द्वारा ही गठित नेशनल टास्क फ़ोर्स के दो वैज्ञानिक सदस्यों ने सीधे दिया कि यह फ़ेल हुआ है। यह 'कारवाँ' पत्रिका की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है।
अब आप यदि इन वैज्ञानिकों की बात को नहीं मानना चाहते हैं तो सरकार की बात पर ही विश्वास कर लें। 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के एक दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि महाभारत युद्ध 18 दिन में जीता गया था लेकिन कोरोना को जीतने में 21 दिन लगेंगे। 21 दिन बाद क्या जीत लिया? फिर केंद्र सरकार की ओर से 24 अप्रैल को कहा गया कि 16 मई के बाद से कोरोना का एक भी नया केस नहीं आएगा। लेकिन 17 मई को ही रिपोर्ट आई कि 24 घंटे में रिकॉर्ड क़रीब 5 हज़ार कोरोना संक्रमण के मामले आए। अब हर रोज़ क़रीब इतने ही केस आ रहे हैं। अब तक 1 लाख 1139 पॉजिटिव मामले आ चुके हैं और 3163 लोगों की मौत हो चुकी है। और यह लगातार जारी है। अब इसे क्या कहा जाए?
इसी बात को लेकर नेशनल टास्क फ़ोर्स के दो वैज्ञानिक सदस्यों ने कहा है कि लॉकडाउन फ़ेल रहा है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने तीन बार ऐसा किया कि नेशनल टास्क फ़ोर्स के वैज्ञानिकों से इनपुट माँगे बिना ही लॉकडाउन को बढ़ा दिया। 'कारवाँ' के अनुसार, टास्क फ़ोर्स के सदस्य और एक महामारी वैज्ञानिक ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, 'मेरे दिमाग में कोई संदेह नहीं है कि लॉकडाउन विफल हो गया है। सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनना और हाथ साफ़ करना काम करता है। साथ में ये उपाय मिलकर संक्रमण के फैलने की दर को कम करते हैं। हालाँकि, आज तक, ऐसा कोई सबूत नहीं है कि लॉकडाउन ट्रांसमिशन में कमी कर सकता है।'
रिपोर्ट के अनुसार, नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर टास्क फ़ोर्स के एक दूसरे सदस्य ने उन विभिन्न तरीक़ों का ज़िक्र किया, जिनमें केंद्र सरकार की महामारी पर प्रतिक्रिया ने स्थिति को बदतर बना दिया। उन्होंने स्थिति से निपटने में 'पुलिस की काफ़ी ज़्यादा सख़्ती' की निंदा की और कहा कि केरल को छोड़कर दूसरी जगहों पर संपर्क ट्रेसिंग में देरी की गई।
'कारवाँ' के अनुसार, टास्क फ़ोर्स के महामारी विशेषज्ञ ने कहा कि जबरन सोशल डिस्टेंसिंग उन पहले दर्जे के देशों में कारगर रहा है जहाँ जनसंख्या घनत्व काफ़ी कम है, भारत की तरह नहीं। उन्होंने कहा, 'लोगों को दोष देने का कोई फ़ायदा नहीं है, ख़ासकर उन शहरों में जहाँ बहुत से लोग बेघर हैं- आप बेघर परिवारों को कहाँ बंद करने जा रहे थे? किसी भी बड़े शहर में लगभग 20 प्रतिशत आबादी झुग्गियों में रहती है।'
महामारी विशेषज्ञ कहते हैं कि अन्य उपायों और नीतियों के बिना लॉकडाउन शायद ही कुछ हासिल करता है। उनका इशारा साफ़ है कि जब तक लॉकडाउन के साथ टेस्टिंग क्षमता और चिकित्सा के बुनियादी ढांचे के विकास जैसे महत्वपूर्ण उपाय नहीं किए जाएँ तो लॉकडाउन फ़ेल होगा ही।
विशेषज्ञों ने उस दावे पर भी सवाल उठाए जो 24 अप्रैल को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में किए गए थे। उस प्रेस वार्ता में नीति आयोग के सदस्य और कोरोना वायरस पर नेशनल टास्क फ़ोर्स के अध्यक्ष विनोद पॉल ने एक स्लाइड प्रस्तुत की जिसमें दावा किया गया कि भारत में 16 मई के बाद कोविड-19 के नए मामले आने बंद हो जाएँगे। उन्होंने कहा कि यह भविष्यवाणी गणित के एक मॉडल पर निर्भर थी। जिस गणितीय मॉडल ने महामारी के ख़त्म हो जाने की भविष्यवाणी की थी, उसे एक ग्राफ़ में चित्रित किया गया था। इसने अनुमान लगाया कि नए संक्रमण के मामलों की संख्या मई की शुरुआत में कम होने लगेगी, लॉकडाउन के दूसरे चरण के समाप्त होने के समय लगभग 1500 से अधिक नए मामले सामने आएँगे। इसके बाद 10 मई तक नए मामलों की संख्या लगभग एक हज़ार हो जाएगी और 16 मई के बाद भारत में कोई नया मामला सामने नहीं आएगा।
इस गणितीय भविष्यवाणी पर राहुल गाँधी ने भी हाल में तंज कसा है। उन्होंने 15 मई को एक ट्वीट में लिखा, 'नीति आयोग की प्रतिभाओं ने इसे फिर से कर दिखाया है। मैं आपको उनके ग्राफ़ की याद दिलाना चाहता हूँ, जिसमें सरकार की राष्ट्रीय लॉकडाउन रणनीति की भविष्यवाणी करते हुए कहा गया है कि कल, 16 मई से कोई भी कोरोना वायरस का ताज़ा मामला नहीं आएगा।'
The geniuses at Niti Aayog have done it again.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 15, 2020
I’d like to remind you of their graph predicting the Govt's national lockdown strategy would ensure no fresh Covid cases from tomorrow, May the 16th. pic.twitter.com/zFDJtI9IXP
'कारवाँ' की रिपोर्ट के अनुसार इस गणितीय मॉडल पर महामारी विज्ञानी ने कहा, 'किसी ने उस गणित को नहीं देखा, जो उनके आकलन का आधार है। उसके साथ कोई नहीं जुड़ा। यदि आपने सरकारी अधिकारियों से उस मॉडल को समझाने के लिए कहा तो वे नहीं समझा पाएँगे। फिर भी, उन्होंने मॉडल को सोने के मानक के रूप में लिया है।'
लेकिन इस असफलता के बावजूद लॉकडाउन को अब हटाया जा रहा है। सरकार की तरफ़ से हर अफ़सर और मंत्री लॉकडाउन को सफल बताने में लगे हैं। 'कारवाँ' की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार को परामर्श दे रहे एक सामुदायिक-चिकित्सा विशेषज्ञ ने कहा कि लॉकडाउन को सही ठहराने के लिए केंद्र एक सिद्धांत तैयार कर रहा था क्योंकि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं था कि लॉकडाउन सफल रहा है। उन्होंने कहा, 'लॉकडाउन को हटाना एक राजनीतिक निर्णय होगा, जिसे छद्म विज्ञान या अर्ध-वैज्ञानिक जानकारी के साथ सही ठहराया जाएगा।'
महामारी विज्ञानी कहते हैं, 'कोई दो राय नहीं है कि लॉकडाउन को हताशा में आगे बढ़ाया जा रहा है। मेरे जीवन में पहली बार एक महामारी विज्ञानी के रूप में, मैंने एक सरकार को इतना अदूरदर्शी देखा है। वे केवल यह सोच रहे हैं कि दो सप्ताह बाद क्या होगा। यह हमारे जैसे देश के लिए समस्या है।' उनके अनुसार, सिर्फ़ दो सप्ताह के लिए योजना बनाना निरर्थक था क्योंकि कोरोना वायरस तीन साल तक रह सकता है।
‘कारवाँ’ ने लिखा है कि इसने इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया के लिए गृह मंत्रालय, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महानिदेशक बलराम भार्गव, स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन और टास्क फ़ोर्स के अध्यक्ष पॉल को ईमेल लिखा है, लेकिन यह ख़बर प्रकाशित होने तक कोई जवाब नहीं मिला।