कोरोना: तबाही मचाने वाले का असली नाम क्यों छुपाया जा रहा है?
क्या आप जानते हैं कि दुनिया के लिए क़यामत बन चुके नए करोना वायरस का ऑफ़िशल नाम क्या है क्या कहा- COVID -19 जी नहीं, यह तो उस बीमारी का नाम है जो इस वायरस ने फैलाई है। वायरस का नाम तो कुछ और है और वह ऐसा है जिसे कुछ ख़ास कारणों से आपको नहीं बताया जा रहा है।
क्यों नहीं बताया जा रहा है, यह हम बाद में जानेंगे। पहले हम यह जान लें कि किसी वायरस या बीमारी का नाम कौन रखता है।
किसी बीमारी का नाम रखने का काम विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का है और जो वायरस या विषाणु उस बीमारी को फैलाने का ज़िम्मेदार होता है, उसका नाम रखने की ज़िम्मेदारी ICTV (अंतरराष्ट्रीय विषाणु वर्गीकरण समिति) से जुड़े विषाणु विशेषज्ञों की होती है। इन विशेषज्ञों ने इसका नाम SARS-CoV-2 रखा। SARS एक बीमारी का नाम है (इसपर आगे चर्चा करेंगे), CoV करोना वायरस का छोटा रूप और 2 उसका क्रम।
अब आप पूछेंगे कि इस वायरस का नाम SARS-CoV-2 है तो इसका मतलब है कि इसका कोई पूर्ववर्ती भाई या बाप भी रहा होगा जिसका नाम SARS-CoV-1 होगा। सही पकड़े हैं। इसके एक भाई ने 2002-04 में दुनिया के कई देशों में उत्पात मचाया था लेकिन वह इतना ख़तरनाक नहीं था। तब 29 देशों में इसके क़रीब 8 हज़ार केस मिले थे और उनमें से 774 लोगों की मौत हुई थी। बाक़ी ठीक हो गए थे। इसकी शुरुआत भी चीन से हुई थी और ज़्यादातर असर भी चीन (5,327 मामले) और उसके पड़ोसी हांगकांग (1,755 मामले) में हुआ था। ताइवान, सिंगापुर और कनाडा में भी 200 से 400 मामले आए थे। 29 में से 21 देशों में असर बहुत कम रहा। यहाँ दस से भी कम मामले प्रकाश में आए थे। 2004 के बाद इस बीमारी का कोई मामला नहीं मिला है।
अब अगला सवाल। यह SARS क्या है SARS उस बीमारी का नाम है जो इस वायरस ने फैलाई थी। SARS का मतलब है Severe Acute Respiratory Syndrome। इसका हिंदी अनुवाद करेंगे तो होगा - अति तीव्रश्वसन बहुलक्षण। आसान हिंदी में इसे यूँ समझें कि यह साँस की बहुत गंभीर और तेज़ी से फैलने वाली बीमारी है और इसके एक नहीं, बहुत-से लक्षण होते हैं जो साथ-साथ प्रकट होते हैं।
अभी जो नई बीमारी फैली है, वह बहुत-कुछ 2002-04 में फैली SARS बीमारी जैसी ही है और उसको फैलाने वाला भी करोना वायरस ही था। इसीलिए पुराने करोना वायरस के नाम में 1 जोड़कर उसका नया नाम कर दिया गया- SARS-CoV-1 और नए वायरस का नाम SARS-CoV-2 कर दिया गया।
लेकिन यह नाम केवल वायरस वैज्ञानिकों और दवाओं पर काम करने वालों के लिए था ताकि वे पुराने वायरस की जानकारियों का इस नए वायरस पर शोध करते समय इस्तेमाल कर सकें। एक ही वायरस के अलग-अलग स्ट्रेन (रूप) होने के कारण दोनों में 70% चीज़ें कॉमन हैं।
लेकिन वायरस के इस नाम को जनता के बीच बहुत लोकप्रिय नहीं किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन जिसे नई बीमारी का नाम रखना था, उसने भी उसका नाम SARS-2 नहीं रखा। बीमारी का नया नाम COVID-19 रखा गया। कारण क्या है
कारण यह कि विश्व स्वास्थ्य संगठन नहीं चाहता था कि जो देश या समाज 2002-04 में फैली SARS बीमारी से पीड़ित हुए थे, ख़ासकर एशियाई देश, वे इस नई बीमारी का नाम सुनते ही घबरा जाएँ। इसलिए बीमारी के नाम में SARS नहीं डाला गया। साथ ही वायरस का नाम जिसमें SARS लगा हुआ था, उसको भी लोगों की नज़रों से दूर रखने का जतन किया गया। कोशिश की गई कि आम जनता उसे COVID-19 बीमारी फैलाने वाले वायरस के रूप में ही याद रखे।
इसी कारण आप सरकारी विज्ञापनों और मीडिया में केवल COVID-19 देख रहे हैं और कई लोग समझ रहे हैं कि यही वायरस का नाम है जबकि जैसा कि अब आप जानते हैं, वायरस का ऑफ़िशल नाम SARS-CoV-2 है।
शुरू-शुरू में इस वायरस को वुहान वायरस या चीनी वायरस के नाम से भी जाना जाता था (आज भी कई लोग इसे चीनी वायरस कहते हैं और ट्रंप को यह नाम विशेष पसंद है) लेकिन किसी विषाणु या बीमारी को किसी क़ौम, नस्ल या जगह से जोड़ना ठीक नहीं है क्योंकि इससे उस क़ौम, नस्ल या स्थान के बारे में नकारात्मक भावना फैलती है। इससे पहले भारत से भी कुछ बीमारियाँ शुरू हुई हैं जो दुनिया भर में फैलीं जैसे 1852 और 1910 का। दोनों बार कई देशों में 18 लाख से ज़्यादा लोग मरे थे। तो क्या उन मौतों के लिए भारत या भारतीयों को बदनाम करना ठीक होगा!
इसी भावना के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन किसी बीमारी का नाम रखते समय कई तरह की सावधानियाँ बरतता है जो उसने इस मामले में भी बरतीं। यह अलग बात है कि WHO जो SARS से जुड़ी बुरी यादों से लोगों को बचाए रखना चाहता था, वह COVID-19 द्वारा मचाई जा रही तबाही से ख़ुद घबरा रहा है।