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सौ साल पहले महामारी 'बंबई बुखार' से भारत में मरे थे दो करोड़ लोग!

सौ साल पहले महामारी 'बंबई बुखार' से भारत में मरे थे दो करोड़ लोग!

सौ साल पहले 1918 में भारत में फैले फ़्लू से डेढ़ से दो करोड़ लोग मारे गए थे। कितनी बदसी है स्थिति?

ऐसे समय जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का आतंक मचा हुआ है और भारत इससे अछूता नहीं है, 1918 का फ़्लू बरबस याद आना स्वाभाविक है, जब तकरीबन 5 करोड़ लोग मारे गए थे। अकेले भारत में ही डेढ़ से दो करोड़ लोगों की मौत उस फ़्लू की वजह से हुई थी। 

प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेने गए ब्रिटिश इंडिया के सैनिक जब वापस लौटे तो अपने साथ यह संक्रमण भी ले आए। चूंकि वे मुंबई (बंबई) बंदरगाह पर मई 1918 में उतरे, इसलिए यह संक्रमण सबसे पहले वहीं शुरू हुआ।

बंबई बुखार

मुंबई शहर के स्वास्थ्य अधिकारी जे. ए. टर्नर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा :  '10 जून, 1918 को सात सिपाहियों को अस्पताल में दाखिल कराया गया, जिन्हें मलेरिया नहीं था।  उसके बाद बंबई पोर्ट ट्रस्ट, हॉंगकॉंग एंड शंघाई बैंक, टेलीग्राफ़ ऑफ़िस, टकसाल और रैशेन ससून मिल्स के कर्मचारी इससे प्रभावित हुए और उन्हें अस्पतालों में दाखिल कराया गया।'

टर्नर ने  यह भी लिखा कि 24 जून तक बंबई शहर मानो पंगु हो गया। लोगों को बुखार, हाथ-पैर में जकड़न, फेफड़े में सूजन, आँखों में दर्द जैसे लक्षणों के साथ अस्पतालों में दाखिल कराया गया। इस रोग का नाम 'बंबई इनफ़्लूएन्ज़ा' और 'बंबई बुखार' पड़ गया। 

पूरे देश में फैला रोग

एक महीने के अंदर यह रोग पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसी जगहों पर पहुँच गया। सितंबर, 1918 तक यह महामारी बन गई और इस तरह फैली कि गंगा में बहते शवों का मान अंबार लग गया। 

हिन्दी के मशहूर कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने लिखा कि किस तरह उनका बड़ा भतीजा, उनके खेतों पर काम करने वाले किसान, मजदूर, बंटाई पर काम करने वाले सैकड़ों लोग मारे गए। गंगा नदी में लाशें इस तरह बहने लगीं कि कई जगहों पर नदी पूरी तरह शवों से पट गई।

दो करोड़ लोग मारे गए

इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, अहमदाबाद, के आर्थिक इतिहासकार चिन्मय तुम्बे का मानना है कि इस महामारी से लगभग एक से दो करोड़ लोग मारे गए। 

भारत में इतनी बड़ी तादाद में हुई तबाही का कारण यह था कि उस समय यह दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला और सबसे बड़ा देश था। उस समय इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और बर्मा (म्यांमार) भी शामिल थे। 

इतनी तबाही क्यों

उस समय टीका की खोज नहीं हुई थी, लिहाज़ा इन रोग के रोकथाम के लिए भी टीका नहीं था। उस समय तक एंटी-बायोटिक की भी खोज नहीं हुई थी, लिहाज़ा रोग शुरू होने के बाद उसे रोकने का कोई उपाय नहीं था। इसी तरह उस समय आज की तरह क्वरेन्टाइन और जाँच की सुविधाएं भी नहीं थीं। 

इसका असर यह हुआ कि इसके तुरन्त बाद 1921 में हुए जनगणना में भारत की जनसंख्या पहले से कम पाई गई। यह एक मात्र जनगणना है, जिसमें देश की आबादी बढ़ने के बजाय घट गई।

कोरोना वायरस का मामला थोड़ा अलग है। स्वास्थ्य सेवाएं पहले से बेहतर स्थिति में हैं, जाँच हो सकती है, एंटी बायोटिक्स हैं, क्वैरेन्टाइस हो सकता है। पर दूसरी ओर, दुनिया के तमाम एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, एक दूसरे के यहां आसानी से जा सकते हैं, जिससे संक्रमण आसानी से फैल सकता है। 

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