मदद मांग रहे महाराष्ट्र को निशाने पर क्यों ले रहे हैं हर्षवर्धन?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी "स्लोगन" या नारे देने में माहिर हैं और इस बात को कोई नकार नहीं सकता। कोरोना महामारी के दौर में बीस लाख रुपये का आर्थिक पैकेज घोषित करते समय उन्होंने एक नारा दिया था "आपदा को अवसर में बदलना है", हमें बचना भी है और आगे भी बढ़ना है। लेकिन कोरोना के ख़िलाफ़ पहली लहर हो या वर्तमान में चल रही दूसरी लहर, केंद्र सरकार की रणनीति पर लगातार सवाल उठे हैं।
मामला चाहे लॉकडाउन का हो या कोरोना काल में चुनावी रैलियों व सभाओं का। कोरोना की इस दूसरी लहर में जब महाराष्ट्र ने संक्रमण पर नियंत्रण रखने के लिए बड़े पैमाने पर टीकाकरण की बात उठाई और टीके की मांग की तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने एक के बाद एक, कई ट्वीट कर राज्य सरकार को ही आड़े हाथों ले लिया।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार कोरोना नियंत्रण करने में विफल है और अफवाह फैलाने का काम कर रही है।
याद रहे कि मुंबई की धारावी झोपड़पट्टी में कोरोना नियंत्रण के लिए मुंबई महानगरपालिका द्वारा किये गए कार्यों को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सराहा था। साथ ही इसे एक मॉडल के रूप में अपनाने की बात कही थी। लेकिन क्या कारण है केंद्रीय मंत्री टीका उपलब्ध कराने की बात छोड़, राज्य सरकारों की ही खामियां बताने लगे?
इस बात से इनकार नहीं किया सकता कि कोरोना को लेकर जो दिशा-निर्देश केंद्र सरकार द्वारा जारी किये जाते हैं उन्हीं के हिसाब से राज्यों को कार्य करना होता है। ऐसे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री किसकी जिम्मेदारी तय करना चाहते हैं।
भारतीय टीके के आविष्कार और उसके उत्पादन को लेकर प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की खूब पीठ थपथपाई थी। यही नहीं पड़ोसी देशों जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है, को टीके की आपूर्ति कर इसे अपनी डिप्लोमेसी से जोड़ा था। प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल ने प्रारम्भ में टीके पर सवाल उठाने वालों की जमकर निंदा भी की थी। लेकिन अब आखिर ऐसा क्या हो गया कि टीके की अतिरिक्त मांग करने या सबको टीका देने की बात करने वाली राज्य सरकारें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के निशाने पर हैं?
दोहरा रवैया क्यों?
क्या इस टीकाकरण या कोरोना महामारी को भी राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है? जिस तरह का घटनाक्रम या बयानबाजी देखने को मिल रही है वह कुछ ऐसा ही संकेत करती है। मुख्यमंत्रियों की बैठक में प्रधानमंत्री सख्ती से कदम उठाने की बात करते हैं और महाराष्ट्र सरकार जब वीकेंड लॉकडाउन या आंशिक बंद के आदेश जारी करती है तो भारतीय जनता पार्टी के नेता विरोध प्रदर्शन करते हैं और आंदोलन की बात करते हैं।
स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने जो आंकड़े दिए और बताया कि महाराष्ट्र, दिल्ली और पंजाब की सरकारों ने अपने राज्यों में पहली डोज के तहत क्रमशः 86, 72 और 64 प्रतिशत कर्मचारियों को ही टीका दिया है जबकि देश के 10 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों में यह आंकड़ा 90 प्रतिशत का है।
उन्होंने कहा कि कोरोना के नियंत्रण के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा ज़िम्मेदारी से कार्य न करना समझ से परे है। वैक्सीन आपूर्ति की लगातार निगरानी की जा रही है और राज्य सरकारों को इसके बारे में नियमित रूप से अवगत कराया जा रहा है। इसके बावजूद लोगों में दहशत फ़ैलाना मूर्खता है।
कोरोना और लॉकडाउन को लेकर देखिए वीडियो-
आंकड़ों की बाजीगरी
कुछ राज्य 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण शुरू करने की मांग कर रहे हैं, तो इसका मतलब ये लगाया जाना चाहिए कि उन्होंने अपने-अपने राज्यों में सभी स्वास्थ्य कर्मियों, फ्रंटलाइन वर्कर्स और वरिष्ठ नागरिकों का टीकाकरण कर लिया है। लेकिन तथ्य बिल्कुल अलग हैं और स्वास्थ्य मंत्री ट्वीट्स में आंकड़ों की बाजीगरी करते नजर आते हैं। वे सिर्फ स्वास्थ्य कर्मचारियों या फ्रंट रनर कर्मचारियों की ही बात कर रहे हैं सम्पूर्ण टीकाकरण की नहीं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 6 अप्रैल तक देश में करीब 8 करोड़ लोगों को टीका लगाया गया है जिसमें से अकेले महाराष्ट्र में 81 लाख से अधिक लोगों को टीका लगाया गया। यानी देश में कुल टीकाकरण का यह 10 प्रतिशत से भी ज्यादा है।
उद्धव ठाकरे की मांग
दरअसल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने गत दिनों प्रधानमंत्री की कोरोना प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में मुद्दा उठाया था कि 18 या 25 साल से ऊपर के सभी लोगों को टीका लगाया जाना चाहिए था। ठाकरे ने इसके पीछे तर्क दिया था कि युवा वर्ग घरों से बाहर घूमता है और संक्रमण फैलाने का काम बड़े पैमाने पर कर रहा है।
टीके की किल्लत
ठाकरे की इस मांग का समर्थन दिल्ली, पंजाब, राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने भी किया। बैठक के दो दिन बाद ही महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा कि प्रदेश में टीके की किल्लत है और सिर्फ तीन दिन का ही स्टॉक शेष है, केंद्र से लगातार मांग कर रहे हैं और आपूर्ति नहीं मिली तो टीकाकरण बंद हो जाएगा।
टोपे का यह बयान मीडिया की सुर्खियां बन गया और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने आकर महाराष्ट्र सरकार के कामकाज पर ही सवाल उठा दिए। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब केंद्र सरकार पाकिस्तान जैसे देश को निशुल्क कोरोना का टीका भेज सकती है तो अपने ही देश के एक राज्य जो कोरोना से सर्वाधिक पीड़ित है को अतिरिक्त डोज देने की बजाय उसकी कार्य क्षमता पर सवालिया निशान लगा रही है? क्या आपदा में भी राजनीतिक अवसर खोजा जा रहा है?
महाराष्ट्र सरकार पिछले कई दिनों से लगातार टीकाकरण की रफ़्तार को बढ़ा रही है। मार्च के अंतिम सप्ताह में जहां प्रतिदिन 3 लाख के आसपास टीके लगाए जा रहे थे, अब वह आंकड़ा साढ़े चार लाख तक पहुंच गया है।
टीकाकरण की रफ़्तार बढ़ी
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे कहते हैं कि हमने 6 लाख टीके प्रतिदिन लगाने की क्षमता तैयार कर ली है और अगले एक-दो महीनों में प्रदेश की आधी आबादी का टीकाकरण कर दिया जाएगा। लेकिन केंद्र सरकार ने टीके की आपूर्ति की बजाय सरकार की कार्य क्षमता पर ही सवाल खड़े कर दिए। यही नहीं इस बात को लेकर अब राजनीति भी तेज हो गयी है।
महामारी के बीच राजनीति
पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के ट्वीट्स को आधार बनाकर राज्य सरकार पर आरोप लगाए। वैसे, महाराष्ट्र में इस प्रकार के आरोप कोई नयी बात नहीं हैं। कोरोना की पहली लहर के दौरान जब केंद्र सरकार द्वारा वेंटिलेटर नहीं दिये जाने की बात उठी थी तब भी प्रदेश बीजेपी के नेताओं ने ऐसे ही आरोप लगाए थे। लेकिन इन सब आरोप-प्रत्यारोप के बीच महामारी अपना विकराल रूप अख्तियार किये जा रही है। मुंबई में प्रतिदिन 10 हजार तो राज्य में 60 हजार नए मामले सामने आ रहे हैं।