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कोरोना: लॉकडाउन के बाद घरेलू हिंसा बढ़ी, अब महिलाएँ क्या करें?

कोरोना: लॉकडाउन के बाद घरेलू हिंसा बढ़ी, अब महिलाएँ क्या करें?

यह माना हुआ तथ्य है कि प्राकृतिक आपदा, महामारी, युद्ध जैसे संकट के समय में महिलाएँ सबसे ज़्यादा भुक्तभोगी होती हैं और यही कोरोना संकट के समय भी हो रहा है। 

यह माना हुआ तथ्य है कि प्राकृतिक आपदा, महामारी, युद्ध जैसे संकट के समय में महिलाएँ सबसे ज़्यादा भुक्तभोगी होती हैं और यही कोरोना संकट के समय भी हो रहा है। 

कोरोना वायरस और फिर लॉकडाउन के बाद घरेलू हिंसा के मामले काफ़ी ज़्यादा बढ़ गए हैं। यानी सीधे-सीधे कहें तो महिलाओं की प्रताड़ना काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई है। भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया भर में। यदि शिकायत भी करें तो और ज़्यादा हिंसा का डर। पुलिस भी लॉकडाउन में व्यस्त है और लॉकडाउन है तो महिलाएँ बाहर भी नहीं जा सकती हैं। तो क्या हिंसा की शिकार महिलाएँ हिंसा के पिंजरे में कैद हैं और यदि ऐसा है तो वे क्या करें

लॉकडाउन के बाद कई जगहों पर ऐसी शिकायतें दोगुनी हो गई हैं तो कई जगहों पर इससे भी ज़्यादा। चाहे वह भारत हो या, अमेरिका, इटली, फ़्रांस, स्पेन, चीन या कोई अन्य देश। हर जगह ऐसी हिंसा कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बाद बढ़ गई है।

लॉकडाउन के बाद फ़्रांस में घरेलू हिंसा की 32 फ़ीसदी शिकायतें बढ़ गईं हैं। स्पेन में फ़ोन पर शिकायतें 12 फ़ीसदी और ऑनलाइन सलाह देने वाली हेल्पलाइन पर 270 फ़ीसदी। इटली में भी ऐसी ही स्थिति है। ब्रज़ील में 40-50 फ़ीसदी तक केस बढ़ गए हैं। अमेरिका में हर रोज़ घरेलू हिंसा की क़रीब 2000 शिकायतें आ रही हैं और इसमें से क़रीब 950 में कोरोना वायरस का ज़िक्र आ रहा है।

रिपोर्टों में हिंसा के जो कारण आए हैं वे अलग-अलग तरह के हैं। मिसाल के तौर पर भारत में ज़्यादातर शिकायतें ऐसी है जिसमें छोटी-छोटी बातों पर पत्नियों को पीटने का मामला है। अमेरिका में एक शिकायत आई है जिसमें पति ने अपनी पत्नी को धमकी दी थी कि यदि उसने छींका तो वह उसे घर से निकाल देगा और सड़क पर फेंक देगा। अमेरिका के पेनसिल्वानिया शहर में महामारी के कारण नौकरी जाने के बाद एक युवक ने इसी सोमवार को अपनी प्रेमिका को गोली मार दी और ख़ुद की हत्या कर ली। ज़िंदा बच गई प्रेमिका का कहना था कि कोरोना वायरस के बार में वह काफ़ी तनाव में था।

तनाव और चिड़चिड़ापन बढ़ने का नतीजा है कि घरों में क़लह बढ़ रही है और हिंसा भी। भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग यानी एनसीडब्ल्यू की प्रमुख रेखा शर्मा का कहना है कि 24 मार्च से 1 अप्रैल तक घरेलू हिंसा के 69 मामले सामने आए और यह हर रोज़ बढ़ रहे हैं। भारत में 24 मार्च को ही लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। भारत के बारे में एक तथ्य यह भी है कि हिंसा होने के बाद भी बहुत कम ही महिलाएँ शिकायत कर पाती हैं। इसका बड़ा कारण तो यह है कि महिलाओं का अपने पति के प्रति शिकायत करने पर आम तौर पर महिलाओं को ही भला-बुरा कहा जाता है। 

कई महिलाएँ हिम्मत ही नहीं कर पाती हैं कि वे शिकायत करें क्योंकि यह फिर उनके लिए और ज़्यादा प्रताड़ना का कारण बन जाती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में क़रीब 30 फ़ीसदी महिलाएँ घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। इसमें से 75 फ़ीसदी तो हिंसा के बारे में किसी से कुछ बात भी नहीं कह पाती हैं। सिर्फ़ एक फ़ीसदी महिलाएँ ही पुलिस में शिकायत कर पाती हैं। और फ़िलहाल तो लॉकडाउन है और ऐसे में पुलिस भी इसी में व्यस्त है। तो अब शिकायत करने के लिए भी महिलाओं के सामने दिक्कतें बढ़ गई हैं।

दुनिया के दूसरे देशों में भी महिलाओं के सामने ऐसी दिक्कतें हैं। कई देशों में इसके लिए विशेष व्यवस्था की गई है। फ़्रांस में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए होटल की व्यवस्था है और इसका ख़र्च सरकार उठाती है।

फ़्रांस में महिलाओं के लिए एक वार्निंग सिस्टम शुरू किया गया है। ये सिस्टम मेडिकल स्टोर और सुपरमार्केट में लगे हुए हैं। हिंसा की पीड़ित महिला को नज़दीक की ऐसी जगहों पर जाकर कोड वर्ड 'मास्क 19' कहना होता है और इसके बाद यह संदेश अधिकारियों तक पहुँच जाता है। स्पेन में भी ऐसी ही व्यवस्था है।

कोड वर्ड वाली कुछ ऐसी ही शुरुआत भारत में भी एक एनजीओ ने की है। वीमेन अंटरप्रन्योर्स फॉर ट्रांसफ़ोर्मेशन यानी डब्ल्यूएफ़टी फ़ाउंडेशन ने 'रेड डॉट' की शुरुआत की है। डब्ल्यूएफ़टी फ़ाउंडेशन एक ग़ैर लाभकारी संगठन है। इसके तहत घरेलू हिंसा की पीड़ित महिला को अपनी हथेली पर लाल डॉट यानी निशान बनाना होगा। यदि किसी भी व्यक्ति को यह निशान दिखेगा तो इस संगठन को सूचना देगा। यह निशान सोशल मीडिया या फिर ईमेल weftinfo@gmail.com पर भी भेजा जा सकता है। टोल फ़्री फ़ोन नंबर 181 पर भी शिकायत की जा सकती है। इसकी शुरुआत चार दिन पहले ही की गई है। इसमें खाने-पीने से लेकर रहने तक की, सभी तरह की मदद दी जा रही है। हालाँकि यह अच्छी शुरुआत है, पर पीड़ित महिलाएँ इसके लिए कितना आगे आएँगी, यह कहना मुश्किल है।

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