लॉकडाउन के बावजूद कोरोना 550 ज़िलों तक पहुँचा
कोरोना वायरस का संक्रमण जो पहले शहरों तक सीमित था वह अब गाँवों तक फैल गया है। जब 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की गई थी तब संक्रमण महानगरों और कुछ शहरों तक के ज़िलों तक सीमित था। इसके बाद लॉकडाउन को बढ़ाया जाता रहा। लॉकडाउन 3.0 के शुरू होने से पहले क़रीब 370 ज़िले कोरोना से प्रभावित थे, लेकिन एक पखवाड़े में क़रीब 550 ज़िले तक यह पहुँच गया। अब इसमें वे ज़िले भी आ गए हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। यानी अब कोरोना का संक्रमण गाँवों तक पहुँच गया है जहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं के बराबर हैं।
अब लॉकडाउन 4.0 शुरू किया जा चुका है। यह 31 मई तक चलेगा। लॉकडाउन 3.0 की मियाद कल ही यानी 17 मई को ख़त्म हो गई है। देश भर में पहला लॉकडाउन 21 दिनों के लिए 25 मार्च से लागू किया गया था। फिर इसे 15 अप्रैल से बढ़ा कर 3 मई तक किया गया और बाद में 4 मई से 17 मई तक के लिए किया गया था। लेकिन किसी भी लॉकडाउन में कोरोना संक्रमण कम होना तो दूर स्थिर होता भी दिखाई नहीं दिया। जब लॉकडाउन 3.0 ख़त्म हो रहा था उस दिन भी रिकॉर्ड कोरोना संक्रमण के मामले आए और लॉकडाउन 4.0 शुरू होने के दिन भी रिकॉर्ड 5200 से ज़्यादा मामले सामने आए। इस रफ़्तार से कल यानी 19 मई को देश में संक्रमित मामलों की संख्या 1 लाख को पार कर जाने की आशंका है।
हालाँकि, गाँवों में कोरोना संक्रमण फैलने का बड़ा कारण बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूरों के देश के अलग-अलग हिस्सों से अपने-अपने राज्यों में लौटने को माना जा रहा है। जैसे-जैसे ये मज़दूर वापस लौटे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में ग्रामीण क्षेत्रों में आने वाले ज़िलों में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ गए। हालाँकि अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों के ज़िलों में अभी भी संक्रमण के मामले ईकाई अंक में ही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में ही कुछ ज़िले हैं जहाँ ऐसे संक्रमित लोगों के मामले ज़्यादा आए हैं। जैसे, ओडिशा के गंजम ज़िले में 292 और बिहार के मुंगेर ज़िले में 195 मामले आए हैं।
बिहार, तमिलनाडु और हरियाणा जैसे राज्यों में अब सभी ज़िलों में संक्रमण फैल चुका है। दिल्ली में तो काफ़ी पहले ही सभी ज़िलों में संक्रमण फैल चुका था।
हालाँकि अभी भी कोरोना संक्रमण के मामले महानगरपालिका क्षेत्रों में 79 फ़ीसदी हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में यह क़रीब 21 फ़ीसदी है। लेकिन प्रवासी मज़दूरों के वापस लौटने पर गाँवों में स्थिति और ख़राब होगी।
तो प्रवासी मज़दूर आख़िर क्यों लौट रहे हैं और क्या सरकारें ऐसी स्थिति उपलब्ध नहीं करा सकती थीं जिससे वे वापस नहीं लौट पाएँ? दरअसल, प्रवासी इसलिए लौट रहे हैं कि शहरों में काम बंद हो गये हैं और प्रवासी मज़दूरों के सामने भूखों रहने की नौबत आ गई। भले ही सरकारों ने दावे किए कि उन्होंने उनके लिए खाने के इंतज़ाम किए लेकिन हर तरफ़ से रिपोर्टें ऐसी आईं जिसमें सरकार के दावे सही साबित नहीं हुए। कई जगह से रिपोर्टें आईं कि मज़दूरों के पास मकान के किराए देने के लिए पैसे नहीं थे तो उनके लिए मकान को छोड़ना और घर पैदल ही लौटने के अलावा कोई चारा नहीं था। पैदल चलते-चलते कई लोगों की मरने की ख़बरें आईं फिर भी वे नहीं रुके क्योंकि उनके पास विकल्प नहीं था। यह यूँ ही नहीं है कि तपती धूप में हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर लोग घर पहुँच जाना चाहते हैं। क्या सरकारें इनको आर्थिक सहायता देतीं तो वे इतनी तकलीफ उठाकर घर लौटना चाहते? क्या सरकारें यहाँ असफल नहीं हुई हैं?
यदि अब इन प्रवासी मज़दूरों के वापस उनके राज्यों में लौटने की स्थिति भी देखें तो क्या राज्य सरकारें स्थिति संभाल पा रही हैं? बिहार और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों से ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि क्वॉरंटीन सेंटरों में ऐसी अव्यवस्था है कि वहाँ रहना मुश्किल हो रहा है। कहीं पानी की कमी है तो कहीं खाने की दिक्कत।
लेकिन अब जो बड़ा सवाल है वह है अधिकतर राज्यों की स्वास्थ्य व्यवस्था का? बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा जैसे राज्यों में स्वास्थ्य व्यवस्था काफ़ी ख़राब हालत में है। देश में जनवरी में ही कोरोना संक्रमण का मामला आने के बाद भी ऐसे राज्यों में व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो पाई है। बिहार जैसे राज्यों में तो कोरोना संक्रमण की जाँच की व्यवस्था ही अपर्याप्त है। वहाँ की स्वास्थ्य व्यवस्था सामान्य बीमारी की स्थिति को झेलने की स्थिति में नहीं थी तो कोरोना संकट जैसी स्थिति से कैसे निपट पाएगी?