लखनऊ: पानी के सैंपल में मिला कोरोना वायरस; कितना ख़तरनाक?
क्या कोरोना वायरस पानी में भी सक्रिय रहता है और यदि ऐसा है तो यह कितना बड़ा ख़तरा हो सकता है? यूपी में पानी के सैंपल में कोरोना वायरस की पुष्टि होने के बाद यह नयी चिंता पैदा हुई है। दरअसल, पानी में कोरोना वायरस को लेकर पड़ताल की जा रही है और इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर व विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ देश के कई शहरों में ऐसे सैंपलों की जाँच करा रहे हैं। इसके लिए सीवेज के पानी का सैंपल लेना तय किया गया है।
पानी के सैंपल लेकर कोरोना वायरस जाँच की यह ख़बर तब आई है जब हाल ही में उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा में सैकड़ों शव पानी में तैरते मिले हैं और सैकड़ों शव गंगा किनारे रेत में दफनाए हुए पाए गए हैं। कहा जा रहा है कि इनमें से अधिकतर शव उन लोगों के होंगे जिनकी मौत कोरोना संक्रमण से हुई होगी। अब आशंका है कि जब बारिश में गंगा नदी में पानी का तेज़ बहाव आएगा तो शव पानी के साथ बहेंगे।
बहरहाल, पानी के सैंपल के टेस्ट के लिए जो सेंटर तय किए गए हैं उनमें से एक लखनऊ का एसजीपीजीआई अस्पताल भी है। कुछ जगहों से लिए गए सैंपल की इसी सेंटर में जाँच में कोरोना वायरस मिलने की पुष्टि हुई है। तो सवाल है कि क्या यह पहली बार है कि पानी में इस तरह के वायरस की मौजूदगी मिली है? पानी में यह यह वायरस कैसे पहुँचा?
ऐसी रिपोर्ट आती रही है कि क़रीब 50 फ़ीसदी कोरोना मरीज़ों के मल में कोरोना वायरस की पुष्टि हुई है। चूँकि टॉयलेट का वेस्ट सीधे तौर पर सीवेज में जाता है इसलिए कई जगहों पर सीवेज के पानी में भी पुष्टि होती रही है। पिछले साल मार्च-अप्रैल में जब कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे थे तो यूरोप के कुछ देशों में भी सीवेज के कुछ सैंपलों में कोरोना वायरस पाए गए थे।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से पहले मुंबई में अपशिष्ट जल के नमूनों में वायरस का पता चला था। न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के अनुसार, अब लखनऊ के रुकपुर खदरा से 19 मई को लिए गए अपशिष्ट जल के नमूनों में कोरोना वायरस का पता चला है। घंटाघर और मछली मोहल क्षेत्रों से भी नमूने जुटाए गए थे।
क्या यह वायरस पानी से फैल सकता है? अभी तक के जो तथ्य सामने हैं उसके अनुसार इस वायरस के पानी से फैलने के कोई प्रमाण नहीं हैं। यह वायरस मुख्य तौर पर हवा से फैलता है।
जब कोई कोरोना से संक्रमित व्यक्ति बोलता है या छींकता है तो मुँह से निकलने वाले वाले ड्रॉपलेट के साथ वायरस भी निकलता है। ताज़ा रिपोर्ट है कि यह क़रीब 10 मीटर की दूरी तक लोगों को संक्रमित कर सकता है। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर और मुँह व आँखों के लिए बचाव के उपाए नहीं करने पर संक्रमित होने का ख़तरा रहता है।
'आज तक' की रिपोर्ट के अनुसार, पीजीआई लखनऊ की माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष उज्ज्वला घोषाल का कहना है कि प्रथम चरण में लखनऊ के 3 अलग-अलग जगहों के सीवेज से सैंपल लिए गए थे जिसमें से एक जगह के सीवेज पानी के सैंपल में कोरोना वायरस की पुष्टि हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. उज्ज्वला ने कहा कि पानी में मिले सैंपल की रिपोर्ट को आईसीएमआर को सौंप दिया गया है। उनका मानना है कि पानी में वायरस मिलने का कारण लोगों का मल है। जो लोग अपने अपने घरों में कोविड पॉजिटिव होने पर, होम आइसोलेट हो रहे हैं और इस दौरान उनसे जो मल निकलता है, वह घरों से होकर सीवेज में जा गिरता है। उन्होंने कहा कि आधे प्रतिशत कोरोना मरीजों के मल में वायरस पाए जाने की पुष्टि हुई है।