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कोरोना: ‘आगरा मॉडल’ फ़ेल? बीजेपी मेयर ने योगी से कहा- शहर को बचा लो!

कोरोना: ‘आगरा मॉडल’ फ़ेल? बीजेपी मेयर ने योगी से कहा- शहर को बचा लो!

एक समय कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए जिस ‘आगरा मॉडल’ की बात हो रही थी वहीं अब बीजेपी मेयर ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शहर को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। आख़िर हाल के दिनों में ऐसा क्या हो गया कि ऐसी स्थिति आ गई?

एक समय कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए पूरे देश में जिस ‘आगरा मॉडल’ की बात हो रही थी अब वहीं के बीजेपी मेयर ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शहर को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। आख़िर हाल के दिनों में ऐसा क्या हो गया कि ऐसी स्थिति आ गई

दरअसल, आगरा में कोरोना संक्रमण अब बस्तियों में फैल गया है। इसे रोकने के लिए प्रशासन ने जो कागजी घोड़े दौड़ाए थे, धराशायी हो गए। हालात इस क़दर बदतर हैं कि शहर में दूसरी बीमारियों के रोगियों की इमरजेंसी की हालत में इलाज न मिलने से मौत हो रही है। हाॅटस्पाॅट क्षेत्रों में बनाए क्वारंटीन सेंटरों पर बदइंज़ामी का आलम ऐसा है कि यहाँ रखे गए लोगों को भोजन-पानी तक न मिलने की शिकायत है। कोरोना मरीज़ों का बढ़ता ग्राफ़ और बदइंतज़ामी के लिए जवाबदेह अफ़सरों की नाकामी से लोगों का ग़ुस्सा फूटने लगा तो अब बीजेपी के सांसद और मेयर तक मुख्यमंत्री से शिकायत कर रहे हैं। आगरा में बीजेपी के मेयर नवीन जैन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कहा है कि वह बहुत दुखी मन से पत्र लिख रहे हैं, आगरा की स्थिति बेहद गंभीर है और उनसे हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि उनके आगरा को बचा लीजिए।

‘आगरा मॉडल’ में क्या खामी

स्थानीय प्रशासन ने सरकार के समक्ष कोरोना महामारी से निपटने के लिए जो मॉडल पेश किया था उसकी सरकार ने पहले बहुत तारीफ़ की थी। लेकिन जब इसे अमली जामा पहनाने के लिए काम शुरू हुआ तो तमाम खामियाँ और ढेरों कोताही के मामले सामने आए।

  • इस मॉडल में पहली खामी यह रही कि कोरोना के अलावा दूसरी गंभीर बीमारियों के शिकार रोगियों का कैसे इलाज होगा, इसका बंदोबस्त नहीं किया गया। 
  • दूसरी, ख़ामी यह रही कि क्वारंटीन सेंटरों के लिए किए गए इंतज़ामों की निगरानी की व्यवस्था नहीं की गई। 
  • तीसरी खामी यह रही कि भीड़ बढ़ने पर कोरोना की टेस्टिंग और कोरोना पॉजिटिव के इलाज का समुचित प्रबंध कैसे होगा, यह तैयारी नहीं थी। 
  • चौथी यह कि इलाज के लिए जिन स्टाफ़ को ज़िम्मेदारी दी गई, उनके न होने पर यह काम कैसे होगा। 

कुल मिलाकर आगरा मॉडल में वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई, जिसका नतीजा यह निकला कि बदइंतज़ामी के चलते एसएन मेडिकल काॅलेज में एक के बाद एक दो प्रोफ़ेसर पद की ज़िम्मेदारी छोड़कर छुट्टी पर चले गए और किट और सुरक्षा इंतज़ामों की कमी के कारण पैरा मेडिकल स्टाफ़ काम छोड़कर बैठ गया। आगरा मॉडल की नाकामी का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि ज़िला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और एसएन मेडिकल काॅलेज के बीच परस्पर विश्वास और समन्वय की कमी रही।

लाॅकडाउन से ठीक पहले आगरा में कोरोना संक्रमित मरीज़ों की संख्या 20 से कम थी। आगरा में शनिवार को 23 नए केस के साथ अब तक कोरोना मरीज़ों की संख्या क़रीब चार सौ तक पहुँच गई। इसमें से नौ कोरोना पॉजिटिव मरीज़ों की मौत हो गई।

हालाँकि जिन इलाक़ों से कोरोना पाॅजिटिव का केस मिला उनको हाॅटस्पाॅट घोषित कर दिया गया, लेकिन शहर के बाक़ी इलाक़ों में पानी, दूध और सब्ज़ी जैसी ज़रूरतों की क़िल्लत बढ़ती रही और इसकी व्यवस्था दुरुस्त नहीं रही। इसे कहीं पुलिस की लाठी से तो कहीं रास्ता रोककर काबू में करने की कोशिश की गयी पर बदइंतज़ामी के बीच लोगों की भीड़ कई जगह लाॅकडाउन में सड़क पर उतरी।

इन वजहों से फैली महामारी

आगरा में कोरोना महामारी के फैलने की तीन प्रमुख वजह हैं एक, विदेश से लौटे संदिग्ध कोरोना संक्रमित की डाॅक्टरों ने जाँच रिपोर्ट आने का इंतज़ार किये बगैर मरीज़ों का इलाज करके महामारी फैलाई। दूसरी वजह, वे जमाती जो मसजिदों ने निकलकर ख़ुद जाँच के लिए सामने नहीं आए और इन्हें तलाशने में कई दिन लगे। आगरा और इसके आसपास के ज़िलों में सबसे ज़्यादा महामारी पारस अस्पताल से फैली। इस अस्पताल में भर्ती ऐसे मरीज़ों का कई दिन तक इलाज होता रहा जो कोरोना संक्रमित थे। इससे अस्पताल का स्टाफ़, यहाँ भर्ती दूसरे मरीज़ और उनके तीमारदार संक्रमित हो गए। आगरा प्रशासन ने पहले तो बिना जाँच कराए सभी मरीज़ों को उनके घर भेज दिया और बाद में यूपी के 10 ज़िलों के डीएम को 96 मरीज़ों की सूची भेज दी, जिनका पारस अस्पताल में कोरोना मरीज के भर्ती रहने के दौरान इलाज होता रहा। अब आगरा, अलीगढ़ और कानपुर मंडल के 96 गाँवों में कोरोना महामारी के मरीज़ों की पहचान और जाँच हो रही है। हालात इस क़दर ख़राब हैं कि तमाम लोग तबियत ख़राब होने पर ज़िला अस्पताल और एसएन मेडिकल काॅलेज पहुँच रहे हैं। लेकिन आरोप हैं कि उनकी जाँच के लिए सैंपल नहीं लिए जा रहे हैं और इसकी किसी भी स्तर पर सुनवाई नहीं हो रही है।

भुखमरी की नौबत

आगरा में क़रीब पाँच लाख दिहाड़ी मज़दूरों के परिवारों की आर्थिक हालत बहुत ख़राब है। सहायक श्रम आयुक्त सर्वेश कुमारी कहती हैं कि कोरोना संक्रमण के कारण तंगी में आए आगरा में 40 हज़ार भवन निर्माण के मज़दूरों को एक-एक हज़ार रुपये की सहायता दी है। ग्रामीण मज़दूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा कहते हैं कि सरकार ने दिहाड़ी मज़दूरों के साथ भेदभाव किया है। यह मदद सभी तरह के दिहाड़ी मज़दूरों को मिलनी चाहिए। उनके परिवार भी भुखमरी के कगार पर हैं।

जूता दस्तकार फेडरेशन के अध्यक्ष भारत सिंह कहते हैं कि आगरा में क़रीब जूता कुटीर उद्योग में दो लाख दिहाड़ी मज़दूरी पर काम करने वाले दस्तकार हैं। एक माह से इनके हाथ में न काम है और न जेब में दाम। इन मज़दूरों के परिवार भुखमरी के कगार पर हैं। सरकार पैसा नहीं दे सकती तो राशन तो दे ताकि उनका परिवार ज़िंदा रह सके।

दबाव में जनप्रतिनिधि

आगरा में दोनों सांसद, सभी नौ विधायक, मेयर और ज़िला पंचायत अध्यक्ष बीजेपी से हैं। लिहाज़ा इन जनप्रतिनिधियों को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, आगरा प्रशासन और बीजेपी के जनप्रतिनिधियों (एमपी-एमएलए) के दरम्यान संवाद और समन्वय का अभाव है। सांसद एसपी सिंह बघेल कहते हैं कि डीएम उनकी बात अनसुनी करते हैं और महामारी रोकने के लिए ज़िम्मेदार अधिकारी पूरी तरह नाकाम हैं। वह कहते हैं कि इसकी शिकायत सीएम से करेंगे। बीजेपी के मेयर नवीन जैन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बाक़ायदा पत्र लिखकर उन पर बढ़ रहे जन दबाव को सार्वजनिक कर दिया, जिसमें वह दुखी मन से पत्र लिखने की बात करते हैं। 

बीजेपी मेयर जैन ने मुख्यमंत्री से आगरा को बचाने की अपील की और कहा कि पंगु स्थानीय प्रशासन की नाकामी के चलते जनता आगरा के बीजेपी के जनप्रतिनिधियों को कोस रही है और इससे बीजेपी सरकार की छवि ख़राब हो रही है।

आरोप बेबुनियाद, हर स्तर पर मुस्तैदी का दावा

आगरा के ज़िलाधिकारी पीएन सिंह कहते हैं कि ‘आगरा मॉडल’ के तहत बेहद सीमित संसाधनों में बेहतर काम करके महामारी पर नियंत्रण पाने का प्रयास है। उनका कहना है कि जमातियों, डॉक्टरों के क्लीनिक और अस्पताल से मरीज़ों की संख्या में इज़ाफा हुआ है। वह दावा करते हैं कि जो शिकायतें हैं, उनका निस्तारण किया जा रहा है, आरोप में सच्चाई नहीं है।

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