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पलायन : मरने से पहले उसने कहा था- लेने आ सकते हो तो आ जाओ

पलायन : मरने से पहले उसने कहा था- लेने आ सकते हो तो आ जाओ

क्या हो जब आपके परिवार का कोई सदस्य इस लॉकडाउन में सैकड़ों किलोमीटर दूर फँसा हो और फ़ोन पर सिर्फ़ इतना ही कह सके कि 'लेने आ सकते हो तो आ जाओ'! फिर उसकी आवाज़ तक न निकले।

क्या हो जब आपके परिवार का कोई सदस्य इस लॉकडाउन में सैकड़ों किलोमीटर दूर फँसा हो और फ़ोन पर सिर्फ़ इतना ही कह सके कि 'लेने आ सकते हो तो आ जाओ'! फिर उसकी आवाज़ तक न निकले। क्या हो जब आपको अहसास हो जाए कि आपका अपना कोई आख़िरी साँसें गिन रहा है! न कोई वाहन और न एंबुलेंस। पूरी तरह पाबंदी लगी हो। और क्या हो जब आप चाहकर भी मदद करने समय पर नहीं पहुँच सकें! और जब पहुँचें भी तो पार्थिव शरीर मिले।

दिल्ली से पैदल ही घर लौट रहे मुरैना के 38 साल के जिस डेलीवरी ब्वॉय रणवीर सिंह की मौत हुई है, उनकी कहानी रुह को कँपा देने वाली है। वह लॉकडाउन के बाद हज़ारों लोगों के बीच दिल्ली से पैदल ही मध्य प्रदेश में अपने घर लौट रहे थे। लॉकडाउन के बाद घर के लिए निकले रणवीर 200 किलोमीटर से ज़्यादा चल चुके थे और अपने घर से क़रीब 80 किलोमीटर ही दूर थे। उनकी यह कहानी उन हज़ारों लोगों और उनके परिवारों के लिए असह्य पीड़ा से गुज़रने की दास्ताँ कहती है जो सैकड़ों किलोमीटर पैदल ही चलकर घर पहुँचने के लिए निकले हैं या निकल रहे हैं। 

मौत से पहले रणवीर सिंह ने फ़ोन पर अपने घर वालों से बातचीत की थी। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने रणवीर के परिजनों से इसी बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट छापी है। परिजनों ने कहा कि जब रणवीर का आख़िरी फ़ोन आया था तब उनकी आख़िरी बात थी- 'लेने आ सकते हो तो आ जाओ'। वह पूरी तरह टूट चुके थे। इतनी दूर चलने के बाद शरीर में बिल्कुल ताक़त नहीं बची थी। बोल पाने की शक्ति भी नहीं थी। परिवार वाले हड़बड़ी में कह रहे थे, 'किसी से कहो मुरैना तक लिफ्ट दे दे। हेलो? हेलो?' जब आवाज़ नहीं आई तो कहा, '100 पर फ़ोन करो। क्या कोई एंबुलेंस नहीं है? क्या वे आपको नहीं छोड़ सकते हैं? हेलो? फिर भी रणवीर की तरफ़ से कोई आवाज़ नहीं। घर वालों को बड़ी अनहोनी का अंदेशा हो गया था।

'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, 22 मार्च को रणवीर की पत्नी ने फ़ोन कर कहा था कि वह दिल्ली से वापस आ जाएँ क्योंकि गाँव के दो लोग दिल्ली से लौट रहे थे। रणवीर कालकाजी में रहते थे और जिस रेस्त्राँ के लिए डेलीवरी का काम करते थे वहीं खाना खाते थे। घर वाले कहते हैं कि परिवार पहले से ही क़र्ज़ में है। क़र्ज़ चुकाने और घर का ख़र्च पूरा करने के कारण पैसे नहीं बचते थे। रणवीर ने शुक्रवार दोपहर दो बजे अपनी 12 साल की बेटी को फ़ोन कर कहा था कि वह पैदल ही घर आ रहे हैं। तब उन्होंने बेटी से कहा था, 'कोई साधन नहीं है। न बस चल रही है, न ट्रेन... पैदल आ रहा हूँ।' फिर 5 बजे फ़ोन कर कहा कि वह पुलिस से बचते हुए आ रहे हैं। 9 बजे रात को फ़ोन कर अपनी बहन पिंकी सिंह से कहा कि कुछ दूरी के लिए ट्रक मिला है। पिंकी कहती हैं, 'वह काफ़ी थके हुए लग रहे थे। उन्होंने कहा कि वह आराम करना चाहते हैं। मैंने उन्हें कहा कि हम आपको सही सलामत घर पर देखना चाहते हैं।'

शनिवार सुबह पाँच बजे ही उनकी बहन पिंकी ने उन्हें फ़ोन किया। उन्होंने कहा, 'उन्होंने कहा कि वह आगरा में सिकंदराबाद रोड पहुँच गए हैं। वह ठीक से साँस नहीं ले पा रहे थे, कुछ और नहीं कह पाए। उन्होंने सिर्फ़ इतना ही कहा कि सीने में दर्द हो रहा है।'

फिर पिंकी ने हड़बड़ी में परिवार के दूसरे लोगों को जगाया और उन्हें लेने जाने के लिए कहा। फिर रणवीर के साले अरविंद सिंह ने बात की। रणवीर से यही आख़िरी बात हुई। दो अलग-अलग समूहों में लोग रणवीर को लाने के लिए निकले। एक ने गाँव के ही डॉक्टर से उनकी आईडी माँगी ताकि वे लॉकडाउन में रणवीर तक पहुँच सकें। वे बाइक से निकले। रणवीर के चचेरे भाई गेहूँ ढोने वाली जीप लेकर निकले और अंबा पुलिस स्टेशन गए। एक रिश्तेदार ने कहा, 'हमें पास की ज़रूरत थी। नहीं तो हमें वहाँ नहीं जाने दिया जाता। उन्होंने हमें पास दिया, लेकिन इसमें समय लग गया।'

जब वे आगरा पहुँचे तो हॉस्पिटल में उन्हें शव दिया गया। डॉक्टर और पुलिस ने कहा कि हार्ट अटैक आया था। 

रणवीर के पिता का पहले ही निधन हो चुका है। अब रणवीर के परिवार पर आर्थिक संकट है। ग्रामीण सरकार से आर्थिक मदद देने की माँग करते हैं। अरविंद कहते हैं कि रणवीर कभी भी डेलीवरी ब्वाय नहीं बनना चाहते थे। लेकिन घर पर कमाई का कोई ज़रिया नहीं होने के कारण उन्हें दिल्ली जाना पड़ा था। तीन साल से वह दिल्ली में काम कर रहे थे। अब जब उनकी मौत हुई तो उनके पास सिर्फ़ 800 रुपये थे। 

अब क्या जिसके पास सिर्फ़ 800 रुपये बचे हों, उसको दिल्ली में रहना कितना सुरक्षित लगेगा? क्या उसके सामने बड़ी चिंता यह नहीं होगी कि उसके सामने भूखे मरने का संकट आ सकता है?

क्या ऐसे लोगों के सामने एक रास्ता चुनने की नौबत नहीं है कि या तो कोरोना से बचो या फिर भूख से या सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर जान जोखिम में डालने से?

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