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राहुल गाँधी के बार-बार सचेत करने के बाद भी क्यों नहीं चेती सरकार?

राहुल गाँधी के बार-बार सचेत करने के बाद भी क्यों नहीं चेती सरकार?

इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में कोरोना वायरस से बचाव की कार्रवाई काफ़ी देर से शुरू हुई। क्रोनोलॉजी से आप जानते हैं कि चीन में इसका पता 31 दिसंबर को चला था और भारत में पहला मामला 30 जनवरी को मिला था।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में कोरोना वायरस से बचाव की कार्रवाई काफ़ी देर से शुरू हुई। क्रोनोलॉजी से आप जानते हैं कि चीन में इसका पता 31 दिसंबर को चला था और भारत में पहला मामला 30 जनवरी को मिला था। इसी दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे अंतरराष्ट्रीय चिंता वाली विश्व स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित किया था। 31 जनवरी को राहुल गाँधी ने ट्वीट किया था, ‘चीन में कोरोना वायरस ने सैकड़ों लोगों की जान ली है। मेरी संवेदनाएँ पीड़ितों के परिवार और उन लाखों लोगों के साथ हैं जो वायरस को फैलने से रोकने के लिए क्वरेंटाइन कर दिए जाने को मजबूर हैं। उन्हें इस अजीब मुश्किल से निकलने की शक्ति और हिम्मत मिले।’ इसके बाद राहुल गाँधी ने 13 मार्च तक एक-एक कर कम से कम पाँच ट्वीट किए। तीन मार्च को उन्होंने दो ट्वीट किए थे।

इनमें एक सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय को संबोधित था, ‘डीयर @PMOIndia भारत जब आपात स्थिति का सामना कर रहा है तब अपने सोशल मीडिया अकाउंट से क्लाउन की भूमिका निभाते हुए भारत का समय बर्बाद करना बंद कीजिए। कोरोना वायरस की चुनौती पर हरेक भारतीय का ध्यान खींचने की दिशा में काम कीजिए। देखिए ऐसे किया जाता है ....।’ इसके साथ एक वीडियो भी पोस्ट किया गया था। 

दूसरी ओर, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने तीन मार्च को ही प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर ‘एक चिकित्सक और मंत्री होने के नाते लोगों से अपील की थी कि कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से लोग मुँह पर मास्क लगाकर न घूमें, डर न फैलाएँ।’

इसके बाद, 13 मार्च का राहुल गाँधी का ट्वीट था, ‘मैं इसे दोहराता रहूँगा। कोरोना वायरस एक विशाल समस्या है। समस्या को नज़रअंदज़ करना समाधान नहीं है। अगर सख़्त कार्रवाई नहीं की गई तो भारतीय अर्थव्यवस्था नष्ट हो जाएगी। सरकार गंभीरता को समझ नहीं रही है।’ इसके साथ उन्होंने 12 मार्च का अपना ट्वीट भी शेयर किया था। लेकिन उसी दिन स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा था, ‘कोरोना वायरस हेल्थ इमरजेंसी नहीं है’। पीटीआई ने इस आशय का ट्वीट भी किया था। इंटरनेट पर बिजनेस स्टैंडर्ड और एनडीटीवी की इससे संबंधित ख़बर तो मिली लेकिन ख़बर देने वाले अधिकारी का नाम नहीं है। यह ख़बर स्वास्थ्य अधिकारियों के हवाले से दी गई है और इसमें शुक्रवार यानी 13 मार्च तक की स्थिति बताई गई है। 

इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया गया था कि देश भर में कोरोना वायरस या कोविड-19 के 81 पुष्ट मामले हैं। इसके अलावा 4000 ऐसे लोगों की पहचान की गई है जिनके इससे संक्रमित होने की आशंका है। इनका पता लगाया जा रहा था। एनडीटीवी की ख़बर के अनुसार, ‘गृह, स्वास्थ्य और नागरिक उड्डयन समेत कई केंद्रीय मंत्रालयों के अधिकारियों ने संवाददाताओं को संबोधित किया और घबराने से बचने के लिए आश्वस्त किया’। इसी क्रम में कहा गया कि, ‘यह हेल्थ इमरजेंसी नहीं है’।

उस समय सोशल मीडिया पर यह कहा जा रहा था कि यह विदेश घूमने और हवाई यात्रा करने वाले लोगों को हो रहा है इसलिए सरकार परेशान है। सच यह है कि सरकार ने इससे निपटने की कोई तैयारी नहीं की और न ही इसे आम लोगों में फैलने से रोक पाई।

राहुल गाँधी ने 18 मार्च को ट्वीट किया, ‘कोरोना वायरस से निपटने का एक ही तरीक़ा है, शीघ्र, जोरदार कार्रवाई। निर्णायक ढंग से काम करने में सरकार की नाकामी की वजह से भारत को भारी क़ीमत चुकानी होगी।’ 17 मार्च को लगा नरेंद्र मोदी की नींद खुली। 18 मार्च को राष्ट्र के नाम संदेश की घोषणा। इससे जनता में दहशत। ज़रूरी सामान जमा करने की होड़ लग गई। नरेन्द्र मोदी ने टीवी पर आकर चार दिन बाद छुट्टी के दिन यानी रविवार, 22 मार्च को ‘जनता कर्फ़्यू’ की घोषणा की। 19 मार्च से देश भर में दहशत फैल गई कि क्या यह देश बंदी का रिहर्सल है। लोग महानगरों से अपने गाँव क़स्बों को भागे। रेलवे ने उनकी मदद की- स्पेशल ट्रेनें चला कर। इसमें सरकार यह भूल गई कि इससे वायरस और फैल सकता है। शहर में किसी को रहा हो तो पूरे गाँव में पहुँच जाएगा और गाँवों में इलाज की कोई सुविधा नहीं है यह सरकार से बेहतर कौन जानता है।

इस बीच मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने और बीजेपी की सरकार बनाने की राजनीति और बैठकें चलती रहीं। 21 मार्च को राहुल गाँधी ने ट्वीट किया, ‘कोरोना वायरस हमारी नाजुक अर्थव्यवस्था पर ज़ोरदार प्रहार है। छोटे और मध्यम स्तर के क़ारोबारी तथा दिहाड़ी मज़दूर सबसे बुरी तरह प्रभावित होगा। ताली बजाने से उन्हें सहायता नहीं मिलेगी। सिर्फ़ विशालकाय आर्थिक पैकेज से लाभ होगा जिसमें सीधे नकद ट्रांसफ़र, टैक्स ब्रेक और क़र्ज़ के पुनर्भुगतान का स्थगन शामिल हो।’ 

22 मार्च को ताली और थाली बजाने की अपील को मिली भारी सफलता के बाद दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार ने राजधानी में कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए रविवार, 22 मार्च को पूरी राष्ट्रीय राजधानी में 31 मार्च तक लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी। उसी दिन और राज्यों तथा शहरों में लॉकडाउन की घोषणा हुई।

दिल्ली की सभी ग़ैर-ज़रूरी सेवाओं और दुकानों को अस्थायी तौर पर बंद कर दिए जाने के साथ यह घोषणा भी की गई थी कि दिल्ली एयरपोर्ट से जुड़ी सेवाएँ भी बंद रहेंगी। कहा गया था कि घरेलू या अंतरराष्ट्रीय उड़ान भी बंद रहेंगे। दिल्ली में उड़ानें सोमवार, सुबह 6:00 बजे से बंद होनी थी। पर इसके घंटों बाद भी दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से विमानों का परिचालन जारी रहा। कहने की ज़रूरत नहीं है कि केंद्र सरकार ने इस प्रतिबंध को रोक दिया या लागू नहीं किया। ममता बनर्जी की अपील के बाद सोमवार को मंगलवार, 24 मार्च से देश भर में उड़ान बंद करने की घोषणा की गई।

यह संयोग ही है कि दिल्ली चुनाव के समय का 'प्रयोग' मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के शपथ लेने के दिन ही हटाया गया और देश में विमानों के उड़ान पर रोक भी लगभग तभी लगी। हालाँकि जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन से बीजेपी के कार्यकर्ता मुख्यमंत्री और भावी मुख्यमंत्री सब मुक्त और स्वतंत्र रहे। 25 मार्च के राम लला को भी उनके नए निवास स्थान में स्थानांतरित किया गया।

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